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हिन्दी कहानी – अनोखा महिलादिवस।

आज सुनीता की नींद कुछ देर से खुली। रोज सुबह पांच बजे का अलार्म लगाकर सोती थीं, लेकिन आज अलार्म बजा ही नहीं। पति अशोक मॉर्निंग वॉक पर चले गए थे। सुनीता को बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि रोज वाक पर जाने से पहले वो सुनीता को बता कर जाते थे। वे रसोई में चाय बनाने जा ही रही थीं कि बड़े बेटे रवि के कमरे से आवाज आई- ‘मां! मेरी चाय मत बनाना।’
तभी पति अशोक भी वॉक से लौट आए थे। सुनीता ने उनसे कुछ नाराजगी जताते हुए कहा -‘आज मेरी नींद नहीं खुली तो जगा लेते। मुझे बिना उठाए आज वाक पर भी चले गए।
अशोक ने कहा, – ” आज में जल्दी उठ गया था इसलिए तुम्हारी नींद खराब न हो इसलिए तुमको उठाया नही।
सुनीता ने कहा, – कोई बता नही। मैं चाय बना लेती हू ?’ अशोक जी ने जवाब दिया – ‘ आज चाय तुम नही बनाओगी। आज चाय हम बनायेगे।’
सुनीता जी ने उनकी ओर हैरत से देखते हुए कहा- आप बनायेगे ? आप सब को क्या हो गया है आज?’
अशोक जी ने मुस्कुराते हुए कहा – ‘तुम तैयार हो जाओ… हमें अर्जेंट कहीं पहुंचना है।’ यह कहकर अशोक जी बाथरूम की तरफ बढ़ चुके थे। छोटा बेटा तनु भी कहीं नजर नहीं आ रहा था। सुनीता जी बेमन से तैयार होने के लिए बढ़ीं। उन्हें आज कुछ अजीब-सा लग रहा था। कमरे में आईं तो देखा टेबल पर हल्के गुलाबी रंग की नई साड़ी और ब्लाउज रखा हुआ था।
साड़ी हाथ में लेकर सुनीता जी मुस्कुरा उठी थीं। वे आश्चर्य से भर उठी थीं। सुनीता जी जब वह साड़ी पहनकर तैयार हुईं तो पति को खुद की ओर निहारते हुए पाया। वे नई दुल्हन की तरह शरमा गई थीं।
सुनीता ने अशोक से कहा – ” आज आप सब को क्या हो गया है। कुछ तो है आज।”
अशोक जी ने कहा- वो सब छोड़ो, हमे जल्दी चलना है। चले ?’
तो सुनीता जी ने पूछा-‘कहां चलना है?’
तभी उनके बच्चो ने आकर उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी थी। उनके दोनों हाथों को उनके बेटों रवि और तनु ने थाम लिया था। वे उनका हाथ थामकर आगे बढ़ रहे थे।

सुनीता को आज सब नया और उत्साहपूर्ण लग रहा था।सुनीता जी को पति और बच्चों के चाय-नाश्ते की चिंता हो रही थी। उन्होंने कहा- ‘आप लोगों के लिए चाय नाश्ता?’
तभी आगे चल रहे अशोक जी ने जवाब दिया- ‘तुम उसकी चिंता मत करो… हम मैनेज कर लेंगे… आज ही नहीं, अब से रोज सुबह के चाय- नाश्ते की जिम्मेदारी हम पिता-पुत्रों की है।’
यह सुनकर सुनीता जी मुस्कुराने लगीं। कुछ दूर चलने के बाद उन्हें एक कुर्सी पर बिठा दिया गया था। जब उनकी आंखों की पट्टी खोली गई तो उन्होंने आंखें मलते हुए जो दृश्य देखा तो भरोसा ही नहीं हुआ। कॉलोनी भर की महिलाएं फागुनी रंग की एक जैसी दिखने वाली साड़ियों में वहां बैठीं खिलखिला रही थीं। सभी औरते एक-दूसरे से बतिया रही थीं। सामने लिखा हुआ था- ‘हम पुरुषों के जीवन को खूबसूरत बनाने वाली महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं।’
सुनीता जी देख रही थीं कि बहुत ही खूबसूरत सजावट की गई थी। कॉलोनी की सभी महिलाओं के पति और बच्चे सारी व्यवस्था संभाल रहे थे। सुनीता जी की सहेलियों ने बताया कि सुबह से उनके साथ भी वही हुआ, जो सुनीता जी के साथ हुआ था। सुबह से आज उनके पतियों ने कुछ भी काम नही करने दिया।
सारे पुरुष यह कहकर वहां से बाहर चले गए थे- ‘रात तक के नाश्ते और खाने की व्यवस्था हम पुरुष संभालेंगे। आप सब आज के कार्यक्रम को एंजॉय कीजिए। सभी महिलाओं के लिए यह बहुत अनोखा दिन था। गेट टुगैदर तो वे किटी पार्टी में भी करती थीं, लेकिन यह दिन इसलिए अनोखा था, क्योंकि इसे उनके पतियों और बच्चों ने उनके लिए खास बनाया था। खूब हंसी-ठहाके हुए। गीत सुनाए गए। कविताएं पढ़ी गईं। खेल खेले गए। बिना किसी फिक्र के सब महिला दिवस को एंजॉय कर रहे थे। यह महिला दिवस सचमुच यादगार बन गया था।

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