तेनालीराम की कहानी – माँ की अंतिम इच्छा 

बच्चों की कहानी. Tenaliram Story in Hindi. Baccho ki kahaniya. 

समय के साथ-साथ राजा कृष्णदेव राय की माता बहुत वृद्ध हो गई थीं। एक बार वह बहुत बीमार पड गई। उन्हें लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएँगी। उन्हें आम बहुत अच्छे लगते थे। वह बचपन से आम बहुत खाया करती थी। इसलिए जीवन के अन्तिम दिनों में वे आम दान करना चाहती थीं। उन्होंने राजा से ब्राह्मणों को आमों को दान करने की इच्छा प्रकट की। वह समझती थी कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। लेकिन कुछ दिनों बाद राजा की माता अपनी अन्तिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो गईं। उनकी मृत्यु के बाद राजा ने सभी विव्दान ब्राह्मणों को बुलाया और अपनी माँ की अन्तिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया। काफी सोच विचार कर ब्राह्मण बोले, ” यह तो बहुत ही बुरा हुआ महाराज, अन्तिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती। वे काफी सालों तक प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शान्ति का उपाय करना चाहिये।”
तब महाराज ने उनसे अपनी माता की अन्तिम इच्छा की पूर्ति का उपाय पूछा।
सभी ब्राह्मणों ने आपस में विचार किया और बोले, “उनकी आत्मा की शांति के लिये आपको उनकी पुण्यतिथि पर ब्राह्मणों को सोने के आमों का दान करना पडेगा।”
अतः राजा ने मॉ की पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिय बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए जब तेनाली राम को यह पता चला, तो वह तुरन्त समझ गया कि ब्राह्मण लोग राजा की सरलता तथा भोलेपन का उठा रहे हैं। उसने उन ब्राह्मणों को पाठ पढाने की एक योजना बनाई।
अगले दिन तेनाली राम ने ब्राह्मणों को निमंत्रण पत्र भेजा। उसमें लिखा था कि तेनाली राम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता हैं। क्योंकि वह भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर मरी थीं। जब से उसे पता चला है कि उसकी माँ की अन्तिम इच्छा पूरी न होने के कारण प्रेत- योनी में भटक रही होंगी, वह बहुत ही दुःखी है और चाहता है कि जल्दी उसकी माँ की आत्मा को शान्ति मिले।
ब्राह्मणों ने सोचा कि तेनाली राम के घर से भी बहुत अधिक दान मिलेगा क्योंकि वह शाही विदूषक है। सभी ब्राह्मण तय दिन तेनाली राम के घर पहुँच गए। ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। भोजन करने के पश्चात् सभी ब्राह्मण दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी उन्होने देखा कि तेनाली राम लोहे
के सलाखों को आग में गर्म कर रहा है। पूछने पर तेनाली राम बोला, “मेरी माँ फोडों के दर्द से परेशान थीं। मृत्यु के समय उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा था। इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिकाई करता, वह मर चुकी थी।” अब उनकी आत्मा की शान्ति के लिए मुझे आपके साथ वैसा ही करना
पडेगा, जैसी कि उनकी अन्तिम इच्छा थी ।” यह सुनकर ब्राह्मण गुस्सा हो गए। वे वहॉ से तुरन्त चले जाना चाहते थे। वे गुस्से में तेनाली राम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मॉ की आत्मा को शान्ति मिलेगी?”
“नहीं महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा। यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की मॉ की आत्मा को स्वर्ग में शान्ति मिल सकती है तो गर्म सलाखों से दागने पर उसकी माँ की अन्तिम इच्छा क्यों पूरी नही हो सकती ?”
यह सुनते ही सभी ब्राह्मण समझ गए की तेनाली राम क्या कहना चाहता है। वह बोले, “तेनाली राम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं। बस तुम हमें जाने दो।”
तेनाली राम ने सोने के आम लेकर ब्राह्मणों को जाने दिया, परन्तु एक लालची ब्राह्मण ने सारी बात राजा को जाकर बता दी। यह सुनकर राजा क्रोधित हो गए और उन्होनें तेनाली राम को बुलाया।
वे बोले “तेनाली राम यदि तुम्हे सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मॉग लेते। तुम इतने लालची कैसे हो गए कि तुमने ब्राह्मणों से सोने के आम ले लिए?”
“महाराज, मैं लालची नहीं हूँ, अपितु मैं तो उनकी लालच की प्रवृत्ति को रोक रहा था। यदि वे आपकी मॉ की पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मॉ की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते?”
राजा तेनाली राम की बातों का अर्थ समझ गए। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाया और उन्हें भविष्य में लालच त्यागने को कहा।

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