हिन्दी कहानी- मिश्रा जी की भागवत कथा 

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मिश्रा जी सरकारी सेवा से सेवानिवृत हो गए थे। श्रीमती मिश्रा ने सोचा कि मिश्रा जी की सेवानिवृति के पश्चात् भागवत कथा करवाने का यह सबसे अच्छा मौका है। उन्होंने इस बारे में मिश्रा जी से बात की तो वह भी इसके लिए आसानी से तैयार हो गए। उन्होंने पंडित जी को बुलाया। पण्डित जी से सभी तैयारियों एवं संबंधित सामग्री आदि की सूची ले ली गई। कथा की तारीख निश्चित कर दी गई। सभी रिश्तेदारों एवं मित्रों को कॉल करके भागवत कथा में आने का निमंत्रण देना शुरू कर दिया गया। इसी बीच श्रीमती मिश्रा को उनके रिश्तेदार ने बताया कि कथा में यदि तोता भी पण्डित जी के साथ आसन पर बैठे तो कथा का और भी अधिक पुण्य मिलता है। यह बात श्रीमती मिश्रा ने मिश्रा जी को बताई तो मिश्राजी ने किसी न किसी प्रकार कहीं से एक तोते का इंतजाम किया। तोते के लिए एक बहुत सुंदर-सा पिंजरा मंगवाया गया, जिसमें उसके लिए पानी, खाने आदि की उचित व्यवस्था एवं बैठने के लिए समुचित स्थान था। सभी लोग प्यार से तोते को मिट्ठू कहते थे। बच्चे, बड़े सब तोते से खेलना चाहते। मिश्र जी भी तोते का पास बैठ कर उसको मिट्टू मिट्ठू बोलते। मिश्रा जी ने नोटिस किया कि मिट्ठू, पिंजरे में उदास रहता था। वह बहुत थोड़ा खाता था, पानी भी बहुत कम पिता था और पिंजरे के एक कोने में बैठा रहता था। सबको लगा कि शुरू-शुरू में नए वातावरण की वजह से मिट्ठू उदास होगा और धीरे-धीरे घर के सदस्यों से घुल-मिल जाएगा, परंतु मिट्टू के व्यवहार में कोई बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं आया। मिट्ठू हमेशा उदास सा पिंजरे के एक कोने में बैठा रहता। कथा के दिन ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहे थे, तैयारियां जोर पकड़ रही थीं। मेहमान आने शुरू हो गए थे और घर में चहल-पहल बढ़ने लगी थी। भागवत कथा के एक दिन पूर्व पण्डित जी तैयारियों का जायजा ले गए और कह गए कि कल प्रातः 10 बजे से भागवत् कथा शुरू कर देगें।

मिश्रा जी सारे दिन भागवत कथा की तैयारी के लिए भाग दौड़ कर रहे थे, अतः शाम को जल्दी खाना खा कर वह अपने कमरे में जाकर सो गए। अचानक आधी रात को मिश्रा जी की नींद खुलती है, देखा लाइट चली गई थी, कमरे में घुप अंधेरा था। यद्यपि कमरा बड़ा था, परंतु मिश्रा जी को लगा कमरा बहुत छोटा है। उन्होंने कमरे की सारी खिड़कियां खोल दी एवं बाहर लॉबी में आ गए। अचानक उनको मिट्टू को याद आई। उन्होंने टॉर्च जलाकर मिट्ठू के पिंजरे की ओर देखा, मिट्टू एक कोने में दुबका हुआ था और उसकी आंखे खुली हुई थीं, शायद उसे नींद नही आ रही थी। अचानक मिश्रा जी को लगा पिंजरे में मिट्ठू की जगह वह स्वयं है और बाहर निकलने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं। मिश्रा जी ने एक बार अपने कमरे को देखा, खुद को देखा, मिट्ठू के पिंजरे को देखा और मिट्ठू को देखा। मिश्रा जी अपने कमरे में आ कर लेट गए। मिश्रा जी की नींद आंखों से कोसों दूर भाग चुकी थी। कभी बिस्तर पर करवट बदलते, कभी बाहर आकर लॉन में टहलने लगते। करवट बदलते बदलते रात गुजर गई और पूर्व दिशा में धीरे- धीरे सूर्य की किरण ने दस्तक देना प्रारंभ कर दिया। मिश्रा जी एक बार फिर मिट्ठू के पिंजरे की ओर आए। मिट्ठू का पिंजरा उठाया और सीधे घर के लॉन में आ गए। लॉन में आकर उन्होंने मिट्ठू की ओर देखा, मानो क्षमा मांग रहे हों और पिंजरे का छोटा-सा दरवाजा खोल दिया। मिट्ठू धीरे-धीरे खुले दरवाजे की ओर आया, एक क्षण मिश्रा जी की ओर देखा, मानो धन्यवाद दे रहा हो और पंख फड़फड़ाकर उड़ा और लॉन में ही लगे नीम के पेड़ की सबसे नीचे वाली डाली पर बैठ गया। मिश्रा जी ने इससे पहले इतनी चमक मिट्ठू की आंखों में कभी नहीं देखी थी। सुबह 10 बजे भागवत् कथा प्रारंभ हो चुकी थी। पण्डित जी के पास ही आसन पर मिट्टी का बना तोता बैठा था। मिट्ठू बाहर नीम के पेड़ पर फुदक-फुदक कर चहचहा रहा था, मानो कथा सुन रहा हो । मिश्रा जी जो कि कथा में सपत्नीक सबसे आगे बैठे हुए थे। वे कभी पण्डित जी की ओर ओर तो कभी चहचहाते मिट्ठू को देख रहे थे। मिश्रा जी की रात वाली घबराहट दूर हो चुकी थी और उन्हें भागवत् कथा में परम् आनन्द मिल रहा था।

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