ईमोशनल हिंदी कहानी- निकिता की नई जिंदगी। Emotional Story in Hindi

Hindi Story. Emotional Story in Hindi.  हिंदी कहानी. ईमोशनल स्टोरी इन हिन्दी। Emotional Social Hindi story.  ईमोशनल हिंदी कहानी- निकिता की नई जिंदगी। निकिता आज हाथ मे गिफ्ट लिए सुबह-सुबह मेरे सामने खड़ी थी। उसे देखते ही मेरी आंखों में चमक आ गई। मैंने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘कहां थी इतने दिनों से? मैं कितना याद … Read more

सामाजिक कहानी- दौलत का नशा। Hindi Story. Hindi Social Story. सामाजिक कहानी।

Hindi Story. Hindi Social Story. सामाजिक कहानी। हिंदी कहानी सामाजिक कहानी- दौलत का नशा। रविवार का दिन था। मैं मंत्री जी से मिलकर उन्हें अपनी प्रोजेक्ट की रिपोर्ट देने गया था जो उन्होंने मांगी थी। वहाँ से लौटते वक्त जूस की दुकान में जूस पीने रुक गया। अचानक मैंने देखा एक गरीब सा युवक पुराने … Read more

सामाजिक कहानी- गुरुदक्षिणा। Hindi Story. Hindi Social Story. हिन्दी कहानी 

Hindi Story. Hindi Social Story. हिन्दी कहानी 

सामाजिक कहानी- गुरुदक्षिणा। 

एस. पी. नीरज की मोबाइल की घंटी बजी तो पता चला कि शहर में विषाक्त भोजन खाने से 40-50 लोग बीमार हो गए हैं और उन्हें सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है।
पुलिस प्रशासन की ओर से एस. पी. नीरज को तुरंत पहुंचना था ड्यूटी पर, वे तुरंत ही निकल पड़े।…. अस्पताल पहुंचकर देखा तो वार्ड में पलंगों पर तो मरीज थे ही, जमीन पर भी बिस्तर डाले हुए थे। चारों ओर रोगी ही रोगी और उनके परिजन हस्पताल में दिख रहे थे। सभी ओर परेशान, कराहते लोग। पुलिस अधिकारी होते हुए भी नीरज में मानवता थी। सब रोगियों को देखकर,औपचारिकताएं पूरी करके और इंचार्ज डॉक्टर से बात करके जा ही रहे थे कि जमीन पर सोए एक मरीज को देख कर रुक गए।
डॉक्टर से पूछा, ‘क्या ये भी इन मरीजों में से ही हैं।’
डॉक्टर को ठीक से पता नहीं था। ‘नहीं, शायद अभी-अभी कुछ ही देर पहले आए हैं।’
डॉक्टर ने संकोचपूर्वक जवाब दिया और नर्स को बुलाया। नर्स को पता था। नर्स कहने लगी, ‘इस पेशेंट को रोडवेज का ड्राइवर और कंडक्टर छोड़ गया है। कह रहे थे कि बस में बेहोश पड़ा था।
कंडक्टर ने बताया, ‘सफर में इसके पास एक आदमी बैठा था, पर आधे रास्ते के बाद ही वह तो उतर गया। मगर यह व्यक्ति सोया था या बेहोश था, कहा नहीं जा सकता। अभी 5 मिनट पहले ही आया है यहां।’
नीरज ने डॉक्टर से उस मरीज के लिए एक बेड की रिक्वेस्ट की और चेकअप के लिए कहा। डॉक्टर ने बड़ी मुस्तैदी से, पर बड़ी मुश्किल से बेड का इंतजाम किया।
नीरज ने डॉक्टर से कहा, “शायद बस में सहयात्री ने सामान, घड़ी पर्स वगैरह लेने के लिए गहरी नींद या बेहोशी की दवा दी है क्योंकि इनके पास वॉलेट, घड़ी, मोबाइल, नगदी कुछ नहीं मिला है। जहरखुरानी का मामला लगता है। यह सज्जन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं और मेरे गुरु रहे हैं। आज मैं जहां हूं इन्हीं के कारण हूं। मैं जरूरी काम से जा रहा हूं, मेरा फोन नंबर लिखिए। इन्हें होश आते ही, मुझे फोन कर दीजिए।” डॉक्टर से बात करके एस. पी. नीरज चले गए। कुछ समय बाद ही प्रोफेसर साहब की चेतना आने लगी। वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि वे तो बस में थे। आगरा से जयपुर के लिए चले थे। यहां अस्पताल में कैसे? सिर में कुछ भारीपन सा था, थकान सी महसूस हो रही थी। नर्स ने S.P. नीरज को फोन करके प्रोफेसर के होश में आने की सूचना दी। नीरज बड़ी शीघ्रता से अस्पताल पहुंच गए। प्रोफेसर का घर का फोन नंबर लिया। उधर फोन करने पर प्रोफेसर की पत्नी ने जैसे ही सुना कि वे अस्पताल में हैं, उनके धैर्य का बांध टूट गया। वे अधिक बात न कर सकीं। फोन बेटे को दे दिया। बेटे ने अस्पताल का पता पूछा और थोड़ी देर में पहुंचने के लिए कहा। नीरज को सामने देखकर, प्रोफेसर साब बोले, ‘अरे! मुझे अस्पताल कौन लाया। क्या हुआ है। मुझे कुछ याद नहीं आ रहा।’
‘आपको बस का ड्राइवर और कंडक्टर बेहोशी की हालत में यहां अस्पताल लाए है। मैं किसी केस के सिलसिले में आया था तो आपको यहां जमीन पर ही देखा।’ नीरज ने बताया।
‘क्या हुआ था मुझे।’ प्रोफेसर बोले।
‘सर, आप जैसे समझदार व्यक्ति के साथ जहरखुरानी की घटना। कुछ समझ में नहीं आता।’ S. P. नीरज ने कहा।
‘क्या बताऊं…. उस सहयात्री के इरादे, समझ ही नहीं पाया मैं। रोडवेज की बस में अच्छे कपड़ों में एक शिक्षित युवक पास आकर बैठ गया। हम लोग देश विदेश, राजनीति, समाज, फिल्म… और भी ना जाने क्या-क्या बातें करते रहे। मुझे उस युवक पर रत्ती भर भी संदेह नहीं हुआ। मैं ऐसी ही घटना जब अखबार में पढ़ता था तो तरस खाता था, पढ़े-लिखे लोगों की बुद्धि पर। और मैं ही फंस गया शिकंजे में। उसे पता नहीं कैसे मालूम हो गया कि मेरे पास काफी नकदी है। वह आगरा से ही….शायद बैंक से ही मेरा पीछा कर रहा था। वृंदावन का प्रसाद कहकर उसने दिया और भक्ति भाव से मैंने ग्रहण किया। उसके बाद मुझे पता नहीं क्या हुआ। इतना नकद लेकर मुझे चलना ही नहीं चाहिए था। मुझे तो स्वयं पर बहुत ज्यादा विश्वास था। मेरे ओवर कॉन्फिडेंस पर उस लड़के की सुपर स्मार्टनेस भारी पड़ी। नकदी, सामान और मोबाइल खो देने का दुख तो है ही, लेकिन इससे ज्यादा दुख है बेवकूफ बनने का।’ सचमुच प्रोफेसर शर्मिंदा थे।
‘होता है…. होता है। कभी-कभी दूसरे पर विश्वास करना भारी पड़ जाता है। सर, यह क्या कम है कि आप ठीक हैं।’ नीरज ने प्रोफेसर को गिल्ट से निकालते हुए कहा।
‘ड्राइवर और कंडक्टर में इंसानियत थी, इसलिए यहां भर्ती करा गए। अब भी लोगों में मानवता है, यही देख कर अच्छा लगता है।’ नीरज ने संतोष की सांस लेते हुए कहा।
इस परेशानी में भी प्रोफेसर के मुख पर मुस्कान फैल गई, बोले ‘तुम भी तो नजरअंदाज करके जा सकते थे। लेकिन तुमने भी मेरे प्रति कर्त्तव्य- पालन किया।’
कृतज्ञ स्वर में नीरज ने कहा,’आप तो जानते ही हैं, प्रतियोगी परीक्षा के समय मेरी कितनी मदद की है आपने। मेरी तो आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं थी कि कोचिंग में जा पाता। जब भी कहीं अटका आप जैसे लोगों ने ही सहारा दिया। आपको देखते ही मैं परेशान हो गया था।’
‘तुम जैसे छात्रों के कारण ही एक शिक्षक होने पर गर्व होता है। प्रोफेसर ने गद्गद् होकर कहा।
‘क्या हुआ,आप ठीक है ना? ‘ वार्ड में प्रवेश करते ही प्रोफेसर साहब की पत्नी ने बेंच पर बैठते हुए पूछा।
‘सर बिल्कुल ठीक हैं। मैं डॉक्टर से इन्हें डिस्चार्ज कराने की बात करता हूं।’ कहते हुए नीरज जल्दी से डॉक्टर के कमरे की ओर चल दिए। डॉक्टर ने प्रोफेसर को घर जाने की अनुमति दे दी। प्रोफेसर को परेशानी हुई, नुकसान भी हुआ, सबक भी मिला।….. पर तूफान गुजर चुका था। अब सब ठीक था। ‘
” सर, आप घर पर आराम कीजिए। कभी–कभी ऐसी घटनाए हो जाती है। पर मैं अब उस व्यक्ति को पकड़ कर ही रहूंगा जिसके कारण आपको इतनी परेशानी हुई।’ नीरज ने गुरु-दक्षिणा देने के भाव से कहा।

तेनालीराम की कहानिया 

error: Content is protected !!