100 से अधिक, महापुरुषों के अनमोल वचन। Part 8

More than 100 Precious words of great men.

Mahaapurushon ke Anmol Vachan in Hindi

  1. वह कहीं नहीं है, क्योंकि वह सर्वत्र है। वह कुछ भी नहीं है क्योंकि वह सब कुछ है।
    – लाओत्से
  2. यह संसार अलग-अलग सरगम से निकला पूर्ण संगीत है। भिन्न-भिन्न धर्म भिन्न-भिन्न तारों से निकले स्वर हैं। इनमें न समानता है न विरोध । इनका समन्वय नहीं हो सकता।
    – रजनीश
  3. परमात्मा सृष्टा नहीं, सृजन की ऊर्जा है। परमात्मा साकार है। ये सभी आकार उसी के हैं।
    – रजनीश
  4. कर्त्तव्य कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसको नाप-जोखकर देखा जाय।
    – शरत् चन्द्र
  5. अहंकार से ऐश्वर्य का नाश होता है ।
    – अज्ञात
  6. सत्य जितना स्पष्ट होता है उतना ही सरल भी। सरलता उपेक्षीय वस्तु नहीं है।
    – गोविन्द वल्लभ पन्त
  7. अच्छा कर्म बुरे को काटता नहीं। दोनों का फल भोगना ही पड़ेगा ।
    – रजनीश
  8. सिद्धियाँ प्राप्त करके लोग दुनियां में भ्रम फैलाते हैं कि वे दुनियाँ का उद्धार कर देंगे। किन्तु यह कार्य ईश्वर का है। उसे ही करने दो। ऐसे लोग स्वार्थी होते हैं। ये सिद्धियाँ अज्ञान के कारण हैं, अतः झूठी है। ये अहं की उपज है।
    – मर्हाव रमण
  9. पक्षपातों से बंधा व्यक्ति सत्य को नहीं जान सकता ।
    – रजनीश
  10. मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान ही एक अनुष्ठान है, दूसरा कोई नहीं है।
    – योग वशिष्ठ
  11. सुखद असत्य से दुःखद सत्य बेहतर है।
    – विविध
  12. एक आदर्श जननी सौ गुरुओं से भी श्रेष्ठ है।
    – जार्ज हर्बर्ट
  13. लज्जाशील कुल वधु के भृकुटी-भंग मात्र से विश्व भर व्याकुल हो उठता है।
    – शार्गंधर
  14. मरता सिर्फ अहंकार ही है। आत्मा नहीं मरती ।
    – रजनीश
  15. आदमी चार चीजों के आस-पास घूमता है- यश, धन, वासना, आयु । ये अहंकार के ही हिस्से हैं।
    – नेपोलियन हिल
  16. जो कर्तव्य को छोड़कर अकर्त्तव्य को करते हैं उनका चित्त मलिन से मलिनतर होता जाता है।
    – भगवान बुद्ध
  17. कोई ऐसा क्षण नहीं जो कर्त्तव्य से रिक्त हो ।
    सिसरो
  18. कर्त्तव्य का पालन ही चित्त शाँति का मूलमंत्र है।
    -प्रेमचन्द
  19. तुम्हारे मार्ग में चाहे गुलाब के फूल आएँ चाहे कांटे, किन्तु निरन्तर चलते रहो ।
    – स्टैण्टन
  20. सम्पूर्ण महान कार्य के प्रारम्भ में किसी स्त्री का हाथ रह है।
    -मार्टिन
  21. कभी न टूटने वाला कवच है – नम्रता ।
    – कनफ्यूशियस
  22. हम महानता के निकटतम होते हैं, जब हम नम्रता में महान् होते हैं।
    – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  23. देश और समाज दो ऐसे वृक्ष हैं जिनकी जड़ों में मानवता सुरक्षित रहती है।
    – उमाशंकर
  24. झूठी श्रद्धा से सच्चा सन्देह भी बेहतर है।
    – विविध
  25. परमात्मा को पाना इतनी सरल घटना है कि वहाँ कोई चुनौती नहीं है। परमात्मा से लोग इसलिए वंचित हैं कि उसे पाना सरल है।
    – रजनीश
  26. वीर होने के लिए मनुष्य को अपने कर्त्तव्य से अधिक काम करना पड़ता है।
    – रेनाल्ड्स
  27. कर्म, ज्ञान और भक्ति इन तीनों का जिस जगह सेवन होता है वही श्रेष्ठ पुरुषार्थ है ।
    – महर्षि अरविन्द
  28. अधिकारी शास्त्र और गुरु तीनों का संयोग होने पर ही आत्मानुभव का प्रकाश होता है।
    – योग वशिष्ठ
  29. पुस्तकें पढ़ने से ज्ञान होता है यही सबसे बड़ा अज्ञान है । किताबी ज्ञान से आत्मा, परमात्मा का ज्ञान नहीं होता ।
    – महर्षि रमण
  30. चोर ने चोरी करके तुम्हें दुःख नहीं दिया है। तुम्हारे धन की आसक्ति ने तुम्हें दुःख दिया है। तुम्हारे दुःख के कारण तुम स्वयं ही हो । अन्य नहीं है।- रजनीश
  31. ईश्वर ने आदमी को अपनी अनुकृति का बनाया ।
    – जीसस
  32. सच्चाई यह है कि आदमी ने ईश्वर को अपनी शक्ल का बनाया इसीलिए इतने ईश्वर हैं। ईश्वर ने हमें गढ़ा नहीं, लेकिन हम ईश्वर को रोज गढ़ रहे हैं। इसलिए सबके भिन्न-२ ईश्वर हैं ।
    – नीत्शे
  33. पुरुषार्थ पुरुष करता है तो सहायता ईश्वर करता है।
    – प्रेमचन्द
  34. जो कुबुद्धि लोग यह समझते हैं कि सब कुछ भाग्य के आधीन है, वे नाश को प्राप्त होते हैं।
    – योग वशिष्ठ
  35. उचित कार्य साहस पूर्वक करने वाले को किसी के आर्शीवाद को आवश्यकता नहीं है। श्रेष्ठ कार्य स्वयं ही आशीष स्वरूप होते हैं।
    -अखण्ड ज्योति
  36. भाग्य पर वह भरोसा करता है जिसमें पौरुष नहीं होता है।
    – प्रेमचन्द
  37. अपनी सफाई बहुत कम पेश करनी चाहिए। यदि आपका चरित्र स्वयं अपना बचाव नहीं कर सकता तो यह बचाने लायक है भी नहीं ।
    – एफ० रोबर्टसन
  38. जिस परिश्रम से हमें आनन्द मिलता है, वह हमारे लोगों के लिए अमृत है ।
    – शेक्सपीयर
  39. यदि जगत् में आलस्य रूपी अनर्थ न होता तो कौन धनी और विद्वान न होता ।
    – योग वशिष्ठ
  40. सम्प्रदाय का अर्थ है मार्ग, धर्म का अर्थ है मंजिल। मंजिल एक है, मार्ग अनेक हैं।
    – वीरेन्द्र सिंह पलियाल
  41. सभी धर्म मानवता के लिए हैं मानवता धर्म के लिए नहीं है।
    – महर्षि रमण
  42. महापुरुष सदैव सदाचार का विचार करता है, क्षुद्र व्यक्ति सुख का ।
    – कनफ्यूशियस
  43. सन्तोष और सज्जनता ही शक्ति है ।
    -जेहट
  44. चरित्र दो वस्तुओं से बनता है, अपनी विचारधारा से और आपके समय बिताने के ढंग से ।
    – वीरेन्द्र सिंह पलियाल
  45. मानव का चरित्र कितना रहस्यमय है। हम दूसरों का अहित करते जरा भी नहीं झिझकते। किन्तु जब दूसरों के हाथों हमें कोई हानि पहुंचती है तो हमारा खून खौलने लगता है।
    – प्रेमचन्द
  46. मनुष्य पशु नहीं है, लेकिन क्या वह मनुष्य हो गया है। हम पशु न होने को मनुष्य समझ लेते हैं यही भूल है।
    – अज्ञात
  47. कुत्ता-कुत्ता है। उसे होना नहीं है। आदमी को आदमी होना है – है नहीं ।
    – रजनीश
  48. धर्म कपड़ों के फैशन की भाँति नहीं है जो छः महीने में बदल जाता हो या व्यक्ति-व्यक्ति में रुचि के अनुसार भिन्न हो । वह तो शाश्वत व सनातन ईश्वरीय नियम है जो सब के लिए एक है।
    – रजनीश
  49. धर्म एक है, मार्ग भिन्न है। अज्ञानियों ने मार्ग को ही धर्म मान लिया। जो धर्म में विरोध देखता है वह बुद्धिमान नहीं है। सोच विचार वाला व्यक्ति नहीं है, मदान्ध है,‌ अन्धा है। नानक, रामकृष्ण व सूफी फकीरों ने धर्म में एकता लाने का जो प्रयत्न किया वह खो गया ।- रजनीश
  50. दया सबसे बड़ा धर्म है।
    – महाभारत
  51. गलत मन ही दूसरों के दोष देखता है। स्वस्थ मन कभी दोष नहीं देखता ।
    – विविध
  52. व्यक्ति में आत्मा होती ही नहीं। उसे प्राप्त की जाती है। लाखों में से एक को प्राप्त होती है व फिर आगे चलती रहती है। बाकी मनुष्य साग-सब्जी की भाँति है जिनकी कोई केन्द्रीय आत्मा नहीं है।
    – जुरजिएफ
  53. ब्रह्म और आत्मा की भिन्नता अहंकार रूपी दीवार के कारण ज्ञात होती है। इस बाधा के हटते ही यह प्रतीति होती है कि यह आत्मा ब्रह्म ही है।
    – उपनिषद्
  54. मोक्ष न योग से सिद्ध होता है और न साँख्य से, न कर्मों से और न विद्या से। वह केवल ब्रह्म और आत्मा की एकता के ज्ञान से ही होता है। और किसी प्रकार नहीं।
    – शंकराचार्य
  55. लोग कहते हैं ‘हमने नेकी की, फल बदी में मिला ।’ ऐसा हो नहीं सकता । ऐसा हो नहीं सकता कि आम बोओ और नीम का फल मिले। ऐसा हो सकता है कि तुमने बेहोशी में नीम बो दिया हो, इसलिए नीम के फल मिले । वृक्ष थोड़े ही झूठ बोलता है । बोते वक्त भूल हो गई होगी।
    – रजनीश
  56. जिसका हृदय वैर या द्वेष की आग में जलता है, उन्हें रात को नींद नहीं आती ।
    – विदुर
  57. ईश्वर के दो निवास स्थान हैं- एक वैकुण्ठ में और दूसरा नम्र और कृतज्ञ हृदय में ।
    – आइजक वाट्सन
  58. परमात्मा मुझे दुराचारियों से बचा ।
    – वीरेन्द्र सिंह पलियाल
  59. यदि इंसान होना चाहता है तो जो कुछ अपने लिए अच्छा समझता है वही जीव मात्र के लिए अच्छा समझ।
    – वीरेन्द्र सिंह पलियाल
  60. नम्रता सद्‌गु‌णों की आधारशिला है।
    – कनफ्यूशियस
  61. धर्म की शक्ति का आधार धर्म को आचरण में उतारना है।
    – सत्य साँई बाबा
  62. जिसने ज्ञान, आचरण में उतार लिया, उसने ईश्वर को ही मूर्तिमंत कर लिया ।
    – बिनोवा भावे
  63. मनुष्य जितना अहंकारी होगा उसका व्यक्तित्व उतना हो घटिया होगा ।
    – अखण्ड ज्योति
  64. पाप सभी बीमारियों से बुरा है, क्योंकि वह आत्मा पर चोट करता है।
    – ग्रेजिया डेलेडा
  65. ईश्वर की दृष्टि में चोरी करने की अपेक्षा धोखा देना अधिक पाप है।
    – हरिभाऊ
  66. संसार में पाप कुछ भी नहीं है, वह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है।
    – भगवती चरण
  67. पवित्रता की माप है मलिनता, सुख का आलोचक है दुःख, पुण्य की कसौटी है पाप ।
    – जयशंकर प्रसाद
  68. एक जन्म में किए गए कर्म संस्कार रूप में दूसरे जन्म का आधार बनते हैं।
    – रजनीश
  69. सत्य सदा निर्वस्त्र है, सामने है। सत्य तैरने से नहीं, डूबने से मिलता है। सत्य आकाश की भाँति है, उसका कोई प्रवेश द्वार नहीं है, जहाँ जाकर खटखटाना पड़े ।
    – रजनीश
  70. मनुष्य संसार से भरा है। उसे खाली किये बिना उसमें ब्रह्म कैसे भरा जा सकता है। स्वयं को संसार से रिक्त करो, ब्रह्म अपने आप भर जाएगा। लाना नहीं पड़ेगा। विचार शून्यता ब्रह्म प्राप्ति का पहला चरण है ।
    – विविध
  71. बुद्धि से सत्य नहीं जाना जा सकता। सत्य सागर है, बुद्धि चम्मच जैसी है।
    – विविध
  72. साधक यदि बार-बार असफल होता है तो कोई न कोई दैवी शक्ति आकर सहारा देती है।
    – विविध
  73. इच्छा से दुःख आता है, इच्छा से भय आता है; जो इच्छाओं से मुक्त है वह न दुःख जानता है न भय ।
    -अज्ञात
  74. ईमानदार आदमी का सोचना लगभग हमेशा न्यायपूर्ण होता है।
    – रूसो
  75. मनुष्य की प्रतिष्ठा ईमानदारी पर ही निर्भर है।
    – श्रीराम शर्मा
  76. मनुष्य में जितना अहंकार होता है उसके वक्तव्य उतने ही आग्रहपूर्ण होते हैं।
    – विविध
  77. अहंकारी व्यक्ति सारी सृष्टि को अपने लिए मानता है। निरहंकारी अपना अस्तित्व ही सृष्टि के कारण मानता है।
    -विविध
  78. अहंकार हमेशा दूसरे का ध्यान अपनी ओर आर्काषित करना चाहता है। जब समाज ध्यान नहीं देता तो वह हत्यारा, गुण्डा हो जाता है।
    – विविध
  79. स्त्रियों का प्रेम शुद्ध नहीं होता। वह उन्हीं को प्रेम करती है जिनकी उनको जरूरत होती है।
    – मेक्सिम गोर्की
  80. स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक सुन्दर नहीं होतीं । कबूतर और कबूतरी, शेर और शेरनी, मोर और मोरनी में पुरुष अधिक सुन्दर होता है ।
    – यशपाल
  81. अहंकार संतत्व के लिए बाधा है।
    – रजनीश
  82. वैर लेना या करना मनुष्य का कर्त्तव्य नहीं- उसका कर्त्तव्य क्षमा है।
    – महात्मा गाँधी
  83. पुरुष के पास दृष्टि होती है और स्त्रियों के पास अंतर दृष्टि ।
    – विक्टर ह्यू
  84. स्वर्ग के राज्य के अधिकारी वे ही होंगे जो बच्चे की भाँति होंगे।
    – जीसस
  85. भयभीत मनुष्य ही आस्थावान होता है। ईश्वर पर आस्था रखने की चेष्टा भय का संकेत है।
    – राजेन्द्र अवस्थी
  86. केवल वही व्यक्ति आध्यात्मिक है, जो उस एक सत्ता को सर्वत्र देखता है और अपने को उसका अंश समझता है। आध्यात्मिक का यही अर्थ है, दूसरा कुछ नहीं । कुछ भी करने से पहले वह अपने से पूछता है- ‘मैं जो यह कर रहा हूं, क्या परमात्मा मेरे माध्यम से ऐसा करते ?’ उसके सारे कामों की यही कसौटी होती है।
    – एनी बेसेण्ट
  87. मनुष्य नियम बनाते हैं स्त्रियाँ व्यवहार ।
    -डी० सीगर
  88. आत्मिक विकास का पौधा सांसारिक विषय वासना की पृथ्वी पर नहीं उगता। उसके लिए यत्न पूर्वक तैयार को हुई, प्रेम वारि से तर समतल भूमि चाहिए ।
    – स्वामी रामतीर्थ
  89. आनन्द वह खुशी है जिसके भोगने पर पछताना नहीं पड़ता ।
    – सुकरात
  90. आनन्द का मूल सन्तोष है।
    – मनु
  91. परमात्मा का कोई कारण नहीं है। वही सबका कारण है। परमात्मा दूर से भी दूर व पास से भी पास है। उसका कोई रूप नहीं है। सभी रूप उसी के हैं। उसका कोई नाम नहीं है। वह अनाम है। वह न अल्लाह जैसा है, न ईश्वर जैसा । न उसका नाम अरबी में लिखा है न संस्कृत में । न वह शंकराचार्य की मान्यता जैसा है न पोप की मान्यता जैसा । उसका अनुभव होने पर सारी मान्यतायें गिर जाती हैं। सारी धारणायें टूट जाती हैं।
    – रजनीश
  92. ‘ईश्वर है’- यह कहना भी गलत है। ‘जो है वही ईश्वर है।’ यह अस्तित्व ही ईश्वर है। ईश्वर स्वयं सृष्टि है।
    – रजनीश
  93. वह ऐसे उपस्थित है जैसे हो ही नहीं। वह अनुपस्थित होते हुए भी उपस्थित है।
    -लाओत्से
  94. बनाने वाला वही है, किन्तु नियंत्रण नहीं करता। वह सृष्टा है लेकिन जेलर नहीं है।
    – लाओत्से
  95. परमात्मा इन्द्रियों का विषय ही नहीं है। मन के पार जाने पर परमात्मा की अनुभूति होती है।
    – रजनीश
  96. पुस्तकें ज्ञान की सड़क पर लगे चिन्ह हैं। स्वयं ज्ञान नहीं है। ज्ञान स्वयं के भीतर से आता है, बाहर से नहीं।
    – महर्षि रमण
  97. ज्ञान कहते हैं स्वयं के जानने को, विज्ञान कहते हैं पर के जानने को ।
    – रजनीश
  98. परमात्मा व्यक्ति नहीं, शक्ति है। उस शक्ति का अपना शाश्वत नियम है। इस नियम को जानने का नाम ही धर्म है।- विविध
  99. ईश्वर सर्वत्र है, ईश्वर शक्ति है, जीवनी शक्ति ।
    – जीसस
  100. ईश्वर से निकटतम और कोई वस्तु नहीं है ।
    – रामतीर्थ
  101. सूक्ष्म की शक्ति अपार है, हमें शक्तिहीन स्थूल ही दिखाई देता है। ईश्वर को इन्द्रियों से जान नहीं सकते, किन्तु उसके अस्तित्व से इन्कार नहीं किया जा सकता ।
    – लाओत्से
  102. ईश्वर है या नहीं यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है आप मानते हैं या नहीं ।
    – रजनीश
  103. यदि तुम अज्ञानता के कारण भगवान को नहीं देख सकते इसी कारण यह न कहो कि भगवान नहीं है।
    – रामकृष्ण परमहंस
  104. निम्न श्रेणी का भक्त कहता है- भगवान स्वर्ग में है। मध्यम श्रेणी का कहता है भगवान सभी प्राणियों में प्राण एवं चेतना के रूप में है, अर्थात् आत्मा ही परमात्मा है। उत्तम श्रेणी का कहता है- भगवान स्वयं ही सब कुछ हो गये हैं। भगवान को छोड़कर और कुछ है ही नहीं।
    – रामकृष्ण
  105. आलस्य से पुरुषार्थ क्षीण हो जाता है और भयंकर परिस्थितियाँ मनुष्य को दबा देती हैं।
    – आनन्द कुमार
  106. जहाँ अहंकार है वहाँ अज्ञान है। अहंकार और ज्ञान एक घर में रह ही नहीं सकते ।
    – वीरेन्द्र सिंह पलियाल
  107. बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है, योग्य है।
    – महात्मा गाँधी
  108. सीधा रास्ता जितना सरल है उतना ही कठिन है। ऐसा न होता तो सभी सीधा रास्ता लेते ।
    – महात्मा गांधी
  109. शरीर के मरने के साथ आत्मा भी मर जाती है। वह अमर नहीं है।
    -अरस्तू
  110. हीरा और सोने के आभूषण मुफ्त नहीं बंटते । पंचामृत और तुलसीपत्र ही प्रसाद में मिलता है। माला घुमाने और अगरबत्ती जलाने की कीमत पर किसी की मनोकामना पूरी करने वाले देवी-देवता अभी जन्मे नहीं है।
    – श्रीराम शर्मा
  111. समय, पात्रता विकसित करने में लगता है, गुरु मिलने में नहीं।
    – श्रीराम शर्मा
  112. परमात्मा – अर्थात् आत्माओं का परम समुच्चय ।
    – श्रीराम शर्मा
  113. कितने ही पुष्प फल ऐसे हैं जिनके सत्परिणाम प्राप्त करने के लिए अगले जन्मों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है परलोक साधना का परमार्थ ऐसा है जिसका प्रतिफल हाथों हाथ मिलता है ।
    – श्रीराम शर्मा
महापुरुषों के अनमोल वचन Part 1, Part 2, Part 3, Part 4, Part 5, Part 6, Part 7, Part 8, Part 9, Part 10

Leave a Comment

error: Content is protected !!