राजनीति पर महापुरुषों के अनमोल वचन Part 2।
More than 100 precious words of great men on Politics.
Mahaapurushon ke Anmol Vachan on Politics in Hindi
- जब तक तू किसी मनुष्य को आजमा न ले तब तक उस पर विश्वास न कर। पर अकारण ही किसी पर अविश्वास न कर।
-हरिभाऊ - जिसे हर एक देता है पर विरला ही कोई लेता है, ऐसी चीज क्या है ? उपदेश, सलाह ।
– स्वामी रामतीर्थ - सबसे श्रेष्ठ शासक वह है जिसके होने की खबर प्रजा को न हो। उससे कम श्रेष्ठ को प्रजा प्रेम और प्रशंसा देती है। उससे भी कम श्रेष्ठ वह है जिससे प्रजा डरती है और सबसे घटिया की वह निन्दा करती है।
– लाओत्से - स्वर्ग में दास बनने की अपेक्षा नरक में शासन करना अच्छा है।
– मिल्टन - एक हत्या से मनुष्य हत्यारा हो जाता है, लाखों की हत्या से वीर। अधिक संख्या पाप को धो देती है!
– पोर्टियस - जो दुश्मन रह चुका है वह मित्र नहीं हो सकता ।
– हरिभाऊ - जो आवश्यकता के पहले ही रोता है, उसे आवश्यकता से अधिक रोना पड़ता है। वह क्यों ? इसलिये कि उसे रोने के साथ मुहब्बत है ।
– हरिभाऊ - चापलूसी के द्वारा प्राप्त मित्रों की अपेक्षा, सत्य के द्वारा बनाये हुए शत्रु ज्यादा अच्छे होते हैं।
– हरिभाऊ - वस्तु का मूल्य तो सुयोग्य मनुष्य के पास रहने से बढ़ता है।
– हरिभाऊ - शेर घन गर्जन सुनकर जवाब में दहाड़ता है। वह सियारों की आवाज सुनकर नहीं बोला करता ।
– विविध - जहाँ मेंढ़क व्याख्याता हो वहाँ चुप रहना ही अच्छा ।
– विविध - रत्न किसी को ढूंढ़ता नहीं फिरता। उसी को लोग ढूंढ़ते हैं।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल - शक्तिशाली पुरुष भी संसार में तिरस्कार पाता है यदि वह अपनी शक्ति का परिचय न दे ।
– विरेन्द्र सिंह पलियाल - जिद न करना बुद्धिमानी है।
– विविध - जो अन्याय करता है, वह सहने वाले की अपेक्षा अधिक दुर्दशा में रहता है।
– प्लेटो - न्याय करना उतना कठिन नहीं है जितना अन्याय का शमन करना ।
– प्रेमचन्द - घोड़े की लगाम जितनी कड़ी होगी उतना ही वह धीरे चलेगा ।
– मेक्सिम गोर्की - जब किसी पक्ष को बदनाम करना होता है या किसी घटना को उत्तेजनामय बनाना होता है तो उसमें स्त्री की बेईज्जती की बात डाल देना, ऐसा अचूक नुस्खा है जिसका प्रयोग कभी पुराना नहीं पड़ता ।
– रतन लाल - जनतंत्र के स्वस्थ विकास के लिए विरोध और वफादारी को एक-सा निभाना हममें से प्रत्येक को सीखना होगा ।
– विविध - कानून पाप को खोज सकता है किन्तु मिटा नहीं सकता ।
– मिल्टन - हिंसा से विजय पाने वाला अपने शत्रु पर केवल आधी विजय प्राप्त करता है।
मिल्टन - समाज की आलोचना करना सरल है लेकिन जनता का विश्वास प्राप्त करना कठिन है। इसके लिए कठोर साधना करनी पड़ती है।
– विविध - कानून निर्धनों पर शासन करता है और धनी कानून पर शासन करते हैं।
– ओलियर गोल्ड स्मिथ - जहाँ नम्रता से काम निकल जाये, वहाँ उग्रता नहीं दिखानी चाहिये ।
– प्रेमचन्द - नीति धर्म की दासी है।
– अनाम - प्रजातन्त्र का जहाज समुद्री तूफानों का सामना तो कर सकता है, लेकिन जहाज के चालकों की आपसी फूट उसे डुबा के रहती है।
– ग्रोवर क्लीव लैण्ड - प्रशंसा वहाँ आरम्भ होती है जहाँ परिचय समाप्त होता है।
– एस० जानसन - दूसरों को चुप करने के लिए पहले खुद चुप हो जाओ ।
-अनाम - तिरस्कार दिखाने का सबसे अच्छा ढंग है- मौन ।
– बर्नार्डशा - जहाँ विचारों का सम्मान न हो और सत्य अप्रिय लगे वहाँ मौन साध लो ।
– फुलर - वाणी का वर्चस्व रजत है, किन्तु मौन कंचन है।
– दिनकर - राजनीति आपदाओं को खोजने, उपलब्ध करने, असंगत निदान करने तथा गलत ढंग से व्यवहार करने की कला है।
– सर अर्नेस्ट बेन - राजनीति मानव सम्बन्धों में हिंसा का विष उपजाती है और भरती रहती है।
– जैनेन्द्र कुमार - मुझे बताइए कि आपके संगी-साथी कौन हैं, और में बता दूंगा कि आप कौन हैं।
– गेटे - अकेले को दुःख झेलना होगा। प्रसन्न होने के लिए तो दो व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है।
– ई० हव्वार्ड - कुछ जीव हैं जिनसे सावधान रहना चाहिए । वे हैं धनवान आदमी, कुत्ता, सांड और शराबी ।
– स्वामी रामकृष्ण परमहंस - इतिहास राजनीति की पाठशाला है।
– प्रो० सीली - चाँद पर थूकने से थूक मुँह पर ही पड़ता है।
– प्रेमचन्द - जिसका कोई नहीं होता उसके सब होते हैं।
– प्रेमचन्द - अपमान आग्नेय वस्तु है ।
– प्रेमचन्द - कोई भला आदमी अपशब्दों को सहन नहीं कर सकता और न करना ही चाहिए। अगर कोई गालियाँ खाकर चुप रहे तो उसका अर्थ यही है कि वह पुरुषार्थहीन है, उसमें आत्माभिमान नहीं। गालियाँ खाकर भी जिसके खून में जोश न आये वह जड़ है, पशु है, मृतक है।
– प्रेमचन्द - त्याग के बिना स्वाधीनता की प्राप्ति नहीं होती ।
– रविन्द्र नाथ ठाकुर - स्वाधीनता का मूल्य रक्त है।
– प्रेमचन्द - राजनीति मानव सम्बन्धों में हिंसा का विष उपजाती है ।
– जैनेन्द्र कुमार - अगर कोई दगाबाज सच्चे आदमियों के मार्ग में आता है। और उनको दगा देने की घात में रहता है तो उसको नष्ट न करना दगाबाजी को प्रोत्साहित करना है।
– मेक्सिम - अपमान जनक भाषणों से मुर्दों को क्रोध आ जाता है परन्तु बुद्धिमान हँसकर उसकी उपेक्षा करते हैं।
– हरिभाऊ उपाध्याय - क्षमा और उदारता वही सच्ची है, जहाँ स्वार्थ की भी बलि हो ।
-जयशंकर प्रसाद - जनतंत्र का आधार है समझा दो या समझ लो ।
– विविध - अग्नि को सुलगाने वाला हाथ कभी उसकी लपटों को नहीं बुझा सकता ।
– वायरन - छली कभी दूसरे को नहीं छलता, वह अन्त में अपने को ही छलता है।
-विविध - नम्रता, प्रेमपूर्ण व्यवहार तथा सहन शीलता से मनुष्य तो क्या देवता भी तुम्हारे वश में हो जाते हैं।
– तिलक - बिना निर्णय के साधु होने से निर्णय लेकर चोर होना अच्छा । बिना निर्णय के मनुष्य भटकता ही रहेगा।
– रजनीश - हम बुरा काम तत्काल कर लेते हैं, व अच्छे के लिए सोचते हैं कि बाद में कर लेंगे ।
– विविध - हम व्यर्थ की बातें ज्यादा सीख लेते हैं, इसलिए मूल्यवान के लिये समय नहीं बचता ।
-विविध - मूर्ख के साथ सम्पूर्ण जीवन बिताने की अपेक्षा अनुभवी व्यक्ति के साथ एक घंटा बिताना अधिक फलदायक होता है।
– वीरेन्द्र सिंह पलियाल - जो पहले सिरे के मूर्ख हैं, वे ही सदा दूसरों की मूर्खता की बातों पर उपहास किया करते हैं।
– गोल्ड स्मिथ - जो अपनी मूर्खता से भी कुछ न सीख सके, वह निपट मूर्ख है।
– हेयर - सत्य बोलने में सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि यह याद रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती कि मैंने क्या कहा था ।
– पोप - सच्चाई और ईमानदारी के बिना बुद्धि और ज्ञान निरर्थक और हानिकारक है। सिद्धान्त हीन राजनीति, चरित्र हीन शिक्षा, मानवता हीन विज्ञान, नैतिकता हीन व्यापार निश्चित रूप से विचारक और विनाशक होते हैं।
– सत्य साँई बाबा - उस घोड़े से जो हमें गिरा दे, वह गधा कहीं अच्छा है जो हमें ले जाय ।
-जे० जे० हालेण्ड - अरण्ड को उखाड़ फेंकने में कौन सी ताकत की जरूरत है ? किसी बड़ पीपल पर ताकत आजमाइये ।
– अज्ञात - अपनी शक्ति को प्रकट न करने से शक्तिशाली पुरुष भी अपमान सहन करता है।
– पंचतन्त्र - शक्ति की लालसा समस्त वासनाओं से अधिक नीच है।
-टेसीटस - युद्ध में जो हारता है वह भी रोता है, जो जीतता है वह भी रोता है। हाथ कुछ भी नहीं लगता। युद्ध में उतरना न समझ सेनापतियों का काम है।
-लाओत्से - दूसरों को उपदेश देना सरल है।– पंचतंत्र
- शेर के अन्दर भी परमात्मा विराजमान है पर उसके सामने नहीं जाना चाहिये । दुष्ट मनुष्यों में भी ईश्वर मौजूद है पर इसीलिए उनका साथ करना उचित नहीं ।
– रामकृष्ण - एक झूठ को छिपाने के लिए कम से कम उसके पास सौ झूठ तो और होना ही चाहिए ।
– पोप
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