Hindi Short Story. Short emotional Stories in Hindi. Family Emotional Story in Hindi. हिंदी लघु कहानीया। छोटी भावुक कहानिया। ईमोशनल स्टोरी इन हिन्दी
हिंदी लघु कहानी (Hindi Short Story) – वृद्ध बरगद का पेड़
पिताजी, मैं आपकी और आपकी बहू की रोजाना चिकचिक से अब तंग आ गया हूं। कल ही आपको वृद्धाश्रम छोड़ आता हूं। आपकी बहू को शांति मिल जाएगी और आप भी सुकून से रह पाएंगे। सुरेश ने खीझते हुए बिस्तर पर लेटे अपने पिता से कहा।
यह सुनकर पिता नम आंखों से बेटे को देखने लगे। पत्नी के गुजर जाने के बाद बेटा सुरेश ही उनका एकमात्र जीने का सहारा था। अपने पोते-पोतियों के साथ सारे दिन हसना–खेलना और थोड़ी देर बेटे सुरेश से बात करके उनको आनंद मिल जाती था।
सुरेश की पत्नी कुछ दिनों से न जाने क्यों अपने ससुर से बात-बात पर उलझ जाती और फिर सुरेश से अपना दुखड़ा सुनाती। इसीलिए सुरेश ने अपने पिता को वृद्धाश्रम में भेजने का मन बना लिया था। इसलिए सुरेश अपने मित्र मनीष से सलाह लेने उसके घर गया। मनीष अपने घर के बाहर बूढ़े बरगद के पेड़ के नीचे बैठा था। सुरेश से उससे यहां बैठने का कारण पूछा तो मनीष बोला, ‘यहां बैठकर मैं अपने पिता को अपने नजदीक पाता हूं। इसकी ठंडी छांव में अपने पिता के स्पर्श को महसूस करता हूं। बचपन में इसकी डालियों पर ही तो वे मुझे झूला झुलाते थे, यहीं पर बैठकर वे मेरे बच्चों को अपने जीवन के संघर्ष को कहानी के रूप में सुनाते थे। तुम बहुत भाग्यशाली हो जो चाचाजी का हाथ तुम्हारे सिर पर अभी है। ईश्वर उन्हें दीर्घायु दे।’ कहते हुए उसकी आंखें भीग गईं। ‘तुम बताओ कैसे आना हुआ?’ मनीष के पूछने पर सुरेश बोला, ‘यूं ही’ कहकर वह अपने घर की तरफ चल दिया। मन ही मन उसने मनीष को धन्यवाद दिया जिसने उसे पिता को वृद्धाश्रम भेजने की बड़ी भूल करने से बचा लिया था।
हिंदी लघु कहानी (Hindi Short Story) – मेरा साथ दोगी।
विवेक ! अब मैं इस घर में और नहीं रह सकती। अब मुझे कहीं और ले चलो, जहां केवल मैं और तुम रहें और कोई तीसरा ना हो। माधुरी ने अपने पति से कहा।
‘धीरे बोलो माधुरी मां किचन में है, सुन लेगी।’
‘सुने तो सुने, मेरी बला से। मेरी सारी सहेलियां अपने-अपने पति के साथ अलग रहती हैं, ना कोई रोकने वाला, ना कोई टोकने वाला, अपनी जिंदगी आराम से जीती हैं। यहां तो हर समय यही कहते हो-मां आ जाएगी, बाबूजी सुन लेंगे, धीरे बोलो। अरे, जिंदगी एक बार मिलती है, बार बार नहीं।’
‘माधुरी मैं तुम्हारे आगे हाथ जोडता हु धीरे बोलो मां सुन लेगी। रही बात मां-पापा से अलग होने की तो आइंदा यह बात दिमाग में भी मत लाना, मैं मम्मी-पापा का इकलौता बेटा हूं, क्या इनसे अलग रह सकता हूं? आज जो मेरा ऊंचा ओहदा देखकर तुम्हारे मम्मी-पापा ने मेरे साथ तुम्हारी शादी की है ना। तो कान खोलकर सुन लो कि मुझे उच्च शिक्षा दिलाने के लिए मेरे मम्मी-पापा ने बहुत त्याग किया है। पापा ने अपनी पुरखों की जमीन गिरवी रखी है। मेरी मां ने अपने गहने, जो स्त्री को से सबसे प्रिय होते हैं, उनको बेचकर मुझे पढ़ाया है। मैं तुम्हारी बेबुनियाद होड़ के लिए। कैसे उन्हें बुढ़ापे में अकेला छोड़ दूं। शादी केवल पति-पत्नी का ही मेल नही है दो परिवारों का भी मेल है। क्या मेरे मम्मी-पापा ने तुम्हें कभी परेशान किया है? वृद्धावस्था की ओर अग्रसर हो रहे मां-बाप को इस उम्र में अकेला मैं तो नहीं छोड़ सकता। जिन्होंने मेरी जिंदगी बनाने में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। मैं अब इन्हें वो सारे सुख देना चाहता हूं जो इन्होंने मेरा भविष्य बनाने के लिए कुर्बान कर दिए। यह सब करने के लिए माधुरी मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। बोलो दोगी ना मेरा साथ?’
माधुरी ने विवेक के जुड़े हुए हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा ‘ मुझे माफ कर दो विवेक। अब में कभी अलग होने का नही सोचूंगी। मैं तुम्हारे हर कदम में साथ हु।’