बच्चो की कहानी- कबुतरी और लालची किसान। Baccho ki kahaniya. Child Story in Hindi

Baccho ki Kahani- kabutri or Lalchi kisan ki Story
समंदर के किनारे एक ऊँचा पर्वत था। उस पर्वत की तलहटी में एक सुरक्षित जगह देखकर एक कबुतरी ने अपना घोंसला बनाया। कबुतरी ने घोंसले में दो अंडे दिए। कुछ दिनों बाद उन अंडों से 2 नन्हे नन्हे चूजे निकले। कबुतरी अपने बच्चों के लिए खाने की तलास में निकली।
उड़ते-उड़ते उसे दूर एक हरा-भरा ज्वार का खेत नज़र आया। वह उस खेत में गई और वहां से कुछ ज्वार के दाने अपने बच्चो के लिए ले आई। अब वह रोजाना उस खेत से अपने बच्चों के लिए चुग्गा ले जाने लगी।
खेत का मालिक को पता चला की कबूतरी रोज खेत से दाने ले जाती है। खेत का मालिक लोभी था। उसने सोचा कि यह कबुतरी तो हमेशा खेत में बिगाड़ करती है, इसे पकड़ना चाहिए। उसने कबूतरी को पकड़ने के लिए एक योजना बनाई।

एक दिन उसने ज्वार के पौधे-पौधे पर गुड़ की पात का लेप कर दिया ताकि कबूतरी जब ज्वार के दाने लेने आए तो गुड़ की पात में चिपक जाए। कबुरती चुग्गे के लिए खेत में उतरी तो गुड़ की पात में चिपक गई। थोड़ी देर बाद जब किसान खेत में आया उसने कबूतरी को चिपका हुआ देख लिया। कबुतरी उड़ने के लिए छटपटाने लगी तो किसान ने आकर उसे पकड़ लिया। उसे पीपल के पेड़ पर बाँध दिया।
कुछ समय के बाद भेड़ चराने वाला गडरिया उधर से निकला। फड़फड़ाहट करती हुई कबुतरी ने करुण स्वर में गडरिये से विनती की -“कृपया मेरी रक्षा करे। मुझे यहाँ से छुड़ाए।”
कबुतरी की विनती सुनकर गडरिये को दया आ गई। उसने खेत के मालिक से कहा-“महोदय, कृपया इस कबुतरी को छोड़ दे।
खेत के मालिक ने कहा, “नही इसने मेरे खेत मे बहुत नुकसान किया है। इसको में नही छोडूंगा।
फिर गड़रिये ने कहा,” महोदय, आप चाहे तो मेरी भेड़ो में से छाँटकर अच्छी-सी एक भेड़ ले ले और एक भेड़ के बदले में इस कबुतरी को छोड़ दे।”
खेत का मालिक लोभी था। उसने सोचा कि यह इस कबुतरी से इसको कोई फायदा होता होगा इसलिये यह कबूतरी को मुझसे माग रहा है। इसलिए उसने कहा,”सिर्फ एक भेड़ के बदले में इसको नही छोडूंगा। मुझे सारी भेड़े चाहिए , तभी में इसको छोडूंगा।”
गडरिये ने कहा “मैं तो नौकर हूँ। लेनी हो तो एक भेड़ ले ले। इससे अधिक देना मेरे बस की बात नहीं।”
उसने काफी विनती कि कबूतरी को छुड़वाने की, पर खेत का मालिक नहीं माना। थोड़ी देर बाद गड़रिया वहा से चला गया।

कुछ देर बाद ग्वाला अपनी गायों के एक बड़ा झुंड के साथ वहा आया।
कबुतरी ने वैसे ही करुण स्वर में विनती की-“कृपया मेरी रक्षा करे। मुझे यहाँ से छुड़ाए।”
कबूतरी की विनती सुनकर ग्वाले को दया आ गई। उसने खेत के मालिक से कहा- “कृपया करके इस कबुतरी को छोड़ दे”
खेत के मालिक ने मना कर दिया।
फिर ग्वाले ने कहाँ,” आप चाहे तो मेरी गाये में से कोई भी अच्छी गाय छाँटकर ले ले और इस कबूतर को छोड़ दे।”
पर खेत का मालिक अत्यन्त लोभी था। उसने कहा-” नही मुझे सारी की सारी गायें दे, तो ही इसको छोडूंगा।”
ग्वाले ने कहा “मैं तो नौकर हूँ। इससे अधिक देना मेरे हाथ की बात नहीं। लेनी हो तो एक बढ़िया गाय ले ले।”
काफी समय तक विनती करने के बाद भी किसान नहीं माना।
थोड़ी देर बाद ग्वाला भी वहा से चला गया।
फिर कुछ देर बाद एक ग्वाला भैंसों के झुंड के साथ वहा आया। कबुतरी ने फिर करुण स्वर में विनती की “कृपया मेरी रक्षा करे। मुझे यहाँ से छुड़ाए।”
कबुतरी की यह विनती सुनकर भैंसों के ग्वाले के हृदय में दया उमड़ पड़ी। उसने खेत के मालिक से कहा,” कृपया करके इस कबुतरी को छोड़ दे”
खेत के मालिक फिर से मना कर दिया।
फिर ग्वाले ने कहाँ,”आप कोई अच्छी सी भैस छाँटकर ले ले और इस कबुतरी को छोड़ दे।”
पर खेत का मालिक बड़ा लालची था। उसने कहा – “सारी की सारी भैंस दे तो में इस कबूतरी को छोडूंगा।”
तब भैसो के ग्वाले ने कहा – “मैं तो एक मामूली नौकर हूँ। इससे अधिक देना मेरे हाथ की बात नहीं। लेनी हो तो एक अच्छी भैंस ले ले।”
उसने बहुत देर तक विनती कि, पर किसान नहीं माना तो ग्वाला वहा से चला गया।
कुछ समय बाद गडरिये ऊँटों का झुंड के साथ उधर से गुजरा। कबुतरी ने कुरुना भरे स्वर में विनती की,”कृपया मेरी रक्षा करे। मुझे यहाँ से छुड़ाए।”
कबुतरी की यह विनती सुनकर गडरिये को काफी दया आई। उसने खेत के मालिक से कहा,” कृपया करके इस कबुतरी को छोड़ दे”
खेत के मालिक फिर से मना कर दिया।
फिर गड़रिये ने कहाँ,”-” आप इन ऊँटों के झुंड में से एक अच्छा-सा ऊँट छाँटकर रख ले और इस कबूतरी को छोड़ दे।”
पर खेत का मालिक बहुत लोभी था। उसने कहा- “सारे का सारा ऊँटों का झुंड दे, तो ही में इसे छोडूंगा।”
तब गडरिये ने कहा- “मैं तो एक मामूली गडरिया हूँ। इससे अधिक देना मेरे हाथ की बात नहीं। लेना हो तो एक बढ़िया ऊँट ले ले।”
उसने भी किसान से बहुत विनती कि, पर किसान नहीं माना। थोड़ी देर बाद गडरिया वहा से चला गया।

कुछ देर बाद एक छोटे से बिल से एक चूहा निकला। दुखी कबुतरी ने छटपटाते हुए उससे भी करुण भरे स्वर में विनती की -“कृपया मेरी रक्षा करे। मुझे यहाँ से छुड़ाए।”

कबुतरी की यह विनती सुनकर चूहा का हृदय फट-सा पड़ा।चूहे को कबूतरी की यह हालत देखी नही गई। उसकी आँखों में आँसू निकल आए। खेत के मालिक पर उसे बहुत क्रोध आया।
उसने बहुत शांत स्वर में किसान से कहा “यदि तुम इस कबुतरी को छोड़ दे तो तुझे मैं सोने की एक माला दूँगा। सोने की माला में हीरे भी जड़े होगे ।”
सोने के दमकते पीले रंग और हीरे की रोशनी से खेत के मालिक की आँखें चौंधिया-सी गईं।
किसान बोला-” इस कबूतरी को छुड़ाने के लिए कितनो ने मुझसे विनती की पर मैंने किसी की बात नहीं मानी, में अपनी बात पर अड़ा रहा। पर तेरा कहना तो मानना ही पड़ेगा! किंतु केवल सोने की माला से काम नहीं सरने वाला। सोने का एक कंगना व सोने का एक भारी मुकुट भी दे तो इस कबुतरी को छोड़ दूँ। इसने मेरे खेत में कितना बिगाड़ा किया, तुम इसका अंदाज नहीं लगा सकते !
किसान की बात सुन कर चूहे ने कहा- “ठीक है मैं तीनों चीजें देने के लिया तैयार हु। पर कबुतरी को पहले छोड़ दो। कबूतरी के छोड़ने के बाद तीनो चीजे आपको दे दुगा”

पर खेत का मालिक नहीं माना। उसने कहा ,”पहले तीनो चीजे मुझे मिलेगी तभी कबूतरी को छोडूंगा।
खेत के मालिक नही माना तो चूहे ने बिल के पास वे तीनों चीजें लाकर रख दीं। खेत का मालिक खुशी से उछलने लगा। उसने उसी पल कबुतरी को छोड़ दिया। कबुतरी आजाद होते ही ऊपर आकाश में उड़ गई। खेत का मालिक सोने की तीनों चीजों को लेने के लिए बिल की तरफ दौड़ा ही था कि होशियार चूहे उन तीनों चीजों को लेकर बिल में घुस गया।
पैरों से बिल के बाहर धूल उछालते हुए कहने लगा-” लोभी किसान सोने के बदले धूल ले, सोने के बदले धूल ले।”
खेत का मालिक मुँह उतारकर आकाश में उड़ती हुई कबुतरी को एकटक देखता रहा। अब वह कर भी क्या सकता था। कबुतरी तो आकाश में उड़कर अदृश्य हो गई और चूहा पाताल में अदृश्य हो गया।

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