पति पत्नी की लव स्टोरी। Husband wife love story in Hindi. Love Story in Hindi

हिंदी लव स्टोरी – नयी जिम्मेदारी।

सुबह से तीन कप चाय पी चुके हो। कितनी चाय पीने लगे हो। घर में इतनी चाय पीते हो तो दफ्तर में कितनी पीते होंगे अंजलि जी पति की ओर चाय का प्याला बढ़ाकर बोली।
‘क्या करूं, सुबह से लेकर अब तक के सारे काम कर चुका हूं। अखबार पढ़ चुका हूं, पौधों को पानी दे दिया, अलमारी भी साफ कर चुका। इतना काम करने के बाद भी घड़ी केवल 10 बजा रही है।’ नीरज जी को रिटायर हुए एक हफ्ता ही हुआ है, पर घर की चारदीवारें और एकाकीपन उन्हें चुभने लगा है।
अंजलि बार बार कहती, ‘अब दफ्तर जाने की जल्दी थोड़े ही है, इतनी जल्दी पांच बजे क्यों उठ जाते हो। अब देर से उठा करो। इतना जल्दी उठ कर क्या करना है।’
अंजलि जी मन में जानती थी, दरअसल गलती नीरज जी की नहीं है, वो भी क्या करें, बरसों से यही दिनचर्या वह जीते आए हैं। रोज सुबह जल्दी उठना, फिर दफ्तर के लिए तैयार होना।
अंजलि जी को भी खाली बैठने की आदत नहीं थी, पर पिछले महीने जब से हाई बीपी के कारण वे चक्कर खाकर गिरी थी, तब से उन्हें बेटे-बहू ने काम न करने की सख्त हिदायत दी थी। रिटायरमेंट का दौर तो उनके जीवन में भी चल ही रहा था। पोते-पोतियां भी बाहर हॉस्टल में पढ़ते थे। सारे दिन घर की चारदीवारी में रहना।

‘क्या भाव है भिंडी?’ नीरज जी ने घर के बाहर ठेले वाले को रोकते हुए पूछा। ‘अंकल जी, थर्टी रूपी की एक केजी।’ लड़के ने जवाब दिया। नीरज जी उस लड़के के मुंह से अंग्रेजी की गिनती सुनकर हैरानी से उसे देखने लगे। यही कोई 14-15 साल की उम्र होगी, गोल चेहरा और चमकती हुई आंखें।
‘कितना पढ़े हो, स्कूल जाते हो क्या? रहते कहां हो तुम?’ नीरज जी ने सवाल पूछे
इतने में ही श्रीमती जी थैला लिए आ गई।
‘अंकल जी, हम यही दशहरे मैदान के पीछे वाली बस्ती में ही रहते हैं। चौथी कक्षा तक पढ़े हैं और फिर काम के चक्कर में पढ़ाई छोड़ दी।’
ठेले में एक कोने में पड़ी किताबों को देखकर वह लड़का बोला। लड़के की नजरें उन किताबों पर ही थी। न जाने उन किताबों के पन्नों पर कितने सपने उसने उकेरित किए हुए थे।
‘काम के चक्कर में, पढ़ाई क्यों छोड़ी? स्कूल से आने के बाद काम कर लेते।’ ‘अंकल जी, मां दमा की मरीज है। दवाई, डॉक्टर की फीस का खर्चा है। ऐसे में फीस और किताबों का खर्चा कौन उठाएगा। फिर 7-8 घंटे स्कूल में अपना पूरा समय बर्बाद करूंगा, तो अकेले बापू की मजदूरी की कमाई से छोटे भाई-बहन का खर्चा कैसे चलेगा। पढ़ने का शौक तो हमको भी था। बड़ा आदमी बनने का सपना था, पर…..’ कहते कहते उसका गला भर आया। उस लड़के के शब्दों में कर्त्तव्य बोध के साथ-साथ, आगे न पढ़ पाने की विवशता भी थी। नीरज जी उसकी बातों को सुनकर भावुक हो गए।
उन्होंने पत्नी की ओर नजर कर देखा, जो उनके बिनकहे शब्दों और भावनाओं का समर्थन कर रही थी। उन्हें समझ आ गया था कि अब उनको अपने रिटायरमेंट के बाद की नई पारी की शुरुआत कैसे करनी है।
‘पढ़ना चाहते हो, हमसे पढ़ोगे सुबह के 2-3 घंटे। किताबें- कापियां सब मेरे जिम्मे, तुम बस मन लगाकर पढ़ना।’ नीरज जी उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोले।
लड़के के मुरझाए चेहरे पर अचानक रौनक आ गई। फिर मैं अपने दोस्तों को भी बोल देता हूं। वो भी घर की मजबूरियों के कारण आगे पढ़ न पाए थे। वे सुबह आपसे पढ़ लेंगे और बाद में पूरे दिन अपना कामकाज कर सकेंगे।’ कहते हुए मुकेश, अखिलेश जी के जवाब का इंतजार किए बिना ठेले को दौड़ाकर बस्ती की ओर झूमता हुआ चला गया। नीरज जी उसके उत्साह को देखकर मुस्कुराने लगे तभी पत्नी अंजलि की ओर उनकी नजर गई। ‘मेरे जीवन के कठिन शब्दों का सरल अर्थ देने वाली अंजलि जी, अब आप भी अपनी हिंदी ऑनर्स की डिग्री का सही सदुपयोग करो। बहुत साल पहले घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों के कारण तुमने टीचर का पद छोड़ दिया था। अब उसका सही उपयोग करने का समय आ गया है, जीवन की ‘नई राहें’ हमें पुकार रही हैं। प्रसन्नता और आत्मविश्वास से हमें इस नई पारी को भी सफलता के शिखर के पार पहुंचाना है, मैडम जी।’ नीरज जी ने पत्नी का हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए कहा। दोनों को खुशी थी कि रिटायरमेंट के बाद का खाली समय अब किसी के आने वाले समय (भविष्य) को बेहतर बनाने में लगाएंगे। अपनी जमापूंजी से गरीब और असहाय बच्चों को शिक्षित करेंगे और जीवन की इस नई पारी को सर्वश्रेष्ठ बनाएंगे।

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