होलिका दहन क्यों किया जाता हैं? होलिका दहन के पीछे की कथा क्या है?

 Holika Dahan kyo kiya jata he.

होलिका दहन हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।  होलिका दहन के त्यौहार मानने के पीछे एक बहुत ही पुरानी कथा है । हिंदू धर्म में बहुत त्यौहार हर साल उल्लास के साथ बनाए जाते हैं उसमें से एक होलिका दहन का त्यौहार भी है । होलिका दहन के अगले दिन भारतवर्ष में होली धूमधाम से खेली जाती है । होली को रंगों का त्योहार कहा जाता है। इसे आम भाषा में धूलंडी भी कहते हैं । पुराणों में होलिका दहन के संदर्भ में भगवान नारायण के परम भक्त प्रहलाद की कथा का वर्णन मिलता है । प्रहलाद के पिता का नाम हिरण्यकश्यप और दादा का नाम कश्यप ऋषि और दादी का नाम दिति था । प्रहलाद की माता का नाम कयाधु था।

Holika Dahan kyo Kiya jata hai ?

इस कथा में यह बताया गया है कि भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप एक बहुत ही अत्याचारी राजा था । हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था । उसने अपने राज्य में नारायण के नाम लेने तक पाबंदी लगा रखी थी । मान्यता के अनुसार हिरण्यकश्यप भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त करने की इच्छा से उनकी तपस्या करने के लिए वन में चला गया था।

इसी बीच इंद्र उनकी पत्नी कयाधु अपहरण कर लेता है और इंद्र उनकी पत्नी को नारद जी के आश्रम में ले गए ।  नारद जी ने कयाधु को अपने आश्रम में रखा । उस समय कयाधु के गर्भ में प्रहलाद पल रहे था।  नारद जी के आश्रम में भगवान नारायण की भक्ति हुआ करती थी। सभी भगवान नारायण की पूजा और भक्ति में लगे रहते। यह सब देख कयाधु भी भगवान नारायण की भक्ति करने लगी । उनके पेट में पल रहे प्रहलाद भी गर्भ से ही भगवान नारायण की भक्ति करने लगे थे । प्रहलाद ने माता के पेट से ही नारायण की भक्ति करना शुरू कर दिया। इसलिए कहा जाता है गर्भवती महिला को भगवान की भक्ति करनी चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे शिशु को अच्छे संस्कार मिले।

 कुछ समय बाद नारदजी कयाधु को प्रहलाद के साथ वापस उनके घर छोड़ आते है। प्रहलाद वहा भी भगवान नारायण की पूजा किया करता था । यह बात हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी। उसने प्रहलाद को भगवान नारायण की भक्ति करने से रोकने के लिए बहुत प्रयत्न किए परंतु प्रहलाद ने भगवान नारायण की भक्ति करना बंधी किया। अतः में हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की योजना बनाई । हिरण्यकश्यप की बहन का नाम होलिका था। होलिका को वरदान में एक चुन्नी मिली थी । उसको यह वरदान था कि अगर वह चुन्नी को ओढ़ कर अग्नि में बैठी जाति है तो भी अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी । इसीलिए वह प्रहलाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि के ऊपर बैठ गई और उसने चुन्नी को स्वय ओढ़ लिया लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से अग्नि उनके भक्त प्रहलाद का कुछ नहीं बिगाड़ पाई बल्कि होलीका उस अग्नि में जलकर स्वयं भस्म हो गई। इसीलिए भगवान नारायण द्वारा अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने की याद में होलिका दहन का त्यौहार मनाया जाता है। होलिका दहन का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार हैं। होलिका दहन का त्यौहार पाप पर सत्य की जीत का त्यौहार हैं। होलिका दहन को सभी लोग शाम को होलिका दहन करते थे और अपने परिवार के लिए खुशियों की कामना करते है। दोस्तों आप सभी को होलिका दहन की कथा कैसी लगी कमेंट करने जरूर बताएं। कमेंट में जय श्री नारायण जरूर लिखे।

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