शिक्षाप्रद हिन्दी कहानिया। Short Moral Story in Hindi. Part 2

शिक्षाप्रद हिन्दी कहानी – आदान-प्रदान 

एक गांव में एक ऋषि रहते थे, उनके कमंडल में हमेशा खीर भरी रहती थी। वह उस कमंडल से लोगों को खूब खीर बांटते थे, लेकिन उनका कमंडल, खीर से कभी खाली नहीं होता था। दूसरी ओर उनका एक शिष्य था, जो अपने कमंडल से बहुत कम खीर बांटता था। फिर भी उसके कमंडल में बहुत कम खीर रहती थी। उस शिष्य के मन में अपने गुरु के कमंडल के राज को जानने की ईच्छा हुई। शिष्य ने अपने गुरु के कमंडल के राज को जानने को कई बार कोशिश की पर उसके हाथ कुछ नही लगा। वह अंततः अपने गुरु के पास ही पहुंचा और उसने गुरु से उनके कमंडल का राज जानने की इच्छा जताई।

ऋषि बोले मैं मेरे कमंडल की खीर रोज बांट देता हूं, इसलिए उसमें जगह हो जाती और मैं फिर उसमें ताजा खीर भर लेता हूं। तुम खीर बहुत कम बांटते हो, फिर भी तुम्हारे कमंडल में खीर बहुत कम रहती है। जैसे एक व्यक्ति यदि अपने अच्छे व मूल्यवान विचारों को नहीं बांटता है तो वे वहीं उसके अंदर परत दर परत सूख जाते हैं। वह व्यक्ति नए विचारों को अपने भीतर ग्रहण नहीं कर पाता है और तुम्हारे इस कमंडल की तरह वह हमेशा खाली ही रहता है। हमेशा अच्छे, मूल्यवान विचारों और चीजों को बांटते रहना चाहिए। यही आदान-प्रदान का नियम है।

शिक्षाप्रद हिन्दी कहानी – असली मित्र 

एक व्यक्ति था, उसके तीन मित्र थे। एक मित्र से वह प्रतिदिन मिलता था। दूसरे मित्र से वह दो– तीन हफ्ते में एक बार मिलता था। तीसरे मित्र से कुछ महीनो में कभी कभी मिलता था। एक बार इस व्यक्ति पर पुलिस में मुकदमा बन गया। वकील ने कहा मुकदमा से बचने के लिए तुम ऐसा गवाह तैयार करो जो कहे कि वह तुम्हें जानता है और तुम पर लगे आरोप को गलत समझता है।
वह व्यक्ति अपने पहले मित्र के पास गया और बोला- मित्र मेरे ऊपर एक मुकदमा बन गया है , तुम चलकर मेरे पक्ष में गवाही दो। मित्र ने कहा, “देखो भाई तुम्हारी मेरी मित्रता अवश्य है, लेकिन गवाही देने के लिए मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता।”
वह व्यक्ति बहुत निराश और दुखी हुआ। तभी उसे दूसरे मित्र का विचार आया। उसके पास जाकर गवाही देने के लिए कहा। दूसरा मित्र बोला, “मैं तुम्हारे साथ कचहरी के द्वार तक तो चल सकता हूँ लेकिन गवाही नहीं दूँगा।”
व्यक्ति फिर दुखी हुआ। फिर उसे अपने तीसरे मित्र का ख्याल आया जिसे वह महीनों बाद मिलता था। उसे अपनी बात कही। तीसरे मित्र ने जोश के साथ कहा- में चलूगा तेरे साथ कचहरी और तेरे पक्ष में गवाही भी दुगा। मुकदमे के अंत तक तेरा साथ दुगा।”
परन्तु यह तीसरा मित्र कौन है? यह है आत्मा। पहला मित्र है-धन, संपत्ति, भवन, भूमि जिन्हें मनुष्य अपना समझता है। और जिनके लिए रात–दिन हर समय चिंता करता है। दूसरा मित्र है ये सम्बन्धी, रिश्तेदार, पत्नी, बच्चे, भाई, बहन जिनके लिए मनुष्य प्रत्येक कष्ट उठाता है। तीसरा मित्र है प्रभु-प्रेम और शुभ कर्म, जो प्रभु प्रेम के कारण किए जाते हैं।
शिक्षा – नश्वर दुनिया से ध्यान हटा कर प्रभु में ध्यान को लगाना चाहिए।

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