100 से अधिक, प्रेम पर महापुरुषों के अनमोल वचन।

More than 100 precious words of great men on Love.

Mahaapurushon ke Anmol Vachan on Love in Hindi

1. प्रेम में प्रतिकार नहीं होता । प्रन अनन्त क्षमा, अनन्त उदारता, अनंत धैर्य से परिपूर्ण होता है।
– प्रेमचन्द

2. प्रेम जंगलों में भी सुखी रह सकता है।
– प्रेमचन्द

3. विवाह के दूसरे दिन ही पुरुष स्वयं को सात वर्ष अधिक वृद्ध अनुभव करने लगता है।
-वेकन

4. विवाह का उद्देश्य भोग नहीं, आत्मा का विकास है ।
– प्रेमचंद्र

5. एक अच्छो महिला से शादी जीवन के झंझावात में बन्दर- गाह है, और बुरी महिला से शादी बन्दरगाह में ही झंझा- वात है।
– जे० पी० सेन

6. प्रेम को विलास की कल्पना ही से रुचि होती है। वह दुःख और दरिद्रता के स्वप्न नहीं देखता ।
– प्रेमचन्द

7. प्रेम ग्रस्त प्राणियों की प्रतिज्ञा कायर की समर लालसा है जो द्वन्द्वी की ललकार सुनते ही विलुप्त हो जाती है।
– प्रेम चन्द

8. प्रेम अभय का मंत्र है। प्रेम का उपासक संसार की समस्त चिन्ताओं और बाधाओं से मुक्त हो जाता है।
– प्रेमचन्द

9. अनुराग अन्तर्वेदना की सबसे उत्तम औषधि है ।
– प्रेमचन्द

10. उत्कट प्रेम छिपकर ही रहता है। उसे छिपाने के लिए कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता ।
– गोविन्द वल्लभ

11. पुरुष में नारी को प्राप्त करने की वासना जितनी बलवान होती है उतना प्रेम नहीं ।
– पं० सिद्ध विनायक

12. प्रेम का अभाव ही हिंसा है। जब तक प्रेम नहीं होगा हिंसा होगी ही।
– विविध

13. प्रेम व्यक्तियों के साथ ही नहीं वस्तुओं के साथ भी होना चाहिए । पुस्तक को गलत ढंग से रखना, पटकना, झटकना कुत्ते के साथ भी दुर्व्यवहार करना, प्रेम शून्य होने का प्रमाण है।
-विविध

14. प्रेम की धारा में घृणा बह जाती है।
– अज्ञात

15. बिना प्रेम सत्य का सुहाग लुट जाता है।
– रवीन्द्र नाथ ठाकुर

16. स्वार्थ अपने को पराया बना देता है, प्रेम पराये को अपना बना देता है ।
– जीसस

17. सच्चा प्रेम तो बही है जहाँ शरीर दो हों और मन एक ।
– जे० रूक्स

18. प्रेम करने का अर्थ है अपनी प्रसन्नता को दूसरे की प्रसन्नता में लीन कर देना ।
– सविनीज

19. जिस प्रेम को प्रकट न किया जा सके वह सबसे पवित्र है ।
– कार्लाइल

20. जो मनुष्य अपने साथी से घृणा करता है वह उसी मनुष्य के समान हत्यारा है जिसने सचमुच हत्या की है।
– स्वामी रामतीर्थ

21. प्रेम चन्द्रमा है। यदि वह बढ़ेगा नहीं तो घटना आरम्भ हो जाएगा ।
-सीगर

22. जीवन का मधुरतम आनन्द और कटुतम वेदना प्रेम ही है।
– बेलो

23. यदि तुम्हें कोई प्रेम नहीं करता तो निश्चित जानो कि तुममें ही कोई कमी है।
-ड्राईज

24. घृणा हृदय का दीवानापन है ।
– बायरन

25. क्या तुम्हें अपने जीवन से प्रेम है ? तो समय को व्यर्थ मता गंवाओ, क्योंकि जीवन उसी से बना है।
– वेंजामिन फ्रेंकलिन

26. असीम होकर जो प्रेम है सीमित होकर वही राग होता है, राग बन्धन है, प्रेम मुक्ति है।
– रजनीश

27. प्रत्येक स्त्री का यह कर्त्तव्य है वह जितनी जल्दी संभव ह सके विवाह करले और पुरुष का यह कर्त्तव्य है कि जह तक हो सके उससे दूर रहे।
– जार्ज बर्नार्डश

28. जल्दी से किए विवाह पर हम फुरसत में पछतावा करते हैं।
– काँग्रे

29. प्यार में आदमी सपनों में खोया रहता है, परन्तु शादी होते हो उसकी आंखें खुल जाती हैं।
-अज्ञात

30. अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता ।
– विवेकानन्द

31. अश्रुपूर्ण प्रेम अत्यन्त लुभावना होता है ।
-वीरेंद्र सिंह पलियाल

32. बुद्धि के तोते को प्रेम के राग का पता नहीं चल सकता । प्रेम का राग प्रीति को मैंना ही जान सकती है।
– रजनीश

33. प्रेम सेवा के गर्भ से पैदा होता है ।
– सत्यसांई बाबा

34. प्रेम से जीवन पवित्र हो सकता है, प्रेम से जीवन को अलौकिक सौन्दर्य प्राप्त हो सकता है, प्रेस से जीवन सार्थक हो सकता है। मनुष्य सकती है । प्रेम से ईश्वर प्रस की उत्पत्ति हो
– महावीर प्रसाद

35. प्रेम इन बाधाओं की परवाह नहीं करता, वह देहिक संबंध नहीं, आत्मिक सम्बन्ध है।
– प्रेमचन्द

36. प्रेम एक भावनागत विजय है, भावना ही से उसका पोषण होता है, भावना ही से वह जीवित रहता है और भावना ही से लुप्त हो जाता है। यह भौतिक वस्तु नहीं है।
– प्रेमचन्द

37. अपेक्षा से प्रेम बन्धन बनता है। अपेक्षा से वह व्यवसाय बन जाता है ।
– रजनीश

38. घृणा एक मुर्दा चीज है। हममें से कौन कब्र बनेगा ।
– विविध

39. प्रेम परमार्थ है, काम स्वार्थ है। जहाँ स्वार्थ है वहाँ काम है। जब स्वार्थ नहीं तभी प्रेम होता है।
– उड़िया बाबा

40. घृणित वह नहीं जिससे घृणा की जाती है किन्तु घृणित वह है जो घृणा करता है क्योंकि उसके हृदय में ही घृणा भरी है।
– महावीर स्वामी

41. प्रेम आनन्द का परिणाम है। भीतर आनन्द होने पर बाहर प्रेम होगा ।
-वीरेंद्र सिंह पलियाल

42. प्रेम में अहंकार नहीं होता । घृणा को छोड़ने से प्रेम नहीं आता । प्रेम आने से घृणा छूटती है ।
– रजनीशा

43. जहाँ प्रेम जितना उग्र होता है वहाँ वैसी ही तीखी घृणा भी होती है। क्रूरता में केवल यातना दी ही नहीं जाती, स्वयं पाई भी जाती है और स्नेह में स्नेही अपने को ही नहीं भूलता, स्नेह के पात्र को भी भूल जाता है ।
-वीरेंद्र सिंह पलियाल

44. नीम का स्वाद कटु है, गन्ध मधुर है ऐसा ही प्रेम है जिस का रंग सुन्दर है और स्पर्श कठोर ।
– अज्ञेय

45. विश्वास से ही प्रेम होता है और प्रेम से मन तथा शरीर की पुष्टि – आनन्द कुमार

46. विरह प्रेम का जीवन है और मिलन अन्त ।
– यशपाल

47. वह स्नेह नहीं जो विघ्नों के सहारे बहता है, वह मोह नहीं जो कि पीड़ा की नींव पर ही अपना घर खड़ा करता है।
-अज्ञेय

48. प्रेम ही अहिंसा का परम रूप है।
–महात्मा गाँधी

49. प्रेम किया नहीं जाता, हो जाता है। यह क्रिया नहीं घटना है।
– रजनीश

50. प्रेम दिल का सौदा है बस की बात नहीं ।
– शरत् चन्द्र

51. प्रेम दूसरों की आँखों से नहीं देखता, अपनी आँखों से देखता है।
– रामचन्द्र

52. प्रेम और बासना में उतना ही अन्तर है जितना कंचन और काँच में। प्रेम की सीमा भक्ति से मिलती है और उनमें केवल मात्रा का भेद है। भक्ति में सम्मान का और प्रेम में सेवाभाव का आधिक्य होता है। प्रेम के लिए धर्म की विभिन्नता का कोई बन्धन नहीं है। ऐसी बाधाएँ उस मनोभाव के लिए हैं जिसका अन्त विवाह है। उस प्रेम के लिए नहीं जिसका अन्त बलिदान है।
– प्रेमचन्द

53. प्रेम दूसरा रूप चाहता ही नहीं, चाहे वह प्रेम-पात्र के रूप से कितना ही बढ़कर हो ।
– रामचन्द्र

54. सच्चा प्रेम बन्धन नहीं मानता पर प्रेम की सत्यता दृढ़ होनी चाहिए ।
– हरस्वरूप

55. यदि तुम्हारा हृदय एक ज्वालामुखी है तो तुम कैसे आशा करोगे कि तुम्हारे हाथों में फूल खिलेंगे ।
-वीरेंद्र सिंह पलियाल

56. प्रेम और हिंसा से ही मानवता का विकास है।
-बुद्ध

57. प्रेम और सन्देह में कभी बोलचाल नहीं रहती ।
– विविध

58. स्वदेश प्रेम को बढ़ाने का सही रास्ता कुछ काल के लिए प्रवास करना है।
– विष्णु प्रभाकर

59. तीव्र इन्कार सदा स्वीकृति का सूचक है।
-वीरेंद्र सिंह पलियाल

60. जहाँ प्रेम का फल दुःख होता हुआ दिखाई दे, वहाँ समझो कि आसक्ति है ।
– हरिभाऊ उपाध्याय

61. प्रेम एक बीज है जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है।
– प्रेमचन्द

62. नारी विवाह वाले दिन ही रोती है और पुरुष विवाह के बाद सारी उम्र ।
– अनाम

63. शादी एक लड्डू है। जिसने नहीं चखा वह भी पछताता है और जिसने चखा वह भी।
– अनाम

64. एक बार विवाह कर्तव्य है, दूसरी बार मूर्खता और तीसरी बार पागलपन ।
– अनाम

65. यौवन और सौन्दर्य में विवेक कम ही होता है।
– होमर

66. प्रेम सबसे करो विश्वास थोड़ों का करो ।
-शेक्सपीयर

67. प्रेम जितना ही आदर्शवादी होता है उतना ही क्षमाशील भी।
– प्रेमचन्द

68. प्रेम की भंगिमा छिपाये नहीं छिपती ।
– कुशवाहा कान्त

69. प्रेम मार्ग में क्रोध करना उचित नहीं ।
– रामचन्द्र शुक्ल

70. काम भावना बिना प्रेम के हो सकती है किन्तु कामवासना के बिना प्रेम नहीं हो सकता ।
– गिरीश चन्द्र

71. प्रेम आँखों को अन्धा भी बना सकता है। विचारवान हृदय को अविचारी भी बना सकता है।
– कुशवाहा कान्त

72. पतिगों को अपने पास खींचकर जला देना हो तो दीपक का काम है।
-कुशवाहा कान्त

73. बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता ।
– रामचन्द्र शुक्ल

74. घूघू को दिन में नहीं दिखाई देता, कौए को रात में नहीं सूझता किन्तु काम वासना से सताया पुरुष तो अजीब अंधा होता है, उसे दिन और रात दोनों में नहीं सूझता ।
-अज्ञात

75. नफरत और प्रेम दोनों का एक ही अर्थ है।
– विष्णु प्रभाकर

76. जीवन एक सुमन है और प्रेम उसका पराग ।
– विक्टर ह्य गो

77. प्रेम दुःख और वेदना का भाई है।
– रामकुमार वर्मा

78. प्रेम अपमानित होकर द्वेष में बदल जाता है ।
– प्रेमचंद्र

79. एक भयानक मानसिक रोग है प्रेम ।
– प्लूटो

80. प्रेम का एक ही मूल मंत्र है और वह है सेवा ।
– प्रेमचन्द

81. मनुष्य पर जब प्रेम का बन्धन नहीं होता, तभी वह व्यभि- चार करने लगता है।
-प्रेमचंद्र

82. विवाह सामाजिक समझौता है, उसे तोड़ने का अधिकार न पुरुष को है न स्त्री को ।
– प्रेमचंद्र

83. प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं है। वह तो शिशु के सरल हृदय की वस्तु है ।
– जयशंकर प्रसाद

84. घृणा से घृणा को नष्ट नहीं किया जा सकता। घृणा को दूर करने के लिए प्रेम को आवश्यकता है।
-भगवान बुद्ध

85. जो आदमी दूसरी जाति से घृणा करता है समझ लीजिये कि वह ईश्वर से घणा करता है।
– प्रेमचन्द

86. स्नेहो अपने स्नेह पात्र को कभी याद नहीं करता, क्योंकि वह उसे कभी भूलता नहीं ।
– अज्ञेय

87. मार-मार कर और कुछ भले ही कराया जा सके, स्नेह और आदर नहीं कराया जा सकता ।
– सर्वदानन्द

88. प्रेम में अधिकार होता है।
– सर्वदानन्द

89. प्रेम करना पाप नहीं है, पर प्रेम को लेकर पागल हो जाना अनुचित है ।
– सर्वदानन्द

90. प्रेम की कसौटी त्याग है।
– गोपीकान्त

91. प्रेम और वासना में मेट केवल इतना है कि वासना पागल- पन है जो क्षणिक है, और इसीलिए वासना पागलपन के साथ ही दूर हो जाती है। और प्रेम गम्भीर है, उसका अस्तित्व शीघ्र नहीं मिटता।
– भगवती चरण

92. हिसाब किताब करने वाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं पर प्रेम करने वाले नहीं ।
– रामचन्द्र

93. घृणा या बदला लेने की इच्छा से मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं।
– अनाम

94. प्रेम के बिना हमें एक दूसरे का यथार्थ परिचय भी तो नहीं मिलता ।
– रवीन्द्र नाथ टैगोर

95. मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं । ये वो नग्मा है जो हर साज पर गाया नहीं जाता ॥
-वीरेंद्र सिंह पलियाल

96. प्रेम आँखों से नहीं मन से देखता है।
– शेक्सपीयर

97. प्रेम आत्मा से होता है शरीर से नहीं ।
– भगवती चरण वर्मा

98. प्रेम समय और स्थान की सीमा से परे है। यह निरंकुश है।
– विवेकानन्द

99. प्रेम खरीदा नहीं जाता, वह स्वयं को ऑपत करता है।
– लाँग फेयो

100. दण्ड देने का अधिकार केवल उनको है जो प्रम करते हैं।
– रविन्द्र नाथ ठाकुर

101. प्रेम बिना तलवार के शासन करता है ।
– कहावत

102. प्रेम जब अत्मसमर्पण का रूप लेता है, तभी प्यार है, उसके पहले ऐय्याशी ।
– प्रेमचन्द

103. शादी के पहले आदमी को आंखें पूरी तरह खुली रखनी चाहिए और शादी के बाद अधखुली ।
मदाम शरे

104. प्रेम एक दान है भिक्षा नहीं है। माँग नहीं है भेंट है। प्रेम भिखारी नहीं सम्राट है। जो मांगता है उसे प्रेम नहीं मिल सकता । जो बाँटता है उसे मिलता है।
– रजनीश

105. प्रेम पूर्ण होने में खर्च कुछ भी नहीं होता, मिलता इतना है कि जिसका कोई हिसाब नहीं है।
– रजनीश

106. वे कवि हैं जो प्रेम करते हैं। जो महान सत्यों की अनुभूति करते हैं और उन्हें उजागर करते हैं ।
-वेली

100 से अधिक, जीवन शैली पर महापुरुषों के अनमोल वचन।

अंजीर का पानी पीने के 4 जबरदस्त फायदे 

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