संत अपने जीवन में गरीबों के होते हैं। मृत्यु के बाद अमीर उन्हें छीन लेते हैं।
– यशपाल
सन्तों की मैत्री कभी जीर्ण नहीं होती ।
– महाभारत
केवल सज्जनों के साथ ही मैत्री हो सकती है ।
– सिसरो
सात कदम साथ-साथ चलने से ही सज्जनों में मित्रता हो जाती है।
– कालीदास
पुरुषार्थ परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने में है।
– महात्मा गाँधी
मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, अपितु परिस्थितियाँ मनुष्य की दासी हैं।
– डिजरायली
पुरुषार्थ का अर्थ है पुरुष को प्रवृत्त करने वाला हेतु ।
– बिनोवा भावे
जानवरों में भी, आत्मा होती है। मनुष्य भी जिसे आत्मज्ञान नहीं हुआ वह पशु ही है।
– विविध
शरीर पाप नहीं करता। पाप करने का भागी तो विचार है। विचार से ही जीवन बुरा अथवा भला बनता है।
– हैरिफ
जब तक पाप पकता नहीं तब तक मीठा लगता है, लेकिन जब पकने लगता है तब बड़ा दुःख होता है।
– बुद्ध
पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है ।
– जयशंकर प्रसाद
पुरुषार्थहीन पुरुष को विपत्तियां आक्रान्त कर लेती हैं।
– भारवि
भाग्य क्या है ? भूत में किये गये कर्म । इसलिए प्रयत्न से भाग्य पलटा जा सकता है।
– महर्षि रमण
जीव अपने पुरुषार्थ के कारण ही पुरुष कहलाता है।
– योग वशिष्ठ
परमात्मा सब प्राणियों को रोटी पानी देता है, परन्तु इनको उनके घरों में नहीं फेंकता है।
– विजडम
संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो सत्कर्म और शुद्ध पुरुषार्थ द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकती है।
– योग वशिष्ठ
‘मुझे अभिमान नहीं है’ ऐसा भासित होना, इस सरीखा भयानक अभिमान है ।
– बिनोवा
किसी भी दशा में अपनी शक्ति पर घमण्ड न कर ।
– हाफिज
घमण्ड ही हार का द्वार है।
– शतपथ ब्राह्मण
जरा सा भी अहंकार कार्य विघाती है।
– रामतीर्थ
संसार में जो कुछ सुख दुःख मिलता है वह सब अहंकार का विकार है।
– योग वशिष्ठ
यह ‘अहं’ ही शैतान है। यही ईश्वर व मनुष्य का दुश्मन है। यह सत्यज्ञान का भी धर्म शत्रु है। यह हत्या करके चुप हो जाने वाला खोजी है। यह कॉस्मिक मेकवेथ है जो हमेशा शान्ति की हत्या करता रहता है। यह ढोंगी है। ‘अहंकार’ यह मुक्ति में बाधक है।
– महर्षि रमण
धन की घोषणा में अहंकार है तो त्याग की घोषणा में भी है।
– रजनीश
अहंकार वहीं आता है जहाँ कुछ पाने को है। यदि पाने को नहीं है तो अहंकार नहीं आता ।
– रजनीश
एक अहंकार जितना बढ़ता है, व्यक्ति छोटा होता जाता है।
-विविध
कुछ नहीं करोगे तो कुछ नहीं बनोगे ।
-होब
संसार में सबसे बड़े अधिकार सेवा और त्याग से मिलते हैं।
-प्रेमचन्व
जो अधिकार सबके लिए समान रूप से प्राप्त नहीं है, वे अधिकार नहीं हैं।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल
गिद्ध बहुत ऊँचा उड़ता तो है मगर आँख उसकी मुर्दे पर बराबर लगी रहती है।
– विवेकानन्द
जब पड़ौसी भूखा मरता हो तब मन्दिर में भोग चढ़ाना पुण्य नहीं, पाप है।
– विवेकानन्द
जब मनुष्य दुर्बल और क्षीण हो तब हवन में घृत जलाना अमानुषिक कर्म है ।
– विवेकानन्द
दुःख का मूल कारण आसक्ति है।
-महाभारत
जो कर्तव्य से बचता है, लाभ से वंचित रहता है।
-थ्योडोर पार्कर
मनुष्य मात्र ईश्वर का प्रतिनिधि है ।
– महात्मा गाँधी
मानव के दो रूप हैं- एक वह जो घने अन्धकार में भी जागता है; और दूसरा वह जो प्रकाश में भी सोता रहता है।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल
मनुष्य का मापदंड उसकी सम्पदा नहीं, बुद्धिमत्ता है।
– वास्वानी
प्रत्येक मनुष्य का जीवन ईश्वर की लेखनी से लिखी गई परिकथा है।
– एंडरसन
यदि पत्नि आपकी चापलूसी करती है तो वह अवश्य ही कुछ बुरा करना चाहती है।
– रूसी कहावत
नारी खिलवाड़ की वस्तु नहीं है और न ही उसकी उपेक्षा की जा सकती है।
– रवीन्द्र नाथ ठाकुर
स्त्रियों का सौन्दर्य उनका पतिव्रत धर्म है।
-चाणक्य
जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं।
– मनुस्मृति
मनुष्य का जीवन नीरस है यदि उसे कोई जीवन साथी मिल जाए, तब तो वह भव बाधाओं को झेलता हुआ किसी प्रकार अपनी जीवन नैया पार लगा देता है।
– कुशवाहा कान्त
कलयुग में ऐसे बहुत कम मनुष्य मिलेंगे जो कनक और कान्ता इन दोनों पदार्थों पर मुग्ध न हों ।
– गोपीकान्त
लेखनी, पुस्तक तथा स्त्री जिसके पास जाती है उसी की होकर रह जाती है।
-विविध
केवल सेवा के कारण ही नारी को स्वर्ग में भी महती प्रतिष्ठा मिलती है ।
-मनु
जहाँ पवित्रता है, वहीं निर्भयता रह सकती है।
– महात्मा गाँधी
अध्यात्म के लिए पहली आवश्यक वस्तु है- निर्भयता ।
– महात्मा गाँधी
परिस्थितियाँ बदलने से चरित्र का दोष दुरुस्त नहीं हो जाता ।
– एमर्सन
अपनी बुराई को अपने से पहले मर जाने दो ।
– फ्रेंकलिन
हमारी जरूरतें बड़ी हैं और ईमान छोटा है। हम ईमान को बेचकर जरूरतें पूरी कर रहे हैं।
– आचार्य रजनीश
जीवन का उद्देश्य अपने वास्तविक स्वरूप अथवा आत्मा को जान लेना है जिसके जान लेने पर कुछ भी जानना शेष नहीं रहता ।
– स्वामी चिदानन्द
विज्ञान भौतिक सुख सुविधाएं देता है तो अध्यात्म मानसिक सम्पन्नता देता है । दोनों आवश्यक हैं। बिना अध्यात्मिक संपदा के मनुष्य भिखारी ही रहता है।
– रजनीश
संसार में ऐसा कोई पहाड़, आकाश, समुद्र, स्वर्ग आदि नहीं है जहां पर किये हुए कर्मों का फल न मिलता हो ।
– योग वशिष्ठ
हम दो पैसे में अपना धर्म, सच्चाई, ईमानदारी सब बेच देते हैं। इसका कारण हमें अपने भीतर का पता नहीं है कि जिसे हम बेच रहे हैं वह कितना मूल्यवान है।
– रजनीश
आचरण दर्पण के समान है जिसमें हर मनुष्य अपना प्रतिबिम्ब दिखाता है।
-गेटे
पहले मार्ग को जानिए, फिर उस पर चलिए ।
– अथर्ववेद
भगवान के समीप वही आ सकता है जो नेक काम करे ।
– वीरेंद्र सिंह पलियाल
प्राणी जैसा अन्न खाता है, उसकी वैसी ही सन्तति होती है।
– चाणक्य
जो पुरुष हितकारी भोजन करता है उसके लिए वह अन्न अमृत रूप हो जाता है ।
– महाभारत
मरते हुए प्राणी को बचाना मनुष्य का स्वाभाविक धर्म है और यही सबसे बड़ा पुण्य है।
– एकनाय
जिह्वा के बिना भी अपराध बोलेगा ।
– शेक्सपीयर
वैभव की जितनी कड़ियाँ टूटती हैं उतना ही मनुष्य बन्धनों से छूटता है और ईश्वर की ओर अग्रसर होता है।
– जयशंकर प्रसाद
सत्य परायण व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता ।
– नेपोलियन
अपना उल्लू सीधा करने के लिए शैतान भी धर्मशास्त्र के हवाले दे सकता है।
– शेक्सपीयर
सुख-भोग की लालसा आत्म सम्मान का सर्वनाश कर देती है।
– प्रेमचन्द
दुःख ही लोगों को कृपालु बनाता है और दूसरों पर दया करना सिखाता है ।
– बुद्ध
जिस मनुष्य के साथ तुमने भलाई की है उसको सुखी देखकर तुम्हारा प्रसन्न होना ही तुम्हारी भलाई का पुरस्कार है।
-सादी
मैं दया से प्रसन्न हूं, बलिदान से नहीं ।
– जीसस
तेईस घण्टे अधर्म करके एक घण्टा मन्दिर में जाने वाला सौ जन्मों में भी धार्मिक नहीं हो सकता। उसे झूठा भ्रम पैदा हो सकता है कि वह धार्मिक है।
– रजनीश
स्वयं को जानना हो धर्म है।
– सुकरात
देना भला है, सब दिया करो, बिना दीये घर का धरा भी तो नहीं मिलता ।
– दादू
मनुष्य का पक्का मित्र उसका श्रम ही है।
– राबर्ट कोलियर
दूसरों के लिए किए गए कार्य से आत्म शुद्धि होती है। इससे अहंकार कम होता है।
– विवेकानन्द
अग्नि में घी की आहुति देने की अपेक्षा अपने ‘अहं’ की आहुति दो ।
– विवेकानन्द
आनन्द का पहला स्रोत है स्वास्थ्य ।
– कर्टिस
पवित्रता की राह ही आनन्द की राह है।
– इमन्स
ईश्वर का पता हृदय को है मस्तिष्क को नहीं ।
– पास्कल
यदि आत्मा शरीरी है तो सब शरीर उसी के हैं, अन्यथा उसका कोई शरीर नहीं है।
– वेदान्त
अहंकारी व्यक्ति को सुखी करना मुश्किल है। निरहंकारी को दुःखी करना मुश्किल है।
– आचार्य रजनीश
अहंकार मूल पाप है। लोभ, मोह, क्रोध आदि इसी की छायायें हैं। अहंकार छूटने पर ही सब छूट जाते हैं।
– महर्षि रमण
परमात्मा की सत्ता हृदय शुद्धि व विचारों के लिए ही स्वीकार करो । भौतिक विकास के लिए उसकी सहायता मांगना उचित नहीं । इसके लिए पुरुषार्थ ही मुख्य है।
– अनाम
ऐसा कोई मनुष्य विश्व में नहीं है जिसके पास एक बार भाग्योदय का अवसर न आता हो, किन्तु जब वह देखता है कि वह मनुष्य उसका स्वागत करने को तैयार नहीं है तो वह उल्टे पैरों लौट जाता है।
-कार्डिनल
अहं की भावना रखना एक अक्षम्य अपराध है।
– अज्ञात
अहंकार नशे का एक रूप है।
– प्रेमचन्द
उद्यम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, मात्र इच्छा से नहीं।
-हितोपदेश
शब्द बाहुल्य से बुद्धि निःशेष होती है ।
– लाओत्से
अज्ञान की स्वीकृति स्वयं के ज्ञान की ओर बढ़ने का पहला कदम है। इससे मार्ग खुलता है।
– रजनीश
मनुष्य खुद ईश्वर तक नहीं पहुँचता, बल्कि जब आप तैयार होते हैं तो ईश्वर खुद आपके पास आता है।
– रजनीश
महाभारत के युद्ध ने विनाश किया, किन्तु एक नई व्यवस्था को जन्म भी दिया। ”””’पाप की प्रक्रिया जब समाप्त हो जाती है, तो शांति के उद्यान खिलते हैं।
– राजेन्द्र अवस्थी
आदमी जितना खाता है, उससे अधिक पैदा करने की ताकत ईश्वर ने उसे दी है।
– महात्मा गाँधी
धर्म अनुभूति की वस्तु है। वाद विवाद, तर्क और पांडित्य अथवा बड़े-२ सिद्धान्तों और संगठनों से धर्म की सिद्धि नहीं होती ।
– दिनकर
भूखे मरने का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है। सम्बन्ध है संकल्प पूरा करने का। संकल्प लेकर तोड़ने की अपेक्षा संकल्प नहीं लेना अच्छा है। संकल्प तोड़ने से आत्मा कमजोर होती है।
– विविध
सौभाग्य हमेशा परिश्रम के साथ दिखाई देता है
– गोल्डस्मिथ
अहंकार हीनता के कारण होता है। जो जितना हीन होगा उसका अहंकार उतना ही अधिक होगा। अनपढ़ का अहंकार तीव्र होता है। शिक्षा से यह कम होता है। दूसरों को नीचा दिखाने का ख्याल हीन में ही अधिक होता है।
– विविध
क्रोध अहंकार की ही सन्तान है। अहंकार बाँझ भी नहीं है। उसकी कई सन्तानें हैं।
– विविध
मनुष्य जितना छोटा होता है, उसका अहंकार उतना ही बड़ा होता है।
– वाल्टेयर
अभिमान से देवता दानव बन जाते हैं और नम्रता से मानव देवता ।
– आगस्टाइन
कदम पीछे न हटाने वाला ही ऐश्वर्यो को जीतता है।
-ऋग्वेद
सच्चा प्रयास कमी निष्फल नहीं होता ।
– चिल्सन
प्रयत्न देवता है व भाग्य दैत्य है। इसलिए प्रयत्न देव की उपासना करना ही श्रेयस्कर है।
– समर्थ रामदास
जिस मनुष्य को अपने मनुष्यत्व का भान है, वह ईश्वर के सिवा किसी से नहीं डरता ।
– महात्मा गांधी
मनुष्य बड़ा ढ़ोंगी है वह दूसरों को वही सिखाने का उद्योग करता है, जिसे स्वयं कभी भी नहीं समझता ।
– जयशंकर प्रसाद
व्यक्ति कितना विवश है ! उसके अपराध भी उस के नहीं हैं।
– जैनेन्द्र कुमार
गरीब के लिए रोटी की मुख्य समस्या है। उसे धर्म और नैतिकता का उपदेश देना मूर्खता है।
– विविध
धर्म विश्वास की नहीं विवेक की वस्तु है। यह भेड़ों का समूह नहीं, एकाकी सिंह जैसा है। यह अन्धों के लिए नहीं, आँख वालों के लिए है।
– रजनीश
जिसे तुम्हारा हृदय महान् समझे वह महान् है। आत्मा का निर्णय सदा सही होता है।
-एमर्सन
सबसे महान् वह है जो दृढ़तम निश्चय के साथ सत्य का अनुसरण करता है।
– सेनेका
मानवता का वास्तविक स्वरूप शान्तिमय हृदय में है, वाचाल मन में नहीं ।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल
मानवता का खेल प्रातःकालीन सूर्य की तरह सुन्दर है।
– रस्किन
धर्मभीरूता में जहाँ अनेक गुण हैं वहाँ एक अवगुण भी है। वह सरल होती है। पाखंडियों का दाँव उन पर सहज ही चल जाता है। धर्मभीरू प्राणी तार्किक नहीं होता । उसको विवेचना शक्ति शिथिल हो जाती है।
– प्रेमचन्द
धर्मभीरुता जड़वादियों की दृष्टि में हास्यास्पद बन जाती है। विशेषतः एक जवान आदमी में तो यह अक्षम्य समझी जाती है।
-प्रेमचन्द
धर्म और व्यापार को एक तराजू में तोलना मूर्खता है। धर्म, धर्म है, व्यापार, व्यापार। परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं । संसार में जीवित रहने के लिए किसी व्यापार की जरूरत है, धर्म की नहीं। धर्म तो व्यापार का श्रृंगार है।
– प्रेमचन्द
एक छोटे से परिहास से भी मानव के असली चरित्र पर काफी प्रकाश पड़ता है।
– प्ल्यूटार्क
जिस मनुष्य को अपने पर काबू नहीं है, वह दुर्बल चरित्र वाला है।
– कन्फ्यूशियस
मनुष्य की महानता उसके कपड़ों से नहीं, अपितु उसके चरित्र से आंकी जाती है।
– महात्मा गाँधी
चरित्र सम्बन्धी उन्नति के माने हैं खुदी से खुदी को मिटाने की ओर बढ़ना ।
– हार्टले