राजनीति पर महापुरुषों के अनमोल वचन Part 1

More than 100 precious words of great men on Politics.

Mahaapurushon ke Anmol Vachan on Politics in Hindi

  1. शत्रुओं को क्षमा करना बदले का सबसे अच्छा साधन है ।
    – अज्ञात
  2. बदला साहस नहीं है, परन्तु उसका सहना साहस है।
    – शेक्सपीयर
  3. जहाँ मूर्खों का तथा अज्ञानियों का शासन हो, वहाँ धूर्त तथा धोखेबाज भूखे नहीं मरते ।
    -अनाम
  4. मनुष्य के गोपनीय अवगुण प्रकट मत कर । इनसे उनका सम्मान तो अवश्य घट जाएगा किन्तु तेरा तो विश्वास ही उठ जायगा ।
    – अज्ञात
  5. मूर्ख से बहस करके कोई व्यक्ति बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता ।
    – संत ज्ञानेश्वर
  6. मूर्ख को उपदेश देना उसके क्रोध को बढ़ाना है।
    – पोष
  7. गलत बातों के लिए भी ठीक प्रमाण दिये जा सकते हैं व दिये जाते हैं। क्योंकि गलत बातें अपने पाँवों खड़ी नहीं हो सकतीं ।
    – विविध
  8. हम दूसरों के दोष देखने में इतना रस इसलिए लेते हैं कि हम उससे निर्दोष मालूम पड़ते हैं। दूसरों की सारी शक्लें काली कर दें तो हम गौर वर्ण के दिखाई देते हैं।
    – विविध
  9. यदि मूर्खों के जाल में पड़ जाओ तो व्यर्थ में विवाद करने में कोई सार नहीं है, न ही उन्हें गलत कहने का कोई अर्थ है, क्योंकि वे इतने गलत हैं कि गलत सुनने को भी राजी न होंगे, न अकारण मूर्खों के हाथ में शहीद हो जाने का कोई प्रयोजन है ।
    – रजनीश
  10. विवाद करना मूर्खता पूर्ण है। क्योंकि इससे कोई सत्य तक नहीं पहुँच सकता ।- रजनीश
  11. अधिकार विनाशकारी प्लेग के सदृश है। वह जिसे छूता है उसे ही भ्रष्ट कर देता है।
    -शैली
  12. जो व्यक्ति अपने रहस्य को छिपाए रखता है वह अपनी कुशलता अपने हाथ में रखता है।
    – वीरेन्द्र सिंह पलियाल
  13. राजनीति के समान कोई जुआ नहीं है।
    – डिजरायली
  14. परिवर्तन जब धीरे-२ आता है तब सुधार कहलाता है, जब एकदम आता है; तब क्रांति कहलाती है।
    – दिनकर
  15. दस गधों के जमा होने से एक घोड़े का दिमाग नहीं हो सकता। -नीत्सेइस बात का ध्यान रखना चाहिये कि दण्ड अपराध से न बढ़ जाय।
    – अनाम
  16. जो आदमी यह दिखाए कि उसमें कोई कमी नहीं है। वह या तो बेवकूफ है या पाखण्डी । हमें उसका विश्वास नहीं करना चाहिये । -जौवर्ट
  17. सज्जन से निष्फल याचना भी अच्छी, नीच से सफल याचना भी अच्छी नहीं ।
    – कालीदास
  18. राजनीति में वचन का बहुत महत्व नहीं है।
    – प्रेमचन्द
  19. जो गुस्ताख है उसे अपने आधीन कर, जो विनीत है उसे छोड़ दे। विजय के शिखर पर चढ़ने का यही मार्ग है।
    – हरिभाऊ
  20. न्याय निर्दोष का गला काटता है और अपराधी सभ्य बने हुए घूमते हैं।- कुशवाहा कान्त
  21. किसी भी बात को एकदम स्पष्ट कह बैठना प्रायः अयोग्यता में गिना जाता है।
    -गोपीकान्त
  22. धर्म से विलग राजनीति मृतक शरीर के तुल्य है। जो केवल जला देने योग्य है।
    – महात्मा गाँधी
  23. जब दुष्ट लोग गुट बना लें, तब सज्जनों को भी संगठित हो जाना चाहिए । अन्यथा एक-एक करके उन सबकी बलि चढ़ जाएगी ।– वर्क
  24. जहाँ आत्मा और सिद्धान्तों की हत्या होती है, वहाँ से स्वतन्त्रता कोसों दूर भागती है ।
    – प्रेमचन्द
  25. अधिकार और बदनामी का तो चोली दामन का सम्बन्ध है।
    – प्रेमचन्द
  26. सरकारी नौकरी में रहकर स्वतंत्र विचार और निष्पक्ष सम्मति रखने की बात ही हास्यास्पद है।
    – सर्वदानन्द
  27. जब समय मुस्कराता हुआ मिले तो उससे अधिकाधिक लाभ ले लेना चाहिये ।
    – आनन्द कुमार
  28. अतिथि का अतिथि होना, मंगनी की वस्तु मंगनी देना, ऋण लेकर ऋण देना मूर्खता है।
    – नर्शसंह राम
  29. वास्तविक शक्तिशाली पुरुष कसम नहीं खाया करते ।
    – ग्रेजिया डेलेडा
  30. शत्रु के गुण ग्रहण कर लो, और गुरु के दुर्गुण छोड़ दो।
    -अज्ञात
  31. चापलूसी मूर्खों का आहार है।-अज्ञात
  32. छल कपट और विवेक में उतना ही अन्तर है, जितना लंगूर और आदमी में ।
    – अज्ञात
  33. लोभी मनुष्य धन की सेवा करता है, धन उसकी सेवा नहीं करता।
    – हरिभाऊ
  34. प्राचीन बिना संघर्ष के नवीनता के लिए जगह नहीं देता।- श्रोरामवृक्ष
  35. जो पराधीन होने पर भी जीते हैं, वे मरे हुए हैं।
    – हितोपदेश
  36. सत्ता मनुष्य को भ्रष्ट नहीं करती, भ्रष्ट मनुष्य ही सत्ता को खोजता है ताकि उसे भ्रष्टाचार का पूरा अवसर मिल सके । कड़ा प्राप्त करने से भस्मासुर भ्रष्ट नहीं हुआ । वह भ्रष्ट था इसलिए कड़ा खोज रहा था। काम वासना भीतर है इसलिए विवाह किया जाता है, विवाह करने से काम वासना नहीं आती
    – विविध
  37. बेईमान को तो धोखा दिया ही नहीं जा सकता । धोखा ईमानदार को ही दिया जा सकता है।
    – विविध
  38. शत्रु को हराया जा सकता है जीता नहीं जा सकता । मित्र जीते जाते हैं।
    – विविध
  39. बुद्धिमान व्यक्ति बोलने के पहले सोचता है। मूर्ख बोल लेता है और तब सोचता है कि वह क्या कह गया ।
    – फ्रेंच कहावत
  40. अधर्मी राजा का अन्न खाने वाले विद्वानों की भी बुद्धि मारी जाती है।- महाभारत
  41. जो राजा अपनी प्रजा को सताता और उस पर जुल्म करता है, वह हत्यारे से भी बदतर है।
    – वीरेन्द्र सिंह पलियाल
  42. धन का देना मित्रता का कारण होता है। परन्तु वापस लेना शत्रुता का ।
    – शुक्राचार्य
  43. बिना वेतन के अपने को किसी का जासूस बनाना महामूर्खता है।- आनन्द कुमार
  44. शैतान अपना काम निकालने के लिये धर्मशास्त्र का पाठ भी कर सकता है।
    – शेक्सपीयर
  45. यदि एक दिन के लिए बाहर जाओ तो हफ्ते भर की रसद साथ लो ।
    – रूसी कहावत
  46. जिस व्यक्ति के पास आचरण शीलता का प्रमाण पत्र है, जनता उसकी बात सुनेगी ।
    – महात्मा गाँधी
  47. वह झूठ जो अर्द्ध सत्य है, सबसे बड़ा झूठ है।
    – टेनसिन
  48. रियायत राजनीति में पराजय का सूचक है।
    – प्रेमचन्द
  49. पाप को क्षमा करना पाप करना है।
    – प्रेमचन्द
  50. सत्य के मित्र कम होते हैं। शत्रुओं से कहीं कम ।
    – प्रेमचन्द
  51. स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
    – लोकमान्य तिलक
  52. किसी की निदा करने से पूर्व निंदक स्वयं निन्दा का पात्र हो जाता है।
    – आनन्द कुमार
  53. सफलता के समान दूसरी कोई वस्तु मनुष्य को बार-बार सफल होने में सहायता नहीं देती ।
    – लालजी राम
  54. यह शाश्वत नियम है कि जो ऊपर नहीं ऊठता वह नीचे गिर जाता है, जो आगे नहीं बढ़ता वह पीछे धकेल दिया जाता है।
    – रजनीश
  55. इस दुनिया में सच कहना दुश्मन बनाना है। चौबीस घण्टे सच बोल कर देखें कि सब मित्र विदा हो गए । झूठ बड़ी मित्रताएँ स्थापित करता है। सच से सारा जगत शत्रु हो जाएगा ।
    – विविध
  56. जो व्यक्ति शक्ति का संचार होते ही उन्मत्त हो जाय उसका अशक्त रहना ही अच्छा ।
    – प्रेमचन्द
  57. मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है।
    – वेदव्यास
  58. एक चोर को किसी के घर में सेंध लगाते देखकर आप घर वालों को जगाने की चेष्टा न करें तो आप स्वयं चोर की सहायता कर रहे हैं। उदासीनता बहुधा अपराध से भी भयंकर होती है।
    – प्रेमचन्द
  59. साँड की अगाड़ी, घोड़े के पिछाड़ी और मूर्ख से चारों ओर से बचना चाहिए ।
    – आनन्द कुमार
  60. केवल नीति का आश्रय लेना कायरता है, केवल शक्ति का प्रयोग करना पशुता है।
    – कालीदास
  61. शत्रु के छिद्र अर्थात् दोष या कमजोरी को देखकर उसी पर आघात करने से विजय मिलती है।
    – कालीदास
  62. कम्युनिस्ट दल सुधार का साधन नहीं है, वह तो शक्ति प्राप्त करने का साधन है।
    – लुई फिशर
  63. जहाँ अज्ञान वरदान हो वहाँ बुद्धिमानी दिखाना मूर्खता है। -ग्रेविल
  64. सत्य उनके लिए है, जिनमें उसे सह लेने की शक्ति है।
    -अज्ञेय
  65. पौरुष समर्पण में नहीं, संघर्ष में है।
    -विविध
  66. पलभर में जल जाना, देर तक सुलगने से ज्यादा अच्छा है।
    -व्यास
  67. हम दूसरों पर दोषारोपण तभी करते हैं, जब हमारी ही मनोवृत्ति दूषित होती है।
    – आनन्द कुमार
  68. गिरने में हानि नहीं है, गिरकर पड़े रहने में हानि होती है।
    – आनन्द कुमार
  69. सबसे अच्छी आत्म रक्षा शत्रु पर पहले ही हमला कर देना है। शत्रु को हमले की तैयारी का अवसर ही नहीं देना चाहिये ।
    – नेपोलियन
  70. जिस प्रकार के व्यक्ति का हम सम्मान करते हैं उसी प्रकार के व्यक्ति हम स्वयं बन जाते हैं। जो व्यक्ति दूसरे वीर पुरुषों की पूजा नहीं करता वह स्वयं वीर पुरुष नहीं हो सकता ।
    – लालजी राम
  71. पराजित पक्ष का जब तक एक भी मनुष्य जीता रहता है, तब तक वह बदले की भावना को पोषित करता रहता है और बदला लिये बिना नहीं रहता ।
    – विविध
  72. किसी को क्षमा माँगने के लिये बाध्य करना, अपना विरोध करने के लिए चुनौती देना है।
    -अनाम
  73. क्षमा भी कमजोर होने पर अक्षम्य है, असत्य और अधर्म है। युद्ध उससे उत्तम धर्म है। क्षमा तभी करनी चाहिए जबकि तुम्हारी भुजा में विजय की शक्ति वर्तमान हो ।
    – विवेकानन्द
  74. हमारे देशवासियों में से कोई व्यक्ति जब ऊपर उठने की चेष्टा करता है तो हम लोग उसे नीचे घसीटना चाहते हैं। परन्तु यदि कोई विदेशी आकर हमें ठोकर मारे तो हम समझते हैं कि यह ठीक है।
    – विवेकानन्द
  75. विनाश काल में मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।
    – चाणक्य
  76. हँसो और संसार तुम्हारे साथ हँसेगा, रोओ तो तुम्हें अकेले रोना पड़ेगा।
    – एला पीलर विलकाक्स
  77. अधिकार पाया जाता है, लिया जाता है, देता कोई नहीं। – -अज्ञात
  78. क्या बिल्ली कभी चूहों के लिए उचित कानून बना सकती है।
    – जान ब्राइट
  79. किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है।
    – स्वामी विवेकानन्द
  80. प्रत्येक के लिए मृदुल और दयालु बनो, किन्तु स्वयं के लिए कठोर ।
    – अज्ञात
  81. संसार की सबसे बड़ी शत्रु है महत्वाकांक्षा ।
    – ब्लूम फील्ड
  82. इतिहास मानव के अपराधों, मूर्खताओं, दुर्भाग्यों के रजिस्टरों के सिवाय कुछ नहीं है।
    – गिबन
  83. युद्ध, युद्ध को बढ़ावा देता है ।
    – शिसर
  84. राजनीति में शक्ति की ही जय है।
    – जैनेन्द्र कुमार
  85. शान्ति का मूलाधार शक्ति है ।
    – महाभारत
  86. पहले अपराधी तो वे हैं जो उन्हें करते हैं। दूसरे अपराधो वे हैं जो उन्हें होने देते हैं ।
    – थामस फुलर
  87. कानूनों को ये तीन तरह के व्यक्ति नहीं समझ पाते पहले जो इन्हें बनाते हैं, दूसरे जो इन्हें लागू करते हैं और तीसरे जो इन्हें तोड़ते हैं।
    – हेलीफेल
  88. राज्य इसलिए नहीं कि स्वतन्त्रता छीन ले। राज्य इसलिए है कि कोई किसी की स्वतन्त्रता न छीन ले ।
    – वीरेन्द्र सिंह पलियाल
  89. किसी के हृदय पर पूर्ण विजय करनी हो तो उसके दुख के दिनों में उसकी सहायता करनी चाहिये ।
    – आनन्द कुमार
  90. दुष्ट बुद्धि और निम्न कोटि के मनुष्यों के साथ परिहास न करना चाहिये ।
    -रामचन्द्र
  91. राजमहल के कंगूरे पर बैठने से कौआ गरुड़ की पदवी नहीं पा सकता ।
    – आनन्द कुमार
  92. जब तक तू अपनी आँखों से किसी की बुराई देख न ले, उसके बुरे होने का संशय न कर। पर यदि एक बार देख ले, तो फिर उसे भूल मत ।
    – हरिभाऊ
  93. संसार में आज तक अच्छा युद्ध और बुरी शांति कभी नहीं हुई।
    – फ्रेंकलिन
  94. युद्ध मनुष्यों की असफलताओं के परिणाम स्वरूप होता है।
    – बोनर
  95. जो नौकर को अपना रहस्य बता देता है, वह उसे अपना स्वामी बना लेता है।
    -ड्राइडेन
  96. यदि तुम अपने रहस्य को किसी शत्रु से छिपाए रखना चाहते हो तो किसी मित्र तक में उसका उल्लेख मत करो।
    – फ्रेंकलिन
  97. दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करो जैसा दूसरों से अपने लिये चाहते हो।
    – जीसस
  98. युद्ध काल में शान्तिवादी निष्पक्षता शतुर्मुर्ग के स्वप्न की भाँति है।
    – टी० ए० जैक्सन
  99. समाज का विकास समाज संघर्ष के ऊपर ही निर्भर रहता है।
    – गाम्यलोहिश
  100. विलासी पुरुष कायर होता है। उसे साधारण कठिनाइयां भी घबड़ा देती हैं ।
    – लालजी राम
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राजनीति पर महापुरुषों के अनमोल वचन Part 2

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