Hindi Short Story. Short Stories in Hindi. हिंदी लघु कहानीया। छोटी कहानिया।
पारिवारिक कहानी। हिंदी कहानी। Family Hindi story
हिंदी लघु कहानी – वास्तविक गुण
तीन महिलाएं लकड़ी का गट्ठर लेकर घर लौट रही थीं कि तभी आपसी बातचीत में एक महिला अपने पुत्र की प्रशंसा करते हुए बोलीं- मेरा बेटा बहुत ही सुरीला गाता है। सच में क्या खूब आवाज है उसकी। यह सुन, दूसरी महिला ने कहा- मेरा बेटा तो बहुत तेज दौड़ता है, घोड़े जितना तेज। तीसरी महिला चुप थी तो उन्होंने पूछा-तुम्हारे पुत्र में कौनसे गुण हैं, तुम भी बताओ तो तीसरी महिला बोली- क्या बोलूं, मेरे पुत्र में तो इस तरह का कोई गुण नहीं है।
हिंदी लघु कहानी – वास्तविक गुण
महिलाएं आगे बढ़ीं तो एक लड़का गाना गाता हुआ उनके सामने से जा रहा था तो पहली महिला बोली- देखो कितना सुंदर गाता है मेरा बेटा। कुछ देर बाद एक लड़का उसी रास्ते से हवा से बातें करता दौड़ता हुआ जा रहा था, उसे देख दूसरी महिला बोली- यह देखो कितना तेज गति से दौड़ रहा है मेरा बेटा।
हिंदी लघु कहानी – वास्तविक गुण
थोड़ी ही देर में तीसरी महिला का बेटा आया और उसने अपनी मां के सिर से लकड़ी के गड्डर का बोझ अपने सिर ले लिया और उनके साथ-साथ चलने लगा। यह देख दोनों महिलाओं की नजरें शर्म से झुक गई और उन्हें समझ में आ गया कि वास्तव में तो ये ही गुणवान है, जिसने अपनी मां का बोझ अपने सिर ले लिया। न कि उनके पुत्र जिन्होंने अपनी मां को बोझ उठाता देखकर भी अनदेखा कर दिया। सभी अपने बाहरी ज्ञान और गुण को महत्त्व देते हैं, जबकि मनुष्य में मूल संस्कार और ज्ञान वास्तव में उन्हें श्रेष्ठ बनाता है, न कि दिखावे के गुण से कोई श्रेष्ठ बनता है।
हिंदी लघु कहानी – पिताजी
हिंदी लघु कहानी – पिताजी
दीनू को मजदूरी के चार सौ रुपए मिलते ही वह घर की ओर चल दिया। रास्ते में उसे याद आया कि मां की दवाई ले जानी है, मुन्ना के लिए एक ज्योमैट्री बॉक्स और घर के लिए जरूरी चीजें। मां को दवाई की तो मुन्ना को ज्योमैट्री बॉक्स की उम्मीद थी। पत्नी इसी इंतजार में बैठी थी कि आटा-दाल, तेल, चायपत्ती और शक्कर आएगी तो ही चूल्हा सुलगाऊंगी। फटे कुर्ते की जेब में सिर्फ चार सौ रुपए। वह सोचने लगा की मां की दवाई ही तीन सौ रुपए की है, फिर कम से कम दो सौ रुपए और चाहिए, तब जाकर बाकी का हिसाब बैठ पाएगा, न जाने कैसे होगा। उसी समय एक सज्जन ने पूछा-क्या ये पांच-छः सौ ईंटों को अंदर पहुंचा दोगे?” “जी बाबू जी।” दीनू ने कहा। “क्या लोगे?” सज्जन ने पूछा। ‘बाबूजी दो सौ रुपए।” दीनू ने कहा। बाबूजी ने कहा- ये लो और ईटे पहुंचा दो।” थके हुए शरीर में दोबारा ताजगी सिर्फ इसलिए लौट आई कि वह आज अपने घरवालों की जरूरतों को पूरी कर देगा।
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