Hindi Short Story. Short emotional Stories. हिंदी लघु कहानीया। छोटी भावुक कहानिया।
हिंदी लघु कहानी – असली गुरु।
स्कूल की घंटी बज चुकी थी। सारे बच्चे अपना-अपना बस्ता कक्षा कक्ष में रखकर प्रार्थना स्थल की ओर दौड़कर आ रहे थे। पीटीआइ सर हाथ में छड़ी लिए सभी को जल्दी से आने का इशारा कर रहे थे। पीटीआइ सर के बुलाने पर सभी बच्चे भागकर प्रार्थना स्थल पर आ गए।
लेकिन लगभग आठ साल का एक लड़का जमीन पर बैठा रहा। पीटीआइ सर उसे छड़ी से मारने के लिए चले ही थे कि पास में खड़े अध्यापक ने कहा, ‘आप प्रार्थना शुरू करवाइए सर… उस बच्चे को मैं देखता हूं।
अध्यापक जी उस बच्चे के पास पहुंचे और पूछा, ‘अरे, यहां क्यों बैठे हो… प्रार्थना में नहीं चलना क्या?’
वह एक हाथ से अपनी बाए पैर की एड़ी दबाए, सिसक रहा था। अध्यापक ने फिर पूछा, ‘अरे बेटा! क्या हुआ, बोलता क्यों नहीं है?’
‘सर कां. कां… कांटा… चुभा गया है एड़ी में…।’
अध्यापक जी ने उसे हाथ पकड़कर खड़ा किया। सचमुच एक बबूल का लंबा-सा शूल एड़ी में गड़ा हुआ था। उन्होंने नीचे झुककर बड़े आराम से कांटा निकाला। फिर उसे नल के पास ले गए। उसका खून से लथपथ पैर धुलवाया।
लड़के ने कहा, ‘सर, मैं धीरे-धीरे प्रार्थना स्थल तक चला जाता हूं।’
अध्यापक ने कहा, ‘नहीं… पहले तुम यह बताओ तुम स्कूल चप्पल पहनकर क्यों नहीं आए’
वह सिर झुकाए बोला, ‘ सर मेरी चप्पल टूट गई है। मां से कहा था चप्पल खरीदने के लिए… लेकिन उन्होंने कहा कि एक-दो दिन में मजदूरी मिल जाएगी, तब खरीदेंगी।’
‘तुम्हारे पिताजी?” अध्यापक ने पूछा।
‘जी… मेरे पिताजी नहीं हैं… कुछ साल पहले बीमारी के कारण चल बसे थे।’ लड़के की आंखें भर में आईं।
अध्यापक ने उसे कक्षा में ले जाकर बैठाया। प्रार्थना समाप्त होने के एक घंटे बाद अध्यापक जी ने उस लड़के को बुलाया। ‘ये लो बेटा… इन्हें पहन लो।’
उन्होंने एक कैरी बैग देते हुए कहा। उसने तुरंत उस बैग को खोला।
‘सर जूते और मोजे..?’ लड़के ने आश्चर्य से पूछा।
‘हां… तुम्हारे लिए हैं, अब इन्हें रोज पहनकर आना।’ अध्यापक ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा।
लड़के ने सिर्फ इतना कहा, ‘आज मैंने आपके रूप में असली गुरु देख लिया।’
हिंदी लघु कहानी – पापा की सीख।
बात तब की जब मैं दसवीं में पढ़ता था। एक दिन पिताजी ने मुझे कुछ पैसे देकर घर के लिए जरूरत की कुछ चीजें खरीद लाने को कहा। मैं बाजार गया। सभी चीजें खरीदी। दुकानदार ने मेरा सामान मुझे पकड़ा दिया। दुकानदार दूसरे ग्राहको को सामान देने में व्यस्त हो गया। मौका देखकर मैं बिना पैसे दिए ही वहां से निकल लिया। रास्ते भर खुश हो रहा था कि पिताजी खुश होंगे। घर पहुंचा, सामान देखकर पिताजी बहुत खुश हुए। मैंने बताया कि मैं तो बिना पैसे दिए ही खिसक आया, दुकानदार को पता भी नहीं चला। इतना सुनते ही पिताजी ने एक तमाचा गाल पर जड़ दिया। फिर कान पकड़ कर बताया कि यह चोरी है। चोरी की खरीदारी कभी फलवती नहीं होती। आज तुमने ये चोरी की है, कल बड़ी करोगे। वापस जाओ और दुकानदार से माफी मांगकर पैसे देकर आओ। मैं वापस गया।माफी मांगकर पैसे दिए। दुकानदार ने खुश होकर मुझे एक टॉफी खाने को दी। पिताजी की एक थप्पड़ ने मुझे जीवन पर्यन्त गलत काम नहीं करने की सीख दे दी।
हिंदी लघु कहानी – बोझ
दोपहर का वक्त था। मोहन बाबू सोए हुए अतीत की यादों में विचरण कर रहे थे, तभी उनके बेटे रोहित ने कमरे में प्रवेश कर उनका ध्यान भंग करते हुए कहा ‘पिताजी आपने अपना सामान जमा लिया है ना, आज आपके हमारे यहां तीन माह पूरे हो गए है ,आज आपको बड़े भैया के यहां जाना है।’
मोहन बाबू ने अपनी जवानी में बहुत मेहनत करके अपने परिवार का पालन पोषण किया, चारों बेटों को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाया परंतु बुढ़ापे के साथ ही उनका समय बदला। कुछ वर्षों पूर्व पत्नी का देहांत हो गया, चारों बेटों ने जमीन जायदाद, धन-दौलत , जेवर जवारत का बंटवारा कर लिया।
पूरी जायजाद बाटने के बाद सब इस बात पर चर्चा करने लगे की पिताजी को कौन रखेगा? सभी एक दूसरे का मुंह देखने लग गए। कोई नहीं बोला। अंत में सभी बेटे-बहुओं ने फैसला किया कि पिताजी तीन-तीन महीने बड़े से छोटे के क्रम में चारों भाइयों के यहां रहेंगे ताकि किसी एक बार बोझ न पड़े। तब से तीन तीन महीनों में बाबूजी का स्थान परिवर्तित हो रहा है।
आज छोटे बेटे के यहां उनका आखिरी दिन था। मोहन बाबू ने दुखी मन से अपना थैला जमाना शुरू कर दिया और उनके मानस पटल पर वही पुरानी यादें दौड़ने लगीं, किस प्रकार उनका हंसता खेलता परिवार था। चार बेटों के होने की खुशी थी परंतु आज उनका मन बहुत व्याकुल था। जिस पिता ने चारो बेटो को पढ़ाया लिखाया। सभी का अच्छे से पालन पोषण किया आज उन सभी को एक पिता बोझ लग रहे थे।