Maa Emotional Story in Hindi- उमा का अकेलापन . मां पर इमोशनल स्टोरी।

सुबह का समय था। नीतू रसोई में नाश्ता बना रही थी। उमा हाथ में माला लिए भजन करने बैठी थी, पर उनका मन भजन में नहीं लग रहा था। वह चाहती थी कि बहू (नीतू) नाश्ता बनाने से पहले उससे पूछे कि, ‘मां जी आज नाश्ते में क्या बनाऊं?’ वह बहू को ढेर सारे निर्देश दे। पर बहू को सास से क्या लेना देना, वह भला क्यों पूछेगी सास से। उमा ऐसे ही अनगिनत विचारों में खोई रहती। वह आजकल स्वयं को बहुत उपेक्षित महसूस करने लगी थी। उसे लगता कि अब परिवार को उसकी कोई जरूरत नहीं रह गई। परिवार में किसी के पास अब उसके लिए समय नहीं है। उमा के पति मोहन अब रिटायर हो चुके थे। वे दिनभर अखबार वगैरह पढ़ते रहते, टीवी में न्यूज देखते रहते या फिर बाहर टहलने चले जाते। बेटा विशु भी अब अपने ऑफिस के कार्यों में व्यस्त रहता था। छुट्टी के दिन भी वह या तो किसी काम में व्यस्त रहता या फिर पत्नी और बच्चे को लेकर घूमने निकल जाता, लेकिन मां के लिए उसके पास भी टाइम नहीं था। शादी से पहले विशु अपनी मां और पापा को छुट्टी के दिन घुमाने ले कर जाया करता था। पर अब तो उसके पास टाइम ही नही है। बहू नीतू वैसे तो घर के कार्यों में ही व्यस्त रहती थी, पर खाली समय होने पर अपने मायके वालों से या सहेलियों से बतियाती रहती, पर सास के पास बैठने के लिए उसके पास न तो वक्त था और न ही इच्छा। नीतू आस पास की औरतों से बतियाती रहती पर अपनी सास के पास 5 मिनट भी ना बैठती। पांच साल का पोता तनु भी अब अपनी कॉपी किताबों, खिलौनों और मोबाइल में गेम खेलने में ही व्यस्त रहता था। स्कूल से आते ही दोस्तो के साथ खेलने चला जाता। घर आते ही पढ़ाई और मोबाइल में व्यस्त रहता। वह भी दादी के पास कम ही आता। उमा अपने परिवार वालों को अपने आसपास देखना चाहती थी। कमरे में बैठे-बैठे जब वह ऊबने लगती और बहू के कार्यों में हाथ बंटाने की कोशिश करती तो बहू बड़े प्यार से उन्हें समझाते हुए उनके कमरे तक ले जाती और उन्हें आराम करने की सलाह देती। असल में वह भी सास की टोका-टाकी से बचकर शांति से अपना काम निपटाना ज्यादा पसंद करती थी। पति और बेटे-बहू उसकी मनः स्थिति को समझ नहीं पा रहे थे। उमा उदास रहती और मन ही मन घुटती रहती। धीरे-धीरे उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। वह डिप्रेशन का शिकार हो चुकी थी। अब सभी उसके लिए चिंतित हो गए। उन्होंने उसे बहुत से डॉक्टरों को दिखाया, सारे टेस्ट करवाए, पर डॉक्टर उसकी बीमारी का असली कारण नहीं पकड़ पा रहे थे। वे इसे बुढ़ापे का असर बताकर तरह-तरह की दवाइयां लिख देते, पर असल में तो उमा के भीतर जीने की इच्छा ही समाप्त हो गई थी, वह अंदर ही अंदर अकेलापन महसूस करने लगी थी। Maa Emotional Story in Hindi

एक दिन अचानक उमा का भतीजा विक्की उससे मिलने आया। वह बहुत हंसमुख स्वभाव का था। उमा को उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा क्योकि वह उसकी हँसी मजाक कर से उमा का मन हलका हो जाता। उसने उमा से से कहा भी की उसको जब भी टाइम मिलेगा तब वह उनसे जरूर मिलने आया करेगा। अब जब भी समय मिलता, विक्की, बुआजी से मिलने आ जाता। उमा उससे बातें कर बहुत हल्का महसूस करती। अब वह विक्की के आने का बेसब्री से इंतजार करती रहती। वह धीरे-धीरे खुश रहने लगी थी और उसकी तबीयत में सुधार होने लगा। परिवार के सदस्यों को भी अब बीमारी का असली कारण समझ आ गया था। बेटे विशु को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। उसे आत्मग्लानि हो रही थी कि उसने अपनी मां के अकेलेपन की व्यथा पर क्यों ध्यान नहीं दिया। जिस मां ने उसे पालने-पोसने और बड़ा करने में अपने दिन-रात एक कर दिए, उसने कैसे उन्हें उपेक्षित छोड़ दिया? बुढ़ापे में अकेलापन कितना कष्ट देता है, इसका अंदाजा संतान को तभी होता है, जब वे उनकी अवस्था में पहुंचते हैं, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है। अब विशु जब भी घर पर होता, मां के कमरे में चला आता और अपनी पत्नी नीतू को भी थोड़ी देर वहीं बैठने को कहता। पोता तनु भी उमा के कमरे में ही खेलता रहता। बेटे-बहू और पोते का साथ पाकर अब उमा को नया जीवन मिल गया था। वह धीरे- धीरे पूरी तरह स्वस्थ हो गई। बहू अब उससे घर के कार्यों के बारे में सलाह लेने लगी। वह सासू मां को हर बात बताती और उनसे हंसती-बतियाती। उमा भी बहू के कार्यों में टोका-टाकी करने या कमी निकालने की बजाए, उसकी प्रशंसा करती। अब बहू नीतू भी पहले से अधिक खुश रहने लगी थी, क्योंकि शायद वह भी समझ चुकी थी कि परिवार में सबको एक-दूसरे की जरूरत होनी चाहिए, तभी परिवार, परिवार बनता है और तभी सब खुश रह सकते हैं।

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