Short Moral story in Hindi. शिक्षाप्रद कहानी। बच्चो की कहानी। Part 8

शिक्षाप्रद कहानी – कुदरत के दो रास्ते।

एक बच्चा दोपहर में नंगे पैर फूल बेच रहा था। लोग मोलभाव कर रहे थे। एक सज्जन ने उसके पैर देखे; बहुत दुःख हुआ। वह भागकर गया, पास ही की एक दुकान से बूट लेकर के आया और कहा-बेटा! बूट पहन ले। लड़के ने फटाफट बूट पहने, बड़ा खुश हुआ और उस आदमी का हाथ पकड़ के कहने लगा- आप भगवान हो। वह आदमी घबराकर बोला- नहीं नहीं बेटा! मैं भगवान…. नहीं। फिर लड़का बोला- • जरूर आप भगवान के दोस्त होंगे, क्योंकि मैंने कल रात ही भगवान को अरदास की थी कि भगवानजी, मेरे पैर बहुत जलते हैं। मुझे बूट लेकर के दो। वह आदमी आंखों में पानी लिये मुस्कराता हुआ चला गया, पर वो जान गया था कि भगवान का दोस्त बनना ज्यादा मुश्किल नहीं है। कुदरत ने दो रास्ते बनाए हैं- देकर जाओ या छोडकर जाओ , साथ लेकर के जाने की कोई व्यवस्था नहीं।

शिक्षाप्रद कहानी – सत्य का साथ न छोड़ें

स्वामी विवेकानंद प्रारंभ से ही मेधावी छात्र थे और सभी लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे। जब वह अपने साथी छात्रों को कुछ बताते तो सब बड़े ही ध्यान से उन्हें सुनते थे।
एक दिन कक्षा में वह कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न न थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब अध्यापक कक्षा में आए और पढ़ाना शुरू कर दिया। अध्यापक ने अभी पढ़ाना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी।
“कौन बात कर रहा है?” अध्यापक ने तेज आवाज में पूछा। कुछ छात्रों ने स्वामी जी और उनके – साथ बैठे छात्रों की तरफ इशारा कर दिया। अध्यापक उनको बाते करते हुए देख कर क्रोधित हो गए। उन्होंने तुरन्त उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबंधित प्रश्न पूछने लगे।
जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया तब अध्यापक ने स्वामी जी से वही प्रश्न किया, उन्होंने आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया। उनके द्वारा दिए गए उत्तर से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे स्वामी जी मानो सब कुछ पहले से ही जानते थे। यह देखकर अध्यापक को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बातचीत कर रहे थे।
फिर क्या था। उन्होंने स्वामी जी को छोड़कर सभी को बैंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बैंच पर खड़े होने लगे। स्वामी जी भी सभी छात्रों के साथ बैंच पर खड़े हो गए।
अध्यापक बोले, “नरेंद्र तुम बैठ जाओ। बैंच पर उन्ही छात्रों को खड़ा किया गया है को क्लास में बातचीत कर रहे थे। तुमने तो सभी प्रश्नों के सही सही उत्तर दिए है। तुम तो ध्यानपूर्वक पाठ को सुन रहे थे। ”
“नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वह मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था।” स्वामी जी ने आग्रह किया।
अध्यापक सहित सभी विद्यार्थी उनकी सच बोलने की हिम्मत देखकर बहुत प्रभावित हुए। अध्यापक ने उनकी सच बोलने की हिम्मत देख कर उनकी प्रसन्नता की।

शिक्षाप्रद कहानी – साधु कनकदास ने बताई सही राह

मध्वाचार्य दक्षिण भारत में एक संत हुए थे। मध्वाचार्य के अनेक शिष्य थे। कनकदास भी उनके एक शिष्य थे। साधु कनकदास बहुत प्रसिद्ध संत थे। कनकदास ज्ञान और विनम्रता के लिए प्रसिद्ध थे।
एक दिन मध्वाचार्य के कुछ शिष्य‌ “ईश्वर को कौन प्राप्त कर सकता है” विषय पर परस्पर चर्चा कर रहे थे। उन सभी शिष्यों के अलग-अलग मत थे और किसी भी एक मत पर सहमति नहीं हो पा रही थी। जब उनको इस प्रश्न का उचित उत्तर नहीं मिला तो उन सभी ने साधु कनकदास से पूछने का निश्चय किया।
उनमें से एक साधु ने कनकदास से प्रश्न किया – ‘क्या मैं परमात्मा को पा सकता हूं?’ कनकदास ने उत्तर दिया- ‘अवश्य, किंतु यह तब होगा जब ‘मैं’ जाएगा।’ इसके बाद सभी शिष्यों ने भी बारी-बारी से यही सवाल किया और सभी को कनकदास ने यही उत्तर दिया। हैरान शिष्यों में से एक ने उनसे पूछा- ‘स्वामीजी आप भी तो भगवान के पास जाएंगे न?’ कनकदास बोले- ‘अवश्य जाऊंगा, किंतु तभी, जब ‘मैं’ जाएगा।’
एक शिष्य ने प्रश्न किया ‘स्वामीजी! यह ‘मैं’ कौन है और यह किस-किस के साथ जाएगा?’ तब कनकदास ने स्पष्ट किया- ‘मैं’ का अर्थ है मोह, अहंकार। जब तक ‘मैं’ और ‘मेरा’ तथा ‘मैं हूं’ का अहंकार नहीं मिटेगा, तब तक हम ईश्वर को नहीं पा सकते। वस्तुतः प्रभु प्राप्ति के मार्ग की यही सबसे बड़ी रुकावट है। जब तक ‘मैं’ रूपी मोह या अंहकार हमारे भीतर रहेगा तब तक हम ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकते।’
सभी शिष्यों के मन की उलझन कनकदास के उत्तर से दूर हो गई।
इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि अहंकार हमें ईश्वर से बहुत दूर ले जाता है। इसलिए ईश्वर की प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम अंहकार को दूर करे।

अकबर बीरबल की कहानिया 

बच्चों की कहानिया 

Leave a Comment

error: Content is protected !!