Moral Story in Hindi. शिक्षाप्रद छोटी कहानीया।
1. शिक्षाप्रद कहानी – गुस्से का प्रतिकार
एक बुजुर्ग दंपति अकेले एक फ्लैट में रहते थे। बुजुर्ग पत्नी अपने पति को अक्सर गुस्से में कुछ न कुछ बोल दिया करती थी। आज दुधवाले ने दूध पतीली में डालते हुए बुजुर्ग को कहा-‘बाबूजी, मैं रोजाना जब भी दूध देने आता हूं तो देखता हूं कि मांजी किसी न किसी बात पर बड़बड़ करती रहती हैं और आप बस सब मुस्कुरा कर सुनते रहते हैं। कभी पलटकर जवाब नहीं देते।’
बुजुर्ग आदमी ने कहा– रामू, तू ही बता, जब तुझे तेरी घरवाली किसी बात पर नाराज होकर कुछ कहती है तो तू क्या करता है।’
रामू ने कहा –’बाबूजी, मेरी बीबी को इतनी हिम्मत नही की वो मुझे कुछ उल्टा -सुल्टा बोल जाए। गलती से उसने कुछ बोल भी दिया तो मैं उसकी पिटाई कर देता हूं।’
बुजुर्ग आदमी –‘फिर क्या होता है?’
रामू – उसके बाद दिनभर रोना-गाना मचा रहता है। अपना गुस्सा उतारने के लिए बच्चों की पिटाई कर देती है और गुस्से में खाना भी बेस्वाद होकर मिलता है। घर का माहौल भी चार पांच दिनों तक खराब रहता है। चार पांच दिनों तक मुंह फुलाए बैठी रहती है। ‘
बुजुर्ग आदमी – ‘अब तू ही बता कि यदि गुस्से का बदला गुस्से से दिया जाए तो नुकसान किसका होगा! इससे अच्छा अगर तुम समझदारी रखते हुए शांत रहेगा, उसके गुस्से का उत्तर गुस्से से नही देगा तो लड़ाई भी नही होगी और ना ही घर का माहोल खराब होगा। फिर कुछ देर में तुम दोनो का भी गुस्सा शांत हो जायेगा और हां, तुमने देखा भी होगा कि तुम्हारी मांजी का गुस्सा भी कितनी देर का रहता है। कुछ ही पल में हंसती खिलखिलाती दो चाय के प्याले लेकर सामने भी तो आ जाती हैं।’
रामू समझ चुका था की गुस्से को जगह अगर प्यार से और शांति से काम लिया जाए तो घर में कभी झगड़ा होगा ही नही।
2. हिंदी कहानी- हमारी इच्छा।
राहुल पार्क में उदास सा बैठा कुछ सोच रहा था। जीवन में जैसा सोचा , वैसा नहीं हुआ। पढ़ाई, विवाह, कॅरियर, घर, बच्चे, रिश्तेदारी, मित्र, पर्यटन सहित जीवन से जुड़े हुए कई मामलों में जो सोचा था, वैसा वास्तव में हुआ नही।
जीवन भी अजीब सा है। जो मिलता उसका मजा नहीं ले पाता, जो नहीं मिलता उसके बारे में सोचता रहता।
ताजा मामला उसके प्रमोशन से जुड़ा हुआ है। प्रमोशन के बाद पद तो उसको मनमाफिक मिल गया लेकिन सैलरी शायद उतनी नहीं बड़ी जितनी वह सोच रहा था। पिछली बार भी कुछ ऐसा ही हुआ था। पिछली बार सैलरी तो उसके मुताबित ठीक बाद गई थी लेकिन पद उसके मुताबीत नही मिला था। वह तब भी दुखी था और आज भी दुखी हैं।
अपनी इस अपेक्षाओं पर मार्गदर्शन लेने के लिए वह एक संत के पास पहुंचा। उसमे संत को सारी बात बताई। संत उसके दुखी रहने का कारण समझ चुका था।
गुरु ने उससे कहा-‘बेटा जो,जब, जैसा होना है वैसा होगा। तुम अपनी सीमित बुद्धि से जो कुछ अपेक्षा रखते हो, उस बात से इस विराट अस्तित्व को कोई मतलब नहीं है। अपेक्षा करो, प्रयास करो, फिर जो घटित हो उसकी समीक्षा करो। यही तुम्हारे बस में हैं। फल को लेकर ज्यादा आग्रह मत रखो। जब तक तुम अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं पाओगे तब तक तुम आंतरिक सुख का अनुभव नहीं कर सकते। इसलिए जीवन में जितना भी मिले उससे संतुष्ट रहने की कोशिश करो। आगे और मेहनत करो जिससे पहले से अच्छा कर पाओ। पर जो नही मिला उसके लिए दुखी मत हो। ‘
संत की बात उसको समझ आ चुकी थी। उसको समझ आ चुका था की मेहनत करते रहो। जितना भी मिल रहा है उससे संतुष्ट रहो। जो नही है उसके बारे में सोच कर दुखी मत हो। संत के पास जाने के बाद काफी कुछ बदल चुका था। जीवन के अन्य पक्ष जो टूटे, बिखरे, अनसुलझे और अप्रिय लग रहे थे, वह भी अब उसे ठीक लगने लगे हैं।
3. हिंदी कहानी – फूलो वाली होली
राधा अपनी सहेली मनीषा के साथ बाते कर रही थी। राधा के बच्चे उसके पास आते है और मां से बोलते है। – “मां जब आप रंग बनाओगी, तब हमें भी बुला लेना, अभी हम बाहर खेलने जा रहे हैं।”
‘रंग बनाओगी?’ यह क्या कह रहे हैं बच्चे? मनीषा ने उत्सुकतावश पूछा ।
‘दरअसल हम लोग हर साल होली पर घर पर ही फूलों से, सब्जियों से विभिन्न रंग बनाते हैं। फूल भी हम मंदिर से लेकर आते हैं, जो दूसरे दिन मंदिर से बाहर फेंके जाते हैं। इनसे बने रंगों से होली खेलने से त्वचा और आंखें सुरक्षित रहती हैं, साथ ही दूसरे दिन न कोई बीमार पड़ता है ना ही ज्यादा पानी खर्च होता है। इस रंग के किसी तरह के दुष्प्रभाव नहीं होते। आज कल जो मार्केट में रंग आते है उनमें खतरनाक कैमिकल का यूज करते है जो हमारे स्वास्थ के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
फूलो से रंग बनाने में बच्चे भी सहभागी बनते हैं, इसलिए उन्हें बहुत कुछ सीखने को तो मिल ही रहा है, साथ ही वे पर्यावरण के प्रति हमसे भी ज्यादा जागरूक हो रहे हैं। ‘ राधा ने कहा
‘वाह ! राधा तुम्हारा जवाब नहीं, कितनी अच्छी बात कही तुमने, हम लोग भी अब ऐसे ही रंग बनाएंगे, कितने जागरूक अभिभावक हो तुम लोग, हमेशा तुम्हारे यहां आकर मुझे कुछ- न-कुछ नया सीखने व समझने को मिलता है।’
‘मुझे खुशी है मनीषा की तुम भी प्रकृति के प्रति जागरूक हो।’ राधा ने कहा ।