Akbar Birbal Story in Hindi. Akbar Birbal ki kahaniya. Baccho ki Kahaniya. बच्चो की कहानियां। अकबर बीरबल की छोटी कहानियां। Part 4
अकबर-बीरबल की कहानी – जल्दी बुलाकर लाओ
एक सुबह बादशाह अकबर उठते ही अपनी दाढ़ी खुजलाने लगे और ऊँची आवाज़ में बोले – “अरे, कोई है? जाओ, जल्दी बुलाकर लाओ… फौरन हाजिर करो!”
आदेश तो स्पष्ट था, लेकिन समस्या यह थी कि बादशाह ने बताया ही नहीं कि किसे बुलाना है। बेचारा सेवक घबराया, पर अकबर से दोबारा पूछने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया।
उसने बात दूसरे सेवक को बताई, दूसरे ने तीसरे को और तीसरे ने चौथे को। धीरे-धीरे पूरे महल में यह बात फैल गई। अब सभी सेवक चिंता में डूब गए कि आखिर किसे बुलाएँ?
इसी बीच बीरबल सुबह की सैर से लौट रहे थे। उन्होंने दरबार के सेवकों को परेशान और भाग-दौड़ करते देखा। तुरंत समझ गए कि जरूर बादशाह ने कोई ऐसा आदेश दिया है, जो इनकी समझ से बाहर है।
बीरबल ने एक सेवक से कारण पूछा। सेवक बोला – “हुजूर, हमें समझ नहीं आ रहा कि किसे हाजिर करना है। अगर हम सही आदमी न ले गए तो ग़लती का दोष हमारे सिर मढ़ा जाएगा।”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा – “ठीक-ठीक बताओ, जब बादशाह ने यह हुक्म दिया, तब वे क्या कर रहे थे?”
जिस सेवक को आदेश मिला था, उसे बुलाया गया। उसने घबराते हुए कहा – “जहाँपनाह उस समय बिस्तर पर बैठे दाढ़ी खुजा रहे थे।”
यह सुनते ही बीरबल सब समझ गए। उन्होंने हँसते हुए कहा – “तो फिर देर किस बात की? जाकर हज्जाम (नाई) को बुलाओ।”
सेवक ने वैसा ही किया। हज्जाम को बादशाह के सामने हाजिर कर दिया गया।
अकबर हैरान रह गए। उन्होंने सोचा – “मैंने तो यह बताया ही नहीं कि किसे बुलाना है। फिर यह हज्जाम को लेकर कैसे आ गया?”
उन्होंने सेवक से पूछा – “सच-सच बताओ, यह तुम्हारा विचार था या किसी ने सुझाव दिया?”
सेवक डरते-डरते बोला – “जहाँपनाह, यह तो बीरबल का सुझाव था।”
अकबर मुस्कुराए और बोले – “वाह बीरबल! तुम्हारी बुद्धि सचमुच अद्वितीय है।”
अकबर-बीरबल की कहानी – जब बीरबल बच्चा बना
एक दिन बीरबल दरबार में देर से पहुँचा। अकबर ने पूछा – “बीरबल! आज इतनी देर क्यों हुई?”
बीरबल बोला – “हुजूर, क्या करूँ! आज मेरे बच्चे ज़िद कर रहे थे कि मैं दरबार न जाऊँ। उन्हें समझाने में बहुत वक्त लग गया, इसलिए देर हो गई।”
अकबर को यह सुनकर लगा कि बीरबल बहाना बना रहा है। उन्होंने कहा – “यह कोई बड़ी बात नहीं। बच्चे को समझाना इतना कठिन नहीं होता।”
बीरबल मुस्कुराया और बोला – “जहाँपनाह, बच्चे को डांटना आसान है, पर प्यार से समझाना बहुत मुश्किल। यदि आपको यक़ीन न हो तो मैं अभी दिखा देता हूँ।”
अकबर ने चुनौती दी – “ठीक है! किसी बच्चे को लाओ, मैं उसे तुरंत चुप कर दूँगा।”
बीरबल बोला – “हुजूर, बच्चे को लाने की ज़रूरत नहीं। मैं ही बच्चा बन जाता हूँ, आप मुझे चुप कराके दिखाइए।”
इतना कहकर बीरबल छोटे बच्चे की तरह हरकतें करने लगा। कभी उछलता, कभी पगड़ी फेंक देता, कभी अकबर की मूँछें खींचने लगता। अकबर प्यार से समझाते – “नहीं, नहीं मेरे बच्चे! ऐसे मत करो, अच्छे बच्चे तो ऐसे नहीं करते।”
लेकिन बीरबल ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। अकबर ने मिठाई मंगवाई, खिलौने दिखाए, पर बीरबल की जिद बढ़ती ही गई।
वह बोला – “मुझे गन्ना चाहिए!”
गन्ना लाया गया, लेकिन बीरबल बोला – “नहीं, छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर दो।”
सैनिक ने गन्ना काटना चाहा तो बीरबल चिल्लाया – “नहीं, सैनिक नहीं काटेगा, आप खुद काटिए!”
मजबूरन अकबर को ही गन्ना काटना पड़ा। लेकिन जैसे ही उन्होंने टुकड़े बीरबल को दिए, वह फिर जिद करने लगा – “नहीं, मुझे तो पूरा गन्ना चाहिए।”
अकबर ने पूरा गन्ना थमाया तो बीरबल बोला – “अब इन टुकड़ों से ही पूरा गन्ना बनाकर दो।”
अकबर चिढ़कर बोले – “यह नामुमकिन है!”
बीरबल ज़िद करता रहा। अंत में अकबर का धैर्य जवाब दे गया और वह डांटने लगे। तभी बीरबल हँस पड़ा और बोला – “हुजूर, अब समझ गए न कि बच्चे को प्यार से समझाना कितना मुश्किल होता है?”
अकबर भी हँस पड़े और बोले – “हाँ बीरबल, तुम सही कहते हो। बच्चे की जिद को शांत करना वाकई बच्चों का खेल नहीं।”