अकबर बीरबल की कहानी – बीरबल और प्रसिद्धि चाहने वाला व्यक्ति

Akbar Birbal Story in Hindi. शाम का समय था। सभी लोग धीरे-धीरे अपने घरों को लौट रहे थे। तभी बीरबल ने देखा कि एक मोटा-सा आदमी शर्माते हुए एक कोने में चुपचाप खड़ा है। बीरबल उसके पास गया और बोला,
“ महोदय, लगता है आपको कुछ परेशानी है। बेझिझक बताओ, क्या परेशानी है आपको?”

वह व्यक्ति झिझकते हुए बोला,
“बीरबल जी, मेरी समस्या यह है कि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं। बचपन में पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया, अब बहुत पछता रहा हूं। मैं भी चाहता हूं कि लोग मेरा सम्मान करें, लेकिन अब तो लगता है यह कभी नहीं हो पाएगा।”

बीरबल मुस्कराया और बोला,
“अरे, ऐसा क्यों सोचते हो? अगर तुम अभी भी मेहनत करोगे, तो सफलता ज़रूर मिलेगी। देर भले हुई है लेकिन मेहनत करके तुम विद्वान व्यक्ति बन सकते हो.”

वह व्यक्ति बोला,
“इस तरह मेहनत करके ज्ञान पाने में तो सालों लग जाएंगे। मैं इतना इंतज़ार नहीं कर सकता। क्या कोई आसान तरीका नहीं है जिससे तुरंत प्रसिद्ध हो जाऊं?”

बीरबल ने कहा,
“प्रसिद्धि पाने का आसान तरीका तो कोई नही है। अगर सच्चे अर्थों में सम्मान और पहचान चाहिए, तो मेहनत करनी ही होगी। मेहनत करके ही प्रसिद्धि पाई जा सकती है।”

यह सुनकर वह आदमी कुछ सोच में पड़ गया और बोला,
“मुझमें इतना धैर्य नहीं है। मैं तो चाहता हूं कि लोग मुझे अभी से ‘पंडितजी’ कहें।”

बीरबल ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
“ठीक है, अगर ऐसा ही चाहते हो तो मेरे पास एक उपाय है। कल सुबह बाजार में जाकर खड़े हो जाना। मैं अपने कुछ सेवक भेजूंगा, जो जोर-जोर से तुम्हें ‘पंडितजी’ कहकर पुकारेंगे। जब लोग उन्हें तुम्हें पंडितजी बोलते हुए सुनेंगे, तो लोगों ध्यान वहां जाएगा और वे भी तुम्हें ‘पंडितजी’ कहने लगेंगे। लेकिन ध्यान रखना, तुम्हें गुस्से का नाटक करना होगा। उन्हें पत्थर या लाठी से भगाने की एक्टिंग करना, पर किसी को चोट न लगे।”

वह व्यक्ति कुछ समझ नहीं पाया और अपने घर चला गया।

अगले दिन वह बाजार पहुंचा और बीरबल के बताए अनुसार खड़ा हो गया। तभी बीरबल के सेवक वहां आए और जोर-जोर से पुकारने लगे,
“पंडितजी! पंडितजी! पंडितजी!”

यह सुनते ही वह आदमी लाठी लेकर उनके पीछे दौड़ पड़ा। वहां मौजूद लोग यह सब देख रहे थे। लोगों को यह सब देखने में बड़ा मज़ा आने लगा। जल्द ही आस-पास के लोग भी उसका नाम लेकर चिल्लाने लगे – “पंडितजी! पंडितजी!”

देखते ही देखते, वह व्यक्ति पूरे इलाके में ‘पंडितजी’ के नाम से मशहूर हो गया। जब भी लोग उसे देखते, यही कहकर पुकारते। असल में लोग उसका मज़ाक उड़ाते थे, लेकिन उसे लगा कि वह सचमुच प्रसिद्ध हो गया है।

ऐसा होते होते कुछ महीने बीत गए। अब वह व्यक्ति पंडितजी पंडितजी नाम सुन सुनकर थक चुका था। उसे समझ आने लगा कि लोग उसका सम्मान नहीं, बल्कि उपहास कर रहे हैं। वह सोचने लगा कि शायद लोग मुझे पागल समझते हैं। परेशान होकर वह दोबारा बीरबल के पास गया।

वह बोला,
“बीरबल जी, मैं अब ‘पंडितजी’ सुन सुनकर थक चुका हु। अब में खुद को पंडितजी कहलाना नहीं चाहता। शुरू में तो मुझे अच्छा लगा, पर अब मुझे समझ आ गया कि लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं। मैं चाहता हूं कि लोग मुझे इज़्ज़त से देखें, न कि हंसी का पात्र समझें।”

बीरबल मुस्कराया और बोला,
“मैंने तो पहले ही कहा था, झूठी प्रसिद्धि ज़्यादा दिन नहीं टिकती। लोग तुमको वो कैसे कह सकते है जो तुम हो ही नहीं। प्रसिद्धि बिना मेहनत के नहीं मिल सकती। अब तुम एक काम करो। कुछ समय के लिए दूसरे शहर चले जाओ। जब वापस लौटो, तो जो तुम्हें ‘पंडितजी’ कहें, उनकी बात पर ध्यान मत दो। सभ्य और शांत बने रहो। धीरे-धीरे लोग खुद समझ जाएंगे कि तुम्हारा मजाक उड़ाना बेकार है।”

उसने वैसा ही किया। कुछ महीनों बाद जब वह लौटा, तो लोगों ने फिर से उसे ‘पंडितजी’ कहकर चिढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उसने उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। धीरे-धीरे लोगों ने उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। अब सबने उसे पहले की तरह उसके असली नाम से बुलाना शुरू कर दिया।

अब वह आदमी समझ गया था कि प्रसिद्धि पाने का कोई आसान रास्ता नहीं होता — सम्मान उसी को मिलता है जो मेहनत और सच्चाई से काम करता है।

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