अधर्मी राजा का अन्न खाने वाले विद्वानों की भी बुद्धि मारी जाती है।
– महाभारत
संसार से जीवन आरम्भ होता है, धर्म पर समाप्त होता है। धर्म जीवन का शिखर है।
– रजनीश
प्रौढ़ सभ्यतायें धर्म को जन्म देती हैं, बचकानी सभ्यतायें विज्ञान को जन्म देती हैं। धर्म है- ‘स्वयं का जानना’ । विज्ञान है- ‘दूसरों का ज्ञान ।’
– रजनीश
बिना शारीरिक उन्नति के आध्यात्मिक उन्नति असंभव है।
– रामकृष्ण परमहंत
अगर एक मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है तो उसके साथ सारी दुनिया की उन्नति होती है।
– महात्मा गाँधी
दूसरों को उपदेश देने के समय सभी सज्जन हो जाते हैं, किन्तु जब स्वयं वैसा आचरण करने का अवसर आ पड़ता है तो सज्जनता भूल जाते हैं।
-वीरेन्द्र सिंह पलियाल
गम्भीर परिस्थिति ही महापुरुषों का विद्यालय है।
– महात्मा गाँधी
वह धार्मिक नहीं जो दूसरे के धर्म के प्रति प्रेम नहीं रख सकता।
– जैनेन्द्र कुमार
धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं ।
– प्रेमचन्द
निंदक के लिए मोक्ष के दरवाजे बन्द हैं ।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल
आज का जो पुरुषार्थ है वही कल का भाग्य है।
– पाल शिरर
अहंकार मिटने पर जीवन केन्द्र पर परमात्मा बैठ जाता है।
-विविध
मन ही मनुष्य के बन्धन और मुक्ति का कारण है।
– शठ्यायनीयोपनिषद
कर्म बन्धन का कारण नहीं। आसक्ति-बन्धन है। घर बन्धन नहीं है। बन्धन है ‘मेरा घर’ ।
– रजनीश
ज्ञानी उदर को भरते हैं किन्तु मन को शून्य रखते हैं।
– लाओत्से
ज्ञानी स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं जीते, इसलिए सबसे आगे रहते हैं।
-लाओत्से
आत्मा का अनुभव होने पर शरीर, मन, इन्द्रियाँ आदि अपने आप नियंत्रण में आ जाती हैं। आत्म ज्ञान के बिना मन स्वतन्त्र रूप से कार्य करता है। वह आत्मा की इच्छा का ध्यान न रखकर अपनी ही इच्छा का ध्यान रखता है।
– अज्ञात
जहाँ नैतिकता समाप्त होती है, वहाँ से धर्म का आरम्भ होता है। व जहाँ धर्म का अन्त होता है वहाँ से अध्यात्म आरम्भ होता है। नीति, नैतिकता का सम्बन्ध मन तक ही सीमित है। आत्म ज्ञान प्राप्त करना धर्म है वह समाप्त होता है मुक्ति में ।
– अज्ञात
अभिमान को नीच गति की प्राप्ति होती है।
– उत्तराध्ययन
संख्या बल से अहंकार आता है, और अहंकार से हमारा नाश हो जाता है।
– अज्ञात
लज्जा स्त्री का बहुमूल्य आभूषण है।
-कोल्टन
जिस घर में गृहिणी न हो, वह घर वन के समान है।
– वेदव्यास
स्त्री का प्रेम, पुरुष को कार्य में असफल, व्यवहार में झूठा, अनुत्तरदायी और जीवन में आवारा बना देता है ।
– यशपाल
जिस मनुष्य की स्त्री उसे निकम्मा समझे उस मनुष्य का जीवन भी क्या ?
– अज्ञेय
वे कभी विफल नहीं होते, जिनकी मृत्यु महान उद्देश्य के लिए होती है।
– वायरन
डूबने वाले के प्रति सहानुभूति का मतलब उसके साथ डूबना नहीं बल्कि खुद तैर कर उसको बचाने का प्रयत्न करना है।
– बिनोवा भावे
आसक्ति ही मनुष्य को नीच और दुर्बल बनाने वाली है।
– स्वामी रामतीर्थ
आचरण भाव का प्रकट रूप है।
-यशपाल
सदाचार का उल्लंघन करके कोई कल्याण नहीं पा सकता।
– विष्णु पुराण
तप एवं सदाचार के प्रभाव से निम्न स्तर के व्यक्ति भी उच्च स्थान प्राप्त कर लेते हैं।
– ऋग्वेद
हमारा अहंकार ही है जिसके कारण हमें अपनी आलोचना सुनकर दुःख होता है ।
– मेरी कोण्डी
यदि तुम्हारा अहंकार चला गया है तो किसी भी धर्म पुस्तक की एक पंक्ति भी पढ़े बिना व किसी भी देवालय में पैर रखे बिना, तुम जहाँ बैठे हो वहीं मोक्ष प्राप्त हो जाएगा ।
– स्वामी विवेकानन्द
अहंकार समस्त महान् गलतियों की तह में होता है।
– रस्किन
किसी भी हालत में अपनी शक्ति पर घमण्ड न कर । यह बहुरूपिया हर घड़ी हजारों रंग बदलता है।
-हाफिज
अहंकार ऐसा दुष्ट शत्रु है जो मनुष्य को न जीने देता है न मरने पर ही छोड़ता है।
– संत ज्ञानेश्वर
नारी जाति की स्वाभाविक दुर्बलता, मौका पाकर दिल दहला देती है ।
– देव
नारी यदि कायर है तो वही एक जगह सतेज भी है।
– जैनेन्द्र कुमार
मानसिक उन्नति भौतिक उन्नति से श्रेष्ठ है। तुच्छ स्वार्थ मानसिक उन्नति का सबसे बड़ा विघातक है। स्वार्थ छोड़ देने से आत्मा रूपी हंस के पैरों की बेड़ियाँ खुल जाती हैं और वह अपने पैरों को फैलाता हुआ बराबर आकाश में ज्ञान रूपी सूर्य की ओर बढ़ता हुआ चला जाता है।
– गोविन्द वल्लभ पन्त
मनुष्य को अपने आप में विश्वास होना चाहिए, कानूनों पर नहीं । मनुष्य की आत्मा में ईश्वर का अस्तित्व होता है। वह मनुष्य पृथ्वी पर पुलिस, कप्तान अथवा गुलाम के रूप में नहीं आता है। कानून मनुष्य से नीचा होता है।
– मेक्सिम गोर्की
नैतिक पक्ष प्रबल होने पर एक व्यक्ति में भी दस हजार व्यक्तियों का मनोबल आ जाता है।
– आनन्द कुमार
बुद्धि से चरित्र बढ़कर है।
– एमर्सन
चरित्रवान् होने से हमें सब कुछ उपलब्ध हो सकता है तथा बिना चरित्र के हम प्रत्येक वस्तु खो देते हैं ।
– गोलवलकर
अनेक प्रमाणों व तथ्यों से अब यह सिद्ध हो चुका है कि निश्चय ही पुनर्जन्म है। इसमें विवाद अनावश्यक है। मृत्यु गृह परिवर्तन से ज्यादा नहीं है ।
– रजनीश
चित्त की शून्य व पूर्ण जाग्रत अवस्था ही समाधि है।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल
दुःख का मूल कारण आसक्ति है ।
– महाभारत
कष्ट पाने वाले की अपेक्षा कष्ट देने वाले को ही अधिक दुःख सहना पड़ता है।
– अरडेल
आदमी का मन इस तरह बना हुआ है कि वह शक्ति का प्रतिरोध करता है और कोमलता से झुक जाता है
– अज्ञात
विचार का चिराग बुझ जाने से आचार अन्धा हो जाता है।
-विनोवा भावे
निर्मल अन्तःकरण को जो प्रतीत हो, वही सत्य है।
– महात्मा गाँधी
जो आदर्श सत्य की हत्या करके पला है। वह आदर्श नहीं, चरित्र की दुर्बलता है ।
– प्रेमचन्द
महत्ता के सुमन में नम्रता की सुगन्धि ही शोभा पाती है।
– भर्तृ हरि
मनुष्य की आत्मा के अन्दर ही समस्त धर्म शास्त्र छिपे हुए हैं। उसका हृदय ही सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र एवं मंदिर होगा ।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल
पर्दा परमेश्वर पर नहीं तुम्हारी आँख पर पड़ा है। जिससे वह दिखाई नहीं देता ।
– रजनीश
शिष्य की विशुद्धा प्रज्ञा ही तत्व साक्षात्कार का कारण है।
– योग वशिष्ठ
गुरु वाक्य से जो तत्व ज्ञान प्राप्त होता है उसका कारण शिष्य की प्रज्ञा ही है।
– विश्वामित्र
उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अन्तर देखते हैं।
– चीनी कहावत
गरीब वह नहीं है जिसके पास थोड़ा है बल्कि वह है जो अधिक की आकाँक्षा करता है।
– दानियाल
वास्तविक महान व्यक्ति वह है जो न किसी का शासक है, न किसी से शासित ।
– विविध
किश्ती को भंवर में घिरने दे, मौजों के थपेड़े सहने दे । जिन्दों में अगर जीना है तुझे, तूफान की हलचल रहने दे ।। धारे के मुआफिक बहना क्या, तोहीने दस्तो बाजू है। परबर्दए तूफाँ किश्ती को, धारे के मुखालिफ बहने दे ।।
– अज्ञात
अहंकार से ही क्रोध पैदा होता है। यदि अहंकार गिर गया तो क्रोध भी गिर गया ।
– आचार्य रजनीश
भलाई में एक भी बूँद अहंकार पड़ जाय तो भलाई बुराई हो जाती है।
– आचार्य रजनीश
हमारे वर्ण, गोत्र व जातियाँ, साँप की केंचुली के समान हैं। इसके अहंकार में मनुष्य अन्धा बना रहता है।
– भगवान बुद्ध
अहं की ही जन्म व मृत्यु होती है। शुद्ध आत्मा ही ‘होली गोस्ट’ है तथा अहं ही ‘शैतान’ है।
– महर्षि रमण
सर्वत्र भगवान का दर्शन होना मूर्ति पूजा का पर्यवसान है।
- दिनकर
पुराने बन्धन तोड़ कर नये बना लेना मनुष्य का स्वभाव है।
– विष्णु प्रभाकर
जो आनन्द चाहते हैं उन्हें आनन्द बाँटना चाहिए ।
– वायरन
आसक्ति से आदमी अपने वश में नहीं रहता ।
– प्रेमचन्द
महान् व्यक्ति का मुख्य लक्षण उसकी नम्रता है ।
– रस्किन
यदि सुकरात दुखी हो सकता तथा यदि कोई सूअर आनन्द में है तो मैं सुकरात होना ही पसन्द करूँगा। सूअर होकर सुखी होने की अपेक्षा सुकरात होकर दुःखी व पीड़ित होना अच्छा है।
– सुकरात
बुरे चरित्र वाला अच्छा गणितज्ञ व वैज्ञानिक हो सकता है किन्तु धर्म में उच्च चरित्र वाला ही सफल हो सकता है।
– महर्षि रमण
ज्ञानियों का कोई सम्प्रदाय नहीं होता। क्योंकि वह अहं शून्य होता है।
– महर्षि रमण
प्रकृति को अपने विकास में रुकना नहीं आता । इसलिए अकर्मण्यता पर वह अपना अभिशाप जगाती है।
– गेटे
शक्ति शारीरिक क्षमता से उत्पन्न नहीं होती; वह अजेय संकल्प से उत्पन्न होती है ।
– महात्मा गाँधी
कर्त्तव्य पालन स्वभावतः आनन्द में पुष्पित होता है।
– फिलिप्स ब्रुक्स
मनुष्यता का नाश करके कोई धर्म नहीं रह सकता ।
– जयशंकर प्रसाद
जीवन में भगवान को अभिव्यक्त करना ही मनुष्य का मनुष्यत्व है ।
– अरविन्द घोष
मनुष्यता का एक पक्ष वह भी है जहाँ वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्य, मनुष्य के लिए प्यार करता है।
– जयशंकर प्रसाद
मनुष्य अपने को स्वयं बन्धन में डालता है।
– रविन्द्रनाथ ठाकुर
महान् पुरुष अपनी महानता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किये गये अपने व्यवहार से देते हैं ।
– कार्लाइल
महान् व्यक्तियों के जीवन का कोई उद्देश्य होता है। साधारण मनुष्य केवल इच्छाए रखते हैं ।
– वाशिगटन
दुःखों का क्षय पुरुषार्थ से होता है।- योग वशिष्ठ
उद्यम ही भैरव है।
– शिव सूत्र
अपने ही प्रयत्न के सिवा कभी और कोई हमको सिद्धि देने वाला नहीं है। इसलिए जो कुछ प्राप्त करना चाहते हो उसके लिए प्रयत्न करो ।
– योग वशिष्ठ
जो पुरुषार्थ नहीं करते वे धन, मित्र, ऐश्वर्य, उत्तम कुल तथा दुर्लभ लक्ष्मी का उपभोग नहीं कर सकते ।
– महाभारत
प्रकृति को भला-बुरा न कहो । उसने अपना कर्त्तव्य पूरा किया, तुम अपना करो ।
– मिल्टन
मानव का दानव होना उसकी हार है मानव का महामानव होना उसका चमत्कार है।
– डा० राधाकृष्णन्
आदमी में कितनी भी दुर्बलता हो, बर्बरता भी हो, लेकिन गहराई में उसका देवत्व भी पड़ा हुआ है।
– जैनेन्द्र कुमार
मनुष्य दुनिया का सबसे बेवकूफ समझदार प्राणी है।
– मनहर चौहान
पैदा होने से ही कोई मनुष्य नहीं हो जाता । मनुष्य बनना पड़ता है। पैदा होना एक अवसर मात्र है। मनुष्य होना जरूरी है।
– रजनीश
भार्या पुरुष का आधा अंग है। भार्या पुरुष का सर्वश्रेष्ठ मित्र है। भार्या धर्म, अर्थ और काम का मूल है, तथा भव- सागर से पार उतरने की इच्छा वाले पुरुष के लिए भार्या ही प्रमुख साधन है।
– महाभारत
अपनी पत्नी, भोजन और धन – इन तीनों में संतोष करना चाहिये । परन्तु अध्यापन, तप और दान, इन तीनों में कभी सन्तोष नहीं करना चाहिये ।
– चाणक्य
जो स्त्री अपने पति का अपमान करती है, उसे लोक परलोक कहीं शान्ति नहीं मिल सकती ।
– प्रेमचन्द
महिलाओं के सामने हम शील व संकोच के पुतले बन जाते हैं।
– प्रेमचन्द
अन्याय के सामने जो छाती खोलकर खड़ा हो जाय, वही सच्चा पीर है।
– प्रेमचन्द
मुझे इसकी चिन्ता नहीं कि मेरे पास कोई अधिकार नहीं, पर मुझे यह अवश्य देखना है कि मैं किसी अधिकार के योग्य हूं या नहीं ।
– बुद्ध
अपना कर्त्तव्य करने से हम उसे करने की योग्यता प्राप्त करते हैं।
– ई० बी० पूसे
कर्त्तव्य में मिठास है।
– महात्मा गाँध
धर्म का सम्बन्ध सच्चाई और ईमान से है, दिखावे से नहीं।
– प्रेमचन्द
क्षमा हृदय का धर्म है, किन्तु क्षमा वह कर नहीं पाता ।
-अज्ञेय
अन्तरात्मा ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं है, वरन समाज द्वारा निर्मित है। यदि वास्तव में वह ईश्वर प्रदत्त होती तो भिन्न-२ समाज के व्यक्तियों की अन्तरात्मायें भिन्न-२ न होतीं ।
– भगवती चरण
ईमानदार मनुष्य स्वभावतः स्पष्टभाषी होता है। उसे अपनी बातों में नमक-मिर्च लगाने की जरूरत नहीं होती ।
– प्रेमचन्द
भगवान शारीरिक क्रिया से नहीं मिलते। भगवान को पाने के लिए भावना के अनुसार आचार होना चाहिए ।
– महात्मा गाँधी
यदि तुम भूलों को रोकने के लिए द्वार बन्द कर दोगे तो सत्य भी बाहर रह जायेगा ।
– रविन्द्र नाथ टैगोर
मोक्ष के लिए कर्म मत करो बल्कि समस्त कर्मों को ही मौका दो कि वे मोक्ष बन नायें ।
– रजनीश
संन्यास हृदय की एक दशा का नाम है, किसी ऊपरी नियम या वेशभूषा वगैरह का नहीं ।
– गीता
अज्ञान को छिपाने से ज्ञान नहीं आता ।
– रजनीश
मूर्ख से अज्ञानी श्रेष्ठ हैं। जो नहीं जानते वे अज्ञानी हैं किन्तु बिना जाने जो जानने का दावा करते हैं वे मूर्ख हैं । इनसे बचना आवश्यक है ।
– रजनीश
सत्य की साधना में विचारों की निष्पक्षता आवश्यक है ।
– रजनीश
हमारा यदि कुछ छिन जाय तो दुःख प्रकट करते हैं किन्तु जो मिला है उसके लिए धन्यवाद नहीं देते परमात्मा को । जो छिना वह भी स्वयं का नहीं था, चोरी का ही था।
– रजनीश
सन्त मरते वक्त भी चिन्तित नहीं होते और हम जीते वक्त भी चिन्तित हैं। सन्त बीमारी में भी हँसता है, हम स्वस्थ होकर भी रोते हैं। सन्तों के हाथों पर काँटे रख दो तो भी अनुग्रहीत होगा, हमारे हाथों में फूल भी रख दो तो धन्यवाद नहीं देंगे ।
– रजनीश