100 से अधिक, कर्म-कर्त्तव्य पर महापुरुषों के अनमोल वचन।
More than 100 precious words of great men on Karma.
Mahaapurushon ke Anmol Vachan on Karma in Hindi
बुद्धि और ज्ञान के कर्म सहायक हैं। कोरी बुद्धि वाला
धूर्त, तथा कोरे ज्ञान वाला अभिमानी हो जाता है। इन दोनों की सहायता से कर्म मार्ग में प्रवृत्त होने वाला ही सफल कहा जा सकता है।
-अनाम
मनुष्य की परीक्षा उसके कार्यों से होती है, शब्दों से नहीं।
– अनाम
जो कुत्ता घूमता रहता है उसे कहीं न कहीं हड्डी मिल ही जाती है।
– एक यायावरी कहावत
सुकर्म विद्या का अन्तिम लक्ष्य होना चाहिए ।
– सर पी० सिडनी
कर्त्तव्य के आगे प्रेम का बलिदान देना चाहिए ।
– अज्ञात
निष्फलता और असंभव शब्द केवल मूर्खा के कोष में हो मिलता है।
– नेपोलियन बोनापार्ट
कर्त्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता ।
– प्रेमचन्द
श्रम के पश्चात ही अवकाश का सच्चा आनन्द मिलता है।
– पं० सिद्ध विनायक
क्षत्रिय की शोभा का कारण उसका तत्काल वार करना नहीं है तत्काल बार तो डाकू भी करते हैं। उसका साहस के साथ आक्रमण का सामना करने में और अपने कर्त्तव्य का पालन करते-करते मर जाने में है।
– यशपाल
पत्थर आखिरी चोट से टूटता है, पर पहले की चोटें बेकार नहीं जातीं ।
– बिनोवा
प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असंभव नजर आता है।
– कार्लाइल
आलस्य जीवित मानव की कब्र है।
– कूपर
आलस्य में जीवन बिताना आत्म-हत्या के समान है।
– सुकरात
आलसी के अतिरिक्त और सब लोग अच्छे हैं।
– वाल्टेयर
जीवन ही कर्म है। मृत्यु कर्म का अभाव है। जन्म कर्म का आरम्भ है। मृत्यु कर्म का अन्त है।
– आचार्य रजनीश
केवल वही व्यक्ति बेकार नहीं है जो बैठा रहता है, बल्कि वह भी बेकार माना जाएगा जिसकी योग्यता का पूर्ण लाभ नहीं लिया जाता ।
– सुकरात
ईश्वर सत्य और नित्य है, शेष सब असत्य और अनित्य है। यह समझते हुए अपने कत्र्त्तव्य को पूरा करना ही वास्तविक ‘यज्ञ’ है।
– गीता
जो गुणी होते हैं वे अपनी जिम्मेदारियों की बात सोचते हैं, जो गुणहीन होते हैं वे अपने अधिकारों का नाम रटा करते हैं।
– कवीन्द्र रवीन्द्र
साहसी व्यक्ति कभी बुरा काम नहीं करता ।
– विष्णु प्रभाकर
स्वावलम्बी पुरुष स्वाभिमानी होता है।
– आनन्द कुमार
फल मनुष्य के कर्म के अधीन है।
– चाणक्य
समुद्र में एक बार डुबकी लगाने से अगर रत्न न पाओ तो समुद्र को रत्नहीन मत कहो ।
– रामकृष्ण
सबसे अच्छा यही है तू अपना कर्त्तव्य कर और शेष ईश्वर के अधीन छोड़ दे ।
– जाँगफेलो
आपत्तियों में मुस्कराने वाला कभी दुःखी नहीं रहता। यह संसार संघर्ष भूमि है, इससे भागना कायरता है। अकर्मण्य होकर बैठे रहना नपुंसकता है। सतत् संघर्ष करना ही पौरुष है। विजय होगी या नहीं यह सोचना मूर्खता है। प्रयत्न में सन्तोष होना चाहिए।
– वीरेंद्र सिंह पलियाल
निकम्मे बैठे हुए चिन्तन करते रहना, अथवा बिना काम किये शुद्ध विचार का दावा करना, मानो सोते-सोते खर्राटे मारना है।
-पूर्णसिंह
शान्ति अकर्मण्यता का दूसरा नाम है।
– भगवती चरण
आत्म बलिदान में कितना सुख होता है यह आत्म बलिदान करने वाला ही जानता है।
– भगवती चरण
मानव की सेवा करना मानव का सर्व प्रथम कर्त्तव्य है।
– बिनोवा भावे
मनुष्य के कर्म ही उसके विचारों की सबसे अच्छी व्याख्या हैं।
– लाफ
महान कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं।
-जान फ्लोचर
कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है फल में नहीं ।
-गीता
यह धरती ही हमारे कर्मों की भूमि है।
-महाभारत
विश्व में सबसे निकृष्ट व्यक्ति कौन है ? जो अपना कर्त्तव्य जानते हैं किन्तु उसका पालन नहीं करते ।
– एम० हेनरी
मूर्ख व्यक्ति भी अच्छे खेत में बीज डाले तो खेती समुन्नत होती है। धान का ढेर इकट्ठा करने के लिए बोने वाले के गुणों की अपेक्षा नहीं होती ।
– मुद्रा राक्षसम्
उद्यमी और धीर लोग कभी काम पूरा किए बगैर नहीं लौटते ।
– सरित्सागर
भली भाँति अपने कर्त्तव्य का पालन करके सन्तुष्ट हो जाओ और दूसरों को अपने विषय में इच्छानुसार कहने के लिए छोड़ दो ।
– पाइथागोरस
सर्वोत्तम कार्य कभी भी केवल धन के लिये नहीं किया जाता और न कभी किया जाएगा ।
– रस्किन
उत्तम कर्मों का करना ही सुखकारी है, उत्तम कर्मों को न करना ही पश्चाताप को बढ़ाने वाला है।
– महाभारत
जो फौरन किए जाने वाले काम को देर से करता है वह बेवकूफ है।
– विस्मार्क
आसुरी वृत्ति के खिलाफ युद्ध करने से इन्कार करना नामदर्दी है।
– गाँधी
अपने काम को चाँद, तारों और सूरज के काम की तरह निस्वार्थ बना दो, तभी सफलता मिलेगी ।
– स्वामी रामतीर्थ
कामचोर शेर से मेहनती कुत्ता अच्छा ।
– अज्ञात
जीवन अविकल कर्म है, न बुझने वाली पिपासा है।
– अज्ञात
मनुष्य जब सोता रहता है तब कलियुग, जब जागता है तब द्वापर जब कर्मोद्यत होता है तब त्रेता और जब कर्मशील होता है तब सतयुग होता है।
– मनुस्मृति
हम तो कर्म को ही नमस्कार करते हैं, जिस पर विधाता का भी वश नहीं चलता ।
– भर्तृ हरि
यदि तुम्हें ज्ञान की विपासा है तो परिधम करो, यदि तुम्हें भोजन की आकाँक्षा है, तो परिश्रम करो और यदि तुम आनन्द के अभिलाषी हो तो परिश्रम करो । पुरुषार्थ ही प्रकृति का नियम है।
– रस्किन
अपने कुकर्मों का फल चखने में कड़वा परन्तु परिणाम में मधुर होता है।
– जयशंकर प्रसाद
अपने घर में ही बैठे कोई ऊँचे पद पर नहीं पहुंच सकता ।
– रूसी कहावत
तन तोड़ परिश्रम करने वाला कभी भूखा नहीं रह सकता।
– विविध
काम सोचा नहीं जाता किया जाता है।
– विष्णु प्रभाकर
विजय उसी की होती है जो विजयी होने का साहस करता है।
-नेहरू
श्रद्धा के अभाव में कोई भी कार्य सफल नहीं होता। ज्ञान, कर्म, व भक्ति की कुंजी श्रद्धा है।
– अनाम
कर्मशीलता और उदासी साथ साथ नहीं रहतीं ।
– वोपी
जहाँ देह है वहाँ कर्म तो है ही। उससे कोई मुक्त नहीं है।
– महात्मा गाँधी
मस्तिष्क में भरे हुए ज्ञान का जितना अंश काम में लाया जाये, उतने ही का मूल्य है, बाकी सब व्यर्थ बोझा है।
– महात्मा गाँधी
बिना कार्य के सिद्धान्त दिमागी ऐय्याशी है, बिना सिद्धान्त के कार्य अंधे की टटोल है ।
– नेहरू
एक अच्छा काम हो जाता है तो कई उसके दावेदार बन जाते हैं।
– लोकोक्ति
ईश्वर उसी के निर्वाह की चिन्ता करता है जो अपनी शक्ति भर पूरा श्रम करता है और श्रम करने में प्रतिष्ठा समझता है।
– कृष्णदत्त
परिश्रम पैसे का पिता है।
– आनन्द कुमार
आलस्य अभावों और कष्टों का पिता है।
– हरिभाऊ
उत्कर्ष और सफलता उद्योगशील मनुष्य के अर्दली हैं। उद्यमशीलता की भुजाओं के सामने अभाव परास्त हो जाता है।
– हरिभाऊ
क्या करते हो, यह इतना महत्वपूर्ण नहीं जितना कि कैसे करते हो ।
– वीरेंद्र सिंह पलियाल
इस लोक में कर्म करते हुए ही सौ वर्ष जीने की इच्छा करें।
– ईशावास्योपनिषद
एक आदर्श सन्यासी होने की अपेक्षा एक आदर्श गृहस्थी होना अधिक कठिन है।
– विवेकानन्द
दरिद्रता कर्मों का फल नहीं है। सम्पत्ति समाज की वितरण व्यवस्था पर निर्भर है। शोषक वर्ग ने अपनी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए चोरी को पाप कह दिया, शोषण को पाप नहीं कहा। सजा भी चोर को होती है, शोषक को नहीं। चोरी शोषण की वाईपोडक्ट है।
– रजनीश
सुखी आदमी पसन्द के काम की चिन्ता नहीं करता, वरन् जो भी कार्य करता है उसे ही पसन्द करना जानता है।
-विविध
परिस्थिति आदमी का बहाना है। जो हमें नहीं करना होता है उसके लिए बहाने ईजाद कर लेते हैं। परिस्थिति को दोष देना व्यर्थ है।
– विविध
मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं ही विधाता है।
– स्वामी रामतीर्थ
भाग्य साहसी मनुष्य की सहायता करता है।
– वजिल
भाग्य पर वह भरोसा करता है जिसमें पौरुष नहीं होता ।
– प्रेमचन्द
काहिली और खामोशी मूर्ख के गुण हैं।
– बेंजामिन फ्रेंकलिन
असफलता उसी के हाथ लगती है जो प्रयत्न नहीं करता ।
-व्हेटसी
दुनियाँ में तीन तरह के आदमी हैं- एक इंजन की तरह, दूसरे गाड़ी की तरह और तीसरे ब्रेक की तरह ।
– उपेन्द्रनाथ अश्क
चाहे ज्ञानी हो या अज्ञानी, जब तक शरीर में चिन्ह हैं तब तक कर्म का त्याग असंभव है।
– योगव शिष्ठ
कर्म सदैव भले ही सुख न ला सके, पर कर्म के बिना सुख नहीं मिलता ।
– डिजरायली
कर्म ही पुरुष है और पुरुष ही कर्म है। ये दोनों इस प्रकार अभिन्न हैं जैसे बर्फ और उसकी शीतलता ।
– योगवशिष्ठ
जो शरीरधारी होकर भी कर्मों का त्याग करते हैं, वे अज्ञानी और मूर्ख हैं ।
-संत ज्ञानेश्वर
‘कर्म योग’ का अर्थ है ‘कर्म में कुशलता’ ।
-गीता
तुम निरंतर कर्म करते रहो किन्तु कर्म में आसक्ति का त्याग कर दो यही ‘कर्म योग’ है।
– विवेकानन्द
कार्य पद्धति की श्रेष्ठता कर्म की कुशलता में है।
– लाओत्से
कर्म करें किन्तु फल परमात्मा पर छोड़ दें ।
– रजनीश
जो दुर्बलता के कारण प्रतिकार नहीं करता, वह पापग्रस्त होता है।
-विवेकानन्द
ईश्वर उसी के निर्वाह की चिन्ता करता है, जो अपनी शक्ति भर पूरा श्रम करता है और श्रम करने में प्रतिष्ठा समझता है।
– श्री कृष्ण दत्त
एक कर्त्तव्य पूति का पुरस्कार है- दूसरे कर्तव्य को पूर्ण करने की योग्यता ।
– जार्ज ईलियट
बुद्धिमान मनुष्य मूर्ख से भी अधिक गलतियाँ करता है लेकिन वह एक गलती को दुबारा नहीं करता, मूर्ख अधिक गलतियाँ इसलिए नहीं करता कि यह कुछ करता ही नहीं है।
– रजनीश
महान कार्य शक्ति से नहीं अपितु अध्यवसाय से किये जाते हैं।
– जानसन
हर कार्य का समय होता है और हर समय के लिए कार्य होता है।
– बाइबिल
कुकर्म करते समय मीठे और सुखदाई लगते हैं, और कर्म फल भोगते समय दुःखदाई ।
– धमापद
कर्म में बोलने की शक्ति है।
-शेक्सपीयर
संसार शांति भूमि नहीं, समर भूमि है। यहाँ वीरों व पुरुषार्थियों की जीत होती है। निर्बल व कायर मारे जाते हैं।
– प्रेमचन्द
ज्ञान योगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह कार्य करें तथा भक्त की तरह उदार बनें। यही जीवन का उद्देश्य है।
– श्रीराम शर्मा
परिणाम की आशा करके बैठे रहना वीरों को शोभा नहीं देता ।
– सर्वदानन्द
किसी का कोई काम करने से आदमी सेवक नहीं बन जाता। कोई भी आदमी सेवक बनता है अपने जीवन के निर्वाह के लिए दूसरे के कब्जे में आ जाने पर और उसके परिश्रम का मूल्य दूसरे के द्वारा निश्चित किए जाने पर ।
– यशपाल
दुर्बलता ही राष्ट्रीय अपराध है।
– गोपीकान्त
सहानुभूति और दया का कर्त्तव्य में कोई स्थान नहीं । कमजोरी की निन्दा करके व्यक्ति से उन कमजोरियों को दूर करना उचित होता है।
– भगवती चरण
सम्पूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है। वीरत्व एक स्वावलम्बी गुण है ।
-जयशंकर प्रसाद
वह कला क्या जो कर्त्तव्य को लंगड़ा कर दे, और वह कर्त्तव्य भी क्या जो कला का अंग भंग हो जाने दे ।
-वृन्दावन लाल
अनवरत प्रयत्न का ही नाम जीवन है।- वृन्दावन लाल
काम ही सब कुछ है। काम करना ही मानव का धर्म है। काम करते-करते ही मनुष्य स्वर्ग लोक की प्राप्ति कर सकता है।
– वृन्दावन लाल
मनुष्य अकेले-अकेले काम करके सन्तोष और हर्ष को तो प्राप्त कर सकता है परन्तु काम से आनन्द तभी हाथ लग सकता है जब उसको दूसरों के सहयोग से किया जाय ।
– वृन्दावन लाल
नीच पुरुष बकवास भर करता है, कुछ करता नहीं है। सज्जन कहता नहीं है करता ही है।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल
किसी की जान लेने में नहीं, किसी के लिए जान देने में क्षत्रिय की शोभा है। मारने की नहीं, मरने का नाम बहादुरी है।
– यशपाल
बादल का बरस कर मिट जाना ही जीवन है। फूल का खिलने के बाद किसी देवता के चरणों पर चढ़ जाना ही जिन्दगी है।- यशपाल
कार्यशीलता की सौ गलतियाँ निकम्मेपन की एक अच्छाई से बढ़कर है। क्योंकि कार्यशीलता में अपनी गलती को दूर करने की भी सामर्थ्य है, और निकम्मापन अपनी अच्छाई को भी नहीं कायम रख सकता ।
– अज्ञेय
बुद्धिहीनों से ही बुद्धिमानों की जीविका चलती है।
– हितोपदेश
निकम्मे आदमी को ही सब प्रकार के बुरे भाव सताते हैं।
– कार्लाइल
संसार में उस मनुष्य से अधिक कोई दुःखी नहीं है जो हर बात में संदिग्ध रहता है। जिसे छोटे छोटे कामों के करने के लिए भी अधिक देर तक विचार करना पड़ता है।
– विलियम जेम्स
बुढ़ापा व्यसन और विषयों का तिरस्कार नहीं करता बल्कि व्यसन और विषय ही उसका तिरस्कार करते हैं।
– हरिभाऊ
आज पराजित होने पर पुराना विजेता होने का अभिमान भी हास्यास्पद है ।
– राहुल सांकृत्यायन
मनुष्य कर्ता है, पैदा होकर अकर्मण्यता का जीवन व्यतीत करके मर जाने के लिए नहीं बनाया गया है, वह बनाया गया है कर्म करने के लिए ।
– भगवती चरण वर्मा
जो अपने कर्मों को ईश्वर का कर्म समझ कर करता है। वही ईश्वर का अवतार है।
– जयशंकर प्रसाद
काम करने वाला मरने के कुछ घंटे पहले ही वृद्ध होता है।
-वृन्दावन लाल
मैंने समय नष्ट किया और अब समय मुझे नष्ट कर रहा है।
– शेक्सपीयर
प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असंभव होता है।
-कार्लाइल
गतिमान को पंगु बनाकर रखना सबसे बड़ी क्रूरता है।
– महादेवी
यदि चिड़िया एका करलें तो शेर की खाल खींच सकती हैं।
– सादी
अकर्मण्यता मृत्यु है।
– मुसोलिनी
आलस्य परमेश्वर के दिये हुए हाथ पैरों का अपमान है।
– वीरेंद्र सिंह पलियाल
आलोचक प्रायः वे ही व्यक्ति बनते हैं जो कला साहित्य के क्षेत्र में असफल रहते हैं।
– डिजरायली
हाथी अपने रास्ते चलता जाता है, कुत्ते भौंकते हैं उन्हें भौंकने दो ।
– कबीर