तेनालीराम की कहानी– मातृभाषा

बच्चो की कहानी। Tenalirama Story in Hindi. Baccho ki kahaniya. 

एक दिन राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक विद्वान पंडितजी आए। उन्होंने महाराज को अपना परिचय देने के बाद कहा, ‘मैंने सुना है कि आपके पास एक से एक विद्वान दरबारी हैं।
महाराज ने कहा ‘आपने ठीक सुना है, हमें अपने दरबारियों की बुद्धिमता पर गर्व है। इनकी बुद्धिमता का कोई अंत नहीं।’

पंडितजी ने राजा की तरह देख ले कहा,’ महाराज अगर आपके राज्य में एक से एक विद्वान है तो क्या वो मेरे एक सवाल का सही जवाब दे सकते है।’
महाराज ने कहा, ’हा बिल्कुल! हमारे विद्वान आपके हर सवाल का जवाब दे सकते है। आपको जो पूछना है पूछो।’
‘क्या कोई बता सकता है, मेरी मातृभाषा क्या है?’ यह कहकर पंडितजी धाराप्रवाह बोलना आरंभ किया।
पहले तेलुगू में बोले, फिर तमिल, कन्नड़, मराठी, मलायालम में भी व्याख्यान दिए। वे जो भाषा बोलते थे। लगता था वही उसकी मातृभाषा है। ‘अब बताइए मेरी मातृभाषा क्या है?’

सभी दरबारी एक दूसरे की तरफ देखने लगे। किसी को पता ही नही चल रहा था की पंडित जी की मातृभाषा क्या है।
तेनालीराम सब कुछ देख रहे थे। तेनालीराम को समझ गए थे की पंडित जी को अनेकों भाषाओं का बहुत ही अच्छा ज्ञान है।

महाराज ने सभी दरवारियो की तरफ देखा। सभी की चेहरे झुके हुए थे। फिर उन्होंने तेनालीराम की तरफ देखा। तेनालीराम ने आंखों ही आंखों में महाराजा को आश्वस्त किया की वो इस समस्या का हल निकाल लेंगे।

तेनालीराम अपने स्थान से उठे और बोले, ‘महाराज मेरी प्रार्थना है कि इन पंडित जी को कुछ दिन अतिथि गृह में ठहराया जाए और मुझे इनकी सेवा का अवसर प्रदान करें।
ऐसा ही किया गया। तेनालीराम उसी दिन से उनकी सेवा में लग गए। तेनालिराम हर समय उनके साथ रहने लगे। पंडित जी भी बहुत चालाक थे। वह तेनालीराम के सामने कभी अपनी मातृभाषा में बात ही नही करते। वो जिस भी भाषा में बात करते वो उनकी मातृभाषा की तरह ही लगती।
एक दिन जब अतिथि वृक्ष के नीचे आसन पर बैठे थे, पाव छूने के बहाने तेनालीराम ने उनको कांटा चुभा दिया। पंडित जी दर्द से छटपटाने लगे और तमिल भाषा में ‘अम्मा अम्मा’ करने लगे। तेनालीराम ने वैद्यजी को बुलाकर तत्काल उनका उपचार कराया। अगले दिन पंडित जी सभा में आए और बोले महाराज, ‘आज चौथा दिन है, क्या मेरे प्रश्न का उत्तर मिलेगा?’
तेनालीराम उठकर बोले, ‘महाराज इनकी मातृभाषा तमिल है।’
कुछ और कहने से पहले ही अतिथि बोल पड़े ‘आपने बिल्कुल सही बताया, किन्तु आपको कैसे पता चला?’ ‘आपके पांव में कल कांटा चुभा था, तब आप तमिल भाषा में ‘अम्मा अम्मा’ पुकार रहे थे। इसी से मैंने अनुमान लगाया कि आप की मातृभाषा तमिल है। क्योंकि जब व्यक्ति किसी दुख तकलीफ या संकट में होता है। तब आडंबर छोड़कर अपने वास्तविक रूप में आ जाता है।’
पंडितजी बोले, ‘आप धन्य हैं, तेनालीराम आप विद्वान और कुशाग्र बुद्धि के मालिक हैं।’
पंडितजी तेनालीराम की बुद्धिमता का लोहा मानने लगे। महाराज भी तेनालीराम पर बहुत प्रसन्न हुए।

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