Moral Short Story in Hindi. बच्चों की छोटी शिक्षाप्रद कहानिया.
बच्चो की कहानी- बेहतर उपहार।
आज स्कूल में बच्चों का आखिरी दिन था। सब बच्चों ने अपने टीचर से बहुत आग्रह किया कि वह उन्हें कुछ उपहार देना चाहते हैं। हालांकि दिनेश सर ने सब बच्चों से कहा था कि उन्हें कोई उपहार नहीं चाहिए, पर बच्चों की जिद के आगे उनकी एक नहीं चली। उपहार देने के बाद सभी बच्चो ने पूछा, ‘सर बताइए आपको सबसे अच्छा उपहार किसका लगा?’
सर ने कहा, ‘सभी बच्चो के गिफ्ट अच्छे हैं, क्योंकि आप सबकी भावना अच्छी है।’
सभी बच्चो ने फिर से पूछा, ” सर सबसे अच्छा गिफ्ट कौनसा लगा बताइए ना”
बच्चों के जोर देने पर दिनेश सर ने कहा, “मुझे सबसे अच्छा उपहार रोशन का लगा।”
बच्चे अचंभित थे, क्योंकि रोशन ने एक साधारण-सा पेन दिया था। जबकि बाकी सारे बच्चों ने महंगे से महंगे उपहार दिए थे।
सर बोले, ‘जब तुम सब मुझे उपहार देने को धक्का-मुक्की कर रहे थे, यह अंत में खड़ी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही था। तुमने बाहर दिए पम्पलेट जमीन पर फेंक दिए, पर रोशन ने उन सबको इकट्ठा कर डस्टबिन में डाला। सही मायनों में तो उसने मुझे गुरु दक्षिणा दी। मेरे पढ़ाए हुए को अपने जीवन में उतारा। तुम्हारे लाए उपहार से मुझे इतनी खुशी नहीं मिलेगी, जितना मेरा पढ़ाया तुम व्यवहार में लाओगे तब होगी। बच्चे अपने किए पर शर्मिंदा थे, पर रोशन के लिए तालियाँ सभी बजा रहे थे।
पंचतंत्र की कहानी – बड़ों का तजुर्बा
भाई बहन की कहानी- भाई की यादे
जब गुंजन छोटी ही थी, उसके माता- पिता नहीं रहे थे। बड़े भाई राजीव के संरक्षण में ही वह पली-बढ़ी थी। भाई- बहिन दोनों को पेड़ों से बहुत प्यार था। दोनों अपने जन्मदिन, त्योहारों पर पौधे लगाते और देखभाल करते। इन दोनों ने न जाने कितने पेड़ लगाए, जो वृक्ष बन गए थे।
एक दिन एक लड़का भागते हुए आया और बड़े भाई राजीव के एक्सीडेंट की खबर दी।गुंजन भागते हुए हॉस्पिटल गयी। वहां पता चला कि भैया राजीव नही रहे। उस दिन सरिता पर जैसे कहर टूट पड़ा। उसके परिवार का एकमात्र सदस्य बड़ा भाई भी सड़क हादसे में चल बसा था। गांव वालों की सहायता से वह स्वयं को जैसे-तैसे संभाल पाई। अब उसे लगता कि जीने का कोई मकसद ही नहीं है। रक्षाबंधन का त्योहार आने वाला था। कितना उल्लास होता था, गुंजन के मन में हर वर्ष । और अब…..उसने गहरी सांस ली। गुंजन हाथ में राखी लिए बिल्कुल उदास बैठी थी। सूनी पथराई आंखों से कहीं शून्य में देख रही थी। गुंजन की सहेली से उसकी उदासी देखी नहीं गई। सहेली पूजा ने उसके कंधे पर हाथ रखा। आत्मीयता की उष्मा पाकर गुंजन की आंखों से आंसू निकल पड़े। पुजा गुंजन का हाथ थामकर उसे वहां ले गई, जहां भैया के लगाए वृक्ष थे। गुंजन को उनकी शाखों में, पत्तों में, छाया में अपने भैया नजर आने लगे। गुंजन को जैसे जीवन जीने का सूत्र ही मिल गया। निश्चय ही वह अपने भाई के काम को आगे बढ़ाएगी। उसने वृक्ष को ही राखी बांध दी और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। और अब उस गांव में सभी लड़कियां वृक्षारोपण भी करती हैं और पेड़ों को रक्षाबंधन पर राखी भी बांधती हैं। आखिर वृक्ष से बड़ा रक्षा करने वाला तो कोई नहीं इस धरती पर। एक नई परंपरा की शुरुआत हो चुकी थी।