100 से अधिक, जीवन शैली पर महापुरुषों के अनमोल वचन।

More than 100 precious words of great men on lifestyle.

Mahaapurushon ke Anamol Vachan on Lifestyle in Hindi

1. लोग बुरे को देखते हैं तभी उन्हें पता लगता है कि क्या अच्छा है। बुरा नहीं हो तो क्या पता लगे कि अच्छा क्या है?

2. विश्वास बच्चों की चीज है। दिखावट और सच्चाई में भेद करना यह बड़ों का अधिकार है।

3. पानी पीने में पात्र का विचार रखा जा सकता है, पानी पीना ही बन्द कर दिया जाय, यह नहीं हो सकता ।
– सर्वदानन्द

4. धूर्तता तो निर्बलों का हथियार है। बलवान कभी नींच नहीं होता ।
– प्रेमचन्द

5. अपनी भूल अपने ही हाथों सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे ।
– प्रेमचन्द

6. जिसमें दया नहीं, उसमें कोई सद्गुण नहीं ।

7. डींग मारना निर्लज्जता की पराकाष्ठा है।

8. कला भ्रष्ट भी हो जाय, योगी पतित भी हो जाय, तो भी उसमें बड़प्पन का कुछ अंश तो रहता ही है।
– वृन्दावन लाल

9. जिनमें कोई गुण नहीं होता वे ही बहुत बकवास करते हैं।
-विविध

10. जो छोटे से मजाक पर इतनी जोर से ठहाका मार सकता है। उससे ज्यादा जरूरी काम नहीं हो सकता और जो केवल मुस्कराते हैं उसे अपने काम की फिक्र ज्यादा है ।
– रुजवेल्ट

11. केवल दुखी लोग ही भाग्य को शक्तिशाली कहते हैं। जो सुखी होते हैं वे अपनी सफलता का कारण स्वयं की योग्यता और प्रतिभा बतलाते हैं।

12. जीवन अमरता का शैशव काल है।

13. संसार में सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत करने का सरल और निश्चित उपाय यही है कि मनुष्य वास्तव में जैसा है वैसा ही अपने को व्यक्त करे ।
– सुकरात

14. धमकी देने वाला सदा कायर होता है। शक्तिवान पुरुष कभी धमकी नहीं देता, वह तो जो चाहता है वह करके दिखा देता है।
– बर्नार्ड शॉ

15. सिद्धि की अपेक्षा संकल्प में अधिक मिठास होता है।
– गोपीकान्त

16. पानी से न डरना एक बात है, और बिना तैरना जाने अथाह समुद्र में कूद पड़ना दूसरी बात है। दूसरी दशा में आदमी मूर्ख ही कहा जायेगा ।
-सर्वदानम्व

17. जितना ही कम ज्ञान होता है उतनी ही अच्छी नींद आती है।
– मेक्सिम गोर्की

18. मनुष्य जैसा जीवन व्यतीत करता है वैसे ही उसके विचार हो जाते हैं।
– मेक्सिम गोर्की

19. बहस में अक्सर वही जीतता है जो ऊँचा बोल पाता है।
– यशपाल

20. बुद्धिमान का एक घण्टे का जीवन मूर्ख के सम्पूर्ण जीवन के बराबर माना जाता है।
– आनन्द कुमार

21. जीवन एक पुष्प है और प्रेम उसका मधु ।
– बिक्टर ह्य गो

22. तुम उस व्यक्ति को भूल सकते हो, जिसके साथ तुम हंसे हो, किन्तु उस व्यक्ति को कदापि नहीं, जिसके साथ तुम रोये हो ।
– विविध

23. हैवान जब इन्सान बनने लगे तो सबसे पहला माफी का हकदार भी वही है।
– विविध

24. मजाक तुच्छ एवं अज्ञानी प्राणियों की प्रिय वस्तु है।
– चेस्टर फील्ड

25. केवल दो ही मनुष्य सम्पूर्ण रूप से भले हैं, एक वह जो मर चुका है, और दूसरा वह जो अभी पैदा नहीं हुआ है।
– एक चीनी कहावत

26. वह आदमी जो किसी समस्या के दोनों पहलुओं पर विचार नहीं करता, बेईमान है।
– लिकन

27. निरुद्देश्य जीना अकाल मृत्यु है।
– गेटे

28. जीवन एक प्रयोगशाला है ।

29. जिस व्यक्ति ने कल्पना के महल नहीं बनाये, उसे वास्तविक महल की उपलब्धि कभी नहीं हो सकती ।
-निवेदिता

30. धूर्त होना, मूर्ख होने की अपेक्षा अधिक बुरा नहीं।
-हरिभाऊ

31. क्रोध समझदारी को घर से बाहर निकाल देता है।
– गेटे

32. नफा तो दूसरों की मेहनत की चोरी का प्रतिष्ठित नाम है ।
– राहुल सांकृत्यायन

33. निर्लज्ज हारकर भी नहीं हारता, मरकर भी नहीं मरता ।
– जयशंकर प्रसाद

34. मनुष्य भावों और विचारों का पुतला है। जब भावों और विचारों में परिवर्तन आ गया तो वह व्यक्ति पहला व्यक्ति ही नहीं रहता ।
-यशपाल

35. गरीब के कान का सच्चा सोना भी सन्देह से देखा जाता है किन्तु अमीरों के गले में कोई पीतल भी डाल दे तो लोग उसे पीतल कहने का साहस न करेंगे ।
– दिनकर

36. अहित कामना क्रोध की पराकाष्ठा है।
– प्रेमचन्द

37. प्रसिद्धि श्वेत वस्त्र के सदृश है जिस पर एक धब्बा भी नहीं छिप सकता ।
– प्रेमचन्द

38. क्रियात्मक सहानुभूति ग्राम वासियों का विशेष गुण है ।
– प्रेमचन्द

39. जो गुणी होते हैं वे अपनी जिम्मेदारियों की बात सोचते हैं, जो गुणहीन होते हैं वे अपने अधिकारों का नाम रटा करते हैं।
– कवीन्द्र रवीन्द्र

40. सन्देहास्पद विषयों में सज्जन लोग अपनी आत्मा की गवाही को ही प्रमाण मानते हैं।
– कालीदास

41. संकल्प और भावना जीवन तराजू के दो पलड़े हैं।
-वृन्दावन लाल

42. जो किसी के लिए नहीं जीते, उनका जीना न जीना बरा- बर है।
– वृन्दावन लाल

43. समर्थ और शक्तिशाली को ही जीने का अधिकार है। दुर्बलों का दैव भी घातक है।
– सुमित्रानन्दन पंत

44. जो व्यक्ति प्रश्न करता है, स्वयं को पाँच मिनट के लिए मूर्ख सिद्ध करता है। पर जो व्यक्ति प्रश्न नहीं करता जीवन भर मूर्ख रहता है।
– कनफ्यूसियस

45. यह संसार कुत्ते की टेढ़ी दुम के समान है। सैकड़ों वर्षों से लोग इसे सीधा करने में लगे हैं। किन्तु यह टेढ़ा हो रहता है। इसलिए मनुष्य को दुराग्रह छोड़ देना चाहिए ।
– विवेकानन्द

46. मनुष्य स्वतन्त्र विचार वाला व्यक्ति होते हुए भी परिस्थितियों का दास है।

– भगवती चरण

47. दरिद्रता प्रकट करना दरिद्र होने से अधिक दुखदाई होता है।
– प्रेमचन्द

48. यौवन हलचल चाहता है। पग-पग पर वह कठिनाईयों को ढूंढ़ता है और अपनाता भी है।
– भगवती चरण

49. अभिलाषा के पूर्ण होने को सुख कहते हैं; अभिलाषा के न पूर्ण होने को दुःख कहते हैं।
– भगवती चरण

50. मनुष्य अपूर्ण है इसलिए सत्य का विकास जो उसके द्वारा होता है अपूर्ण होता है। यही विकास का रहस्य है। यदि ऐसा न हो तो ज्ञान की वृद्धि असम्भव हो जाय ।
– जयशंकर प्रसाद

51. प्रसन्नता स्वास्थ्य है, उदासी रोग है।
– हाती बर्टन

52. सन्तोष दरिद्रता का दूसरा नाम है।
– प्रेमचन्द

53.बदमाश जितना ही बड़ा होता है उतने ही उत्तरदायित्व से हीन उसके तर्क होते हैं। सदा कोई न कोई उसका विश्वास कर ही लेता है।
– लुई फिशर

54. मनुष्य जैसा सोचता है वैसा बन जाता है      – स्वामी विवेकानंद

55. अच्छी दवा चाहे वह कड़वी ही क्यों न हो, रोग को दूर कर देती है। सहृदयता पूर्ण सलाह चाहे वह कटु ही क्यों न हो हमारा पथ प्रदर्शन करती है।
– लुई फिशर

56. धनवानों के हाथ में माप एक ही है। वह विद्या, कला, सौन्दर्य, पवित्रता और तो क्या हृदय भी उसी से नापते हैं। वह माप है उनका ऐश्वर्य ।
– जयशंकर प्रसाद

57. कष्ट हृदय की कसौटी है। तपस्या अग्नि है।
– जयशंकर प्रसाद

58. बदला लेने से मनुष्य अपने शत्रु के समान हो जाता है।
-बेकन

59. बड़ों के पास याचना करनी चाहिए। अगर सफल नहीं भी हुई तो अधम से की गई सफल प्रार्थना से अच्छी ही रहेगी। महत्व की बात यह नहीं है कि क्या मिला ? महत्व की बात है कि किससे मिला ।
– विविध

60. संसार में दूसरों के मत से अपनी धारणा बनाना आसान है। स्वयं अपनी धारणा लिए हुए एकाकी रहना भी आसान है, परन्तु महान पुरुष वह है जो भीड़ में रह कर भी मधुर मुस्कान लिए हुए अपनी स्वतन्त्र्य एकाकी धारणा बनाये रखता है।
– एमर्सन

61. आत्म सम्मान मनुष्य के दुर्गुणों को बस में रखने की पहली लगाम है।
– बेकन

62. जहाँ सौ में से अस्सी आदमी भूखे मरते हों, वहाँ दारू पीना
गरीबों के रक्त पीने के बराबर है।
– प्रेमचन्द

63. विश्वास का जन्म हृदय से होता है, बुद्धि से नहीं । हृदय ही एक ऐसी जगह है जहाँ इसके सिवाय और कोई वस्तु उपलब्ध नहीं होती ।
– मेक्सिम गोर्की

64. विशाल हृदय वालों के लिए दूर वाले भी निकट हो जाते हैं।
– मेक्सिम गोर्की

65. जिस मनुष्य में लोभ है, उसे दूसरे दुर्गुणों की क्या आव- श्यकता है।
– भतृहरि

66. बैर का अन्त मृत्यु के साथ ही होता है।
-बाल्मीकि

67.पापियों को मारने में पाप नहीं, छोड़ने में पाप है।

68. संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता, जितना दबोगे उतना ही लोग दबाते हैं।
– प्रेमचन्द

69. समय और सागर की लहर किसी की प्रतीक्षा नहीं करती।
– रिचर्ड ब्रैथव्हेट

70. पिशाच हुए बिना ऐश्वर्य इकट्ठा नहीं होता ।
– चाणक्य

71. सबसे बड़ा दोष किसी भी दोष का ज्ञान न होना है।
-कार्लाइल

72. विनय से पात्रता प्राप्त होती है ।
– हितोपदेश

73. जिन्दगी जुए का एक खेल है। इसकी प्रत्येक घटना एक बाजी है। शादी, ब्याह, जन्म, मरण सब किस्मत की बात है।कब बाजी किधर पलटेगी, दाँव कैसा पड़ेगा, कोई नहीं जानता ।
– कमला कान्त

74. निराशा में प्रतीक्षा अन्धे की लाठी है।
– प्रेमचन्द

75. बिगड़ी हुई जनता वह जल-प्रवाह है जो किसी के रोके नहीं रुकता ।
– प्रेमचन्द

76. सफल जीवन पर्याय है, खुशामद, अत्याचार और धूर्तता का ।
– प्रेमचन्द

77. जीवन रोने के लिए नहीं है, जीने के लिए तो हँसना ही चाहिए। रोना पाप है, कोई क्यों रोये । जीवन का प्रवाह जैसे बहता है बहने देना चाहिए ।
– पं० सिद्ध विनायक

78. दुनियां में जो इतनी बुराई फैली हुई है उसका दोष केबल बुरा काम करने वालों पर ही नहीं है बल्कि दोष उन अच्छे आदमियों का भी है जो बुरे काम करने वालों की खुशामद करने और उन्हें खुश करने के लिए सदा तैयार रहते हैं।
– लुई फिशर

79. नियमों का विधान मनुष्य के लिए हुआ है, मनुष्य का निर्माण नियमों के लिए नहीं ।
– रामतीर्थ

80. जो अपने नियम नहीं बनाता उसे दूसरों के बनाये नियमों पर चलना पड़ता है।
– हरिभाऊ उपाध्याय

81. धैर्य कटु है, किन्तु उसका फल मधुर है ।
– रूसो

82. संकट में ही धैर्य और धर्म की परीक्षा होती है।
– प्रेमचन्द

83. मूर्ख स्वयं को बुद्धिमान समझते हैं, किन्तु वास्तविक बुद्धि- मान स्वयं को मूर्ख ही समझते हैं।
– शेक्सपीयर

84. थोड़ा पढ़ना और अधिक सोचना, कम बोलना और अधिक सुनना यही बुद्धिमान बनने का उपाय है।
– रवीन्द्र नाथ ठाकुर

85. आदरू का बनाने बिगाड़ने वाला आदमी नहीं ईश्वर है। उन्हीं की निगाह में आबरू बनी रहनी चाहिए। आदमियों की निगाह में आबरू की परख कहाँ ? जब सूद खाने वाला बनिया, घूस खाने वाला हाकिम और झूठ बोलने वाला गवाह बे-आबरू नहीं समझा जाता, लोग उनका आदर मान करते हैं तो यहाँ सच्ची आबरू की कदर करने वाला कोई है ही नहीं ।
– प्रेमचंद्र

86. सम्पत्ति समझदार मनुष्य की सेविका है, किंतु मूर्ख के लिए वह जालिम है।
– हरिभाऊ

87. परिवर्तन ही तो जगत् की माया है ।

88. सत्य बात कठोर होती है।
– कुशवाहा कान्त

89. गव्य को गाड़ी नहीं चाहिये ।
– रूसी कहावत

90. बूढ़े को मत पूछो, पूछना हो तो अनुभश्री से पूछो ।
– रूसी कहावत

91. लड़ाई के पहले दो आदमी घमण्ड करते हैं और बाद में केवल एक ।
–रूसी कहावत

92. प्रत्येक कड़कड़ाती बिजली नहीं गिरती, और गिरती भी है तो आवश्यक नहीं कि हम पर ही गिरे ।
– रूसी कहावत

93. ऐसे व्यक्ति जो कभी गलतियाँ नहीं करते, यही हैं जो कभी कुछ नहीं करते ।
– विविध

94. मानव का गुण है विश्वास व शैतान का गुण है शंका।
– विविध

95. प्रत्येक मनुष्य को जीवन में केवल एक बार अपने भाग्य की परीक्षा का अवसर मिलता है, और वही भविष्य का निर्णय कर देता है।
– प्रेमचंद्र

96. कीचड़ से हो कमल उत्पन्न होता है, बादलों के मध्य से ही धवल चन्द्र देदीप्यमान होता है- राक्षसत्व ही सुरत्व की जननी है ।
– कुशवाहा कान्त

97. मानसिक अशाँति जब शरीर में घर कर लेती है तो वह शरीर को उसी प्रकार नष्ट कर देती है जिस प्रकार काष्ठ को अग्नि ।
– कुशवाहा कान्त

98. कुत्सित विचारों से मनुष्य नीच बनता है और उच्च विचारों से वह उच्चता को प्राप्त होता है ।
– गोपीकान्त

99. स्वाभिमान को ठेस लगने पर आचरण की जड़ में घुन लग जाता है और निन्दा फैलने पर मनुष्य उसकी ओर से आँखें बन्द करके खुल्लम-खुल्ला पतन की ओर अग्रसर होने लगता है।
– गोपी कान्त

100. जीवन में अनुभव की उतनी ही आवश्यकता होती है जितनी उपासना की ।
– भगवती चरण

101. धैर्य तो नैराश्य की अन्तिम अवस्था का नाम है। नैराश्य की अन्तिम अवस्था विरक्ति होती है।
– प्रेमचंद्र

102. ईर्ष्या में तम ही तम नहीं होता, कुछ सत् भी होता है।
– प्रेमचन्द

103. इन्सान के जब बुरे दिन आते हैं वह कहीं का नहीं रह जाता । अपने पराये हो जाते हैं, और सोना भी छने से मिट्टी हो जाता है ।
-गुलाब

104. प्रयत्न ईश्वर का स्वरूप है।
– अज्ञात

105. जीना वही जानता है जो मरना जानता है।
– यशपाल

106. ज्ञान के पथ में सबसे बड़ा विघ्न ईश्वर ।
– अज्ञेय

107. जो अपने समय का सबसे अधिक दुरुपयोग करते हैं, वे ही समय की कमी की सबसे अधिक शिकायत करते हैं।
-ब्रूयर

108. कंजूस का गढ़ा हुआ धन धरती से तभी बाहर निकलता है जब वह स्वयं धरती में गड़ जाता है।
– फारसी कहावत

109. हम सिर्फ पदार्थ के सम्बन्ध में विज्ञान को जानते हैं, जीवन के सम्बन्ध में हमारे पास कोई विज्ञान नहीं है।

110. मौत अगर आसान नहीं, जीना भी आसान नहीं। मौत को मुश्किल जानने वालों, जीना मौत से मुश्किल है ।।
– जगन्नाथ ‘आजाद’

111. मौत का भी इलाज हो शायद । जिन्दगी का कोई इलाज नहीं ॥
– फिराक

112. जो दूसरों की भलाई करना चाहता है, उसने अपना भला तो कर भी लिया ।
– कन्फ्यूशियस

113. उपयोगी कलाओं की जननी है- आवश्यकता, ललित कलाओं की जननी है- विलासिता । पहली उत्पन्न हुई बुद्धि से और दूसरी प्रतिभा से ।
-शोपेन होर

114. मनुष्य प्रकृति का अनुचर और नियति का दास है।
– जयशंकर प्रसाद

115. दुरावेश में सौजन्य का नाश हो जाता है।
-प्रेमचन्द

116. अन्धे पेट के बड़े गहरे होते हैं। उन्हें बड़ी दूर की सूझती है।
– प्रेमचंद्र

117. लिपिबद्ध ऋण अमर होता है, वचनबद्ध ऋण निर्जीव और नश्वर ।
– प्रेमचंद्र

118. मनुष्यता बड़ी है परन्तु मनुष्य छोटा ।
-बोर्न

119. प्रशंसा अज्ञान की बेटी है।
– फ्रेंकलिन

120. विता की इकलौती सन्तानें बहुत कम योग्य निकला करती हैं।
– अज्ञेय

121. सिद्धान्त की बातें तो पुस्तकों से छाँटकर सभी वाद-विवाद में पटु हो जाते हैं; मगर कितने उन सिद्धान्तों पर चलते हैं।
– अज्ञेय

122. सृष्टा को अपनी सृष्टि प्यारी होती है। कलाकार को अपनी कला, रचियता को अपनी रचना अपनी सन्तान की तरह प्रिय होती है ।
– सर्वदा नन्द

123. संसार में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें सांसारिक उचित, अनुचित, पुण्य-पाप और न्याय-अन्याय के मापदण्ड से नापा नहीं जा सकता । दूसरों के मत से उन प्रतिभाओं को बाँधा नहीं जा सकता ।
– सर्वदानन्द

124. विष किसी भी नियत से खाया जाय, विष ही का काम करेगा। कभी अमृत नहीं हो सकता ।
जवानी दीवानी होती है।
– प्रेमचंद्र

125. क्रोध में विचार-पट बन्द हो जाते हैं ।
– प्रेमचंद्र

126. भद्रपुरुष मार खाकर चाहे चुप रह जाये, गाली नहीं सह सकते ।
– प्रेमचंद्र

127. मरने वाले तो खैर बेबस हैं। जीने वाले कमाल करते हैं ।।
– अदय

128. एक ही उल्लू काफी था, बर्बाद गुलिस्तां करने को । हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिश्तां क्या होगा ॥
– अज्ञात

129. जीवन का उद्देश्य संसार को सुन्दर बनाना है।
-श्रीराम शर्मा

130. धन तभी तक धन है जब वह किसी उद्योग उपयोग में लगा रहे अन्यथा उसमें और कूड़े करकट में क्या अन्तर ।
-श्रीराम शर्मा

131. हर कार्य का उद्देश्य स्वार्थ नहीं परमार्थ होना चाहिए ।
– श्रीराम शर्मा

132. मनुष्य नियम बनाते हैं, स्त्रियाँ व्यवहार ।
-डो० सीग

133. जीवन में आधी गलतियाँ तो केवल इसलिए होती हैं। कि जहाँ हमें विचार से काम लेना चाहिए वहाँ हम भावुक हो जाते हैं और जहाँ भावुकता की आवश्यकता है वहाँ विचारों को अपनाते हैं।
– जॉन कॉलिस

134. गुस्से मे लिया गया फैसला हमैसा नुकसान ही देगा।

135. सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, संस्कृति वह तु जो हममें व्याप्त है।

136. जो जीवन में कुछ नहीं कर पाते वे आलोचक बन जाते हैं।
– अज्ञात

137. जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो। वह फिजूल है। और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो वह भयंकर है।

138. दरिद्रता आलस्य का पुरस्कार है।
-प्रजात

139. अन्याय करने वाला इतना दोषी नहीं है जितना उसे सहन करने वाला ।
– डच कहावत

140. अन्याय सहने से अन्याय करना ज्यादा अच्छा है।
– अरस्तू

141. अन्याय में सहयोग करना अन्याय करने के ही समान है।
– प्रेमचन्द

142. व्यस्त आदमी के पास आँसू बहाने का समय नहीं होता ।
– वायरन

143. सबसे अच्छे लोग वे नहीं हैं जो मौकों की बाट जोहते हैं, बल्कि वे हैं जो मौकों को अपना दास बना लेते हैं।
– ई० एच० चेपिन

144. मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहस्य हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है।
– डिजरायली

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