Short Moral story in Hindi. शिक्षाप्रद कहानी। बच्चो की कहानी। Part 9
शिक्षाप्रद कहानी – मृत्यु शैया पर बुद्ध ने सुभद्र को दी शिक्षा
गौतम बुद्ध ने संन्यास ग्रहण करने के पश्चात अपना जीवन संपूर्ण समाज के कल्याण हेतु समर्पित कर दिया था। संन्यास पथ पर निरंतर चलते हुए गौतम बुद्ध को गया में निरंजना नदी के किनारे ज्ञान की प्राप्ति हुई। उनके उनके पवित्र उपदेशों को सुन कर लाखों लोग उनके शिष्य बने और उनके बताए हुए मार्ग में अपना जीवन यापन करने लगे।
जब बुद्ध का अंतकाल निकट आया, तो वे कुछ अस्वस्थ हो चले थे। अस्वस्थता के कारण उन्होंने लोगों से भेंट करना बंद कर दिया था। उनके शिष्य चौबीस घंटे उनकी परिचर्या करते। उन सभी को बुद्ध के स्वास्थ्य की बहुत चिंता थी इसलिए किसी भी बाहरी व्यक्ति को उनसे नहीं मिलने देते थे।
ऐसे समय एक दिन सुभद्र वहां आए और बुद्ध के शिष्यों से आग्रह किया कि बुद्ध से मुझे मिलने दिया जाए, क्योंकि उनसे भावी परिस्थितियों के विषय में आवश्यक चर्चा करनी है। शिष्यों ने बुद्ध की अस्वस्थता बताकर सुभद्र को भगवान बुद्ध से मिलने से रोका दिया। बुद्ध ने जब यह चर्चा सुनी, तो उन्होंने अपने परम शिष्य आनंद से कहा- ‘मैं भले ही अस्वस्थ हूं, किंतु लोकमंगल की भावना से मेरे पास आए सुभद्र से न मिलूं, तो अपना जीवन सार्थक कैसे कर पाऊंगा?’ उन्होंने सुभद्र को अंदर बुलाया और सुभद्र बुद्ध की ऐसी श्रेष्ठ भावना देखकर श्रद्धा से अभिभूत हो गए। बुद्ध ने उनकी सभी शंकाओं का समाधान किया। बुद्ध से हुई इस भावपूर्ण भेंट से सुभद्र इतना प्रभावित हुए कि अपना सर्वस्व त्यागकर भिक्षु बन गए और बौद्ध धर्म के प्रचार में भरपूर योगदान दिया। बुद्ध के अंतिम शिष्य सुभद्र ही थे। वस्तुतः यदि जीवन में लोकमंगल की भावना को जिएं तो सामाजिक कल्याण सही अर्थों में साकार हो उठता है।
शिक्षाप्रद कहानी – बुद्ध की करुणा ने बदला डाकू का मन
एक कौशल नामक नगर था। वहां के राजा थे प्रसेनजित। नगर में एक खूंखार डाकू का प्रकोप था। डाकू अंगुलिमाल के नाम से कुख्यात था। वह लोगों को मारकर उनकी अंगुलियां काट लेता और उनकी माला बनाकर अपने गले में पहनता था। इसी कारण उसका नाम अंगुलिमाल पड़ा। अंगुलिमाल के आतंक ने प्रसेनजित को भी त्रस्त कर रखा था। वे समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे अंगुलिमाल को अपनी गिरफ्त में लें? अंगुलिमाल को पकड़ने के लिए राजा ने चारों दिशाओं में अपने सैनिक भेज रखे थे।
एक दिन राजा को जंगल में अंगुलिमाल के होने की सूचना मिली। वे तत्काल सैनिकों के साथ अंगुलिमाल को पकड़ने निकल पड़े। काफी देर तक खोजते रहने के बाद भी उन्हें अंगुलिमाल नहीं मिला। तभी एक सैनिक ने खबर दी कि भगवान बुद्ध वहीं पास में विहार कर रहे हैं।
राजा प्रसेनजित ने बुद्ध के सामने अपनी समस्या रखी महात्मा! मेरे राज्य में अंगुलिमाल नाम के डाकू ने आतंक मचा रखा है। लाख कोशिशों बाद भी मैं उसे पकड़ने में असफल रहा। आप कृपया कोई रास्ता बताए जिससे हम उस खूंखार डाकू को पकड़ सके।’
बुद्ध बोले- ‘यदि वह एक धर्मात्मा के रूप में तुम्हारे सामने आए, तो तुम क्या करोगे?’ राजा ने कहा- अगर वो एक धर्मात्मा के रूप के मेरे सामने आएगा तो मैं उसका स्वागत करूंगा। उसके पुराने सभी अपराध में क्षमा कर दूंगा।’ राजा की बात सुनने के बाद बुद्ध ने पास बैठे व्यक्ति को सामने करते हुए कहा- ‘यह रहा अंगुलिमाल।’ राजा प्रसेनजित अचानक डाकू को सामने पाकर हैरान रह गए। राजा अंगुलिमाल के भिक्षु बन जाने पर बहुत अचंभित थे। बुद्ध की करुणा और प्रेम से अंगुलिमाल का मन परिवर्तित हो गया और डाकू से भिक्षु बन गया। दरअसल डाकू अंगुलिमाल कुछ दिनों पूर्व भगवान बुद्ध को इसी जंगल में मिला था तब वह उनको मारकर उनकी उंगलियां की माला गले में धारण करना चाहता था। परन्तु भगवान बुद्ध के मुख के तेज, उनकी दया भावना, करुणा और उनकी वाणी से इतना प्रभावित हुआ कि उसी क्षण उसने एक भिक्षु का जीवन यापन करने का निश्चय कर लिया।
राजा ने यह जानकर बड़े स्नेह से अंगुलिमाल को प्रस्ताव दिया ‘मैं तुम्हारे लिए भोजन, वस्त्र, आवास की व्यवस्था कर देता हूं।’ किंतु अंगुलिमाल ने नम्रतापूर्वक इनकार किया- ‘राजन ! मुझे सब कुछ मिल गया है। मुझे अब किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं।’ राजा प्रसेनजित बुद्ध को श्रद्धापूर्वक सिर नवाकर चले गए। वस्तुतः प्रेम से सबको जीता जा सकता है। अतः अपने हृदय में घृणा, द्वेष, अलगाव, ईर्ष्या जैसे भावों को स्थान न देते हुए मात्र प्रेम को ही बसाएं।