Short Moral story in Hindi. शिक्षाप्रद कहानी। बच्चो की कहानी। Part 10

शिक्षाप्रद कहानी – दानशीलता का बखान

एक नगर में सेठ रहता था । वह बहुत धनवान था। लेकिन जितना पैसा उसके पास था, उतना धैर्य नहीं था। पैसों का उस सेठ को बहुत अभिमान था। किसी को एक पैसा देता तो सैंकड़ों-हजारों के गीत गाता था। उन्हीं दिनों एक महात्मा उनके नगर में विचरण करते हुए आए थे। सेठ को पता – चला कि नगर में एक बड़े महात्मा – आए हैं तो उसने सोचा कि उनसे मिलकर उन्हें कुछ भेंट करना चाहिए। वह उनके पास जा पहुंचा।
अभिवादन के बाद महात्मा ने उससे आने का उद्देश्य पूछा तो पहले तो उसने अपने ऐश्वर्य और धन का बखान किया, फिर अपनी दानशीलता की प्रशंसा की।
अपनी प्रशंसा के लम्बे आख्यान के बाद उस आदमी ने एक थैली निकाल कर महात्मा के सामने रखी और बोला, “मैंने सोचा कि आपको पैसे की तंगी रहती होगी इसलिए यह लेता आया। ये पूरी हजार मोहरे हैं। इतनी मोहरे आपने कभी एक साथ नहीं देखी होगी। ”
ऐसा कहते हुए उसकी आंखों में अभियान भी उभर आया।
महात्मा ने थैली को एक ओर सरकाते हुए कहा, “मुझे तुम्हारे पैसे की नहीं, तुम्हारी जरूरत है।” यह सुनकर धनवान परेशान हो गया कि आखिर महात्मा की हिम्मत कैसे हुई जो उसकी दी हुई हजार मोहरों की भेंट उन्होंने ठुकरा दी। उसका अभिमान और बढ़ गया। महात्मा उसकी यह अवस्था देखकर बोले, “क्यों तुम्हें बुरा लगा न।” धनिक ने कहा, “बुरा लगने की तो बात ही है इतनी बड़ी रकम को आपने ऐसे ठोकर मार दी जैसे यह मिट्टी हो।” यह सुनकर महात्मा ने जवाब दिया, “सेठ याद रखो जिस दान के साथ दाता अपने को नहीं देता, वह दान मिट्टी के बराबर है। यह सुनते ही धनिक को गलती का अहसास हो गया।”

शिक्षाप्रद कहानी – सेठ का छोटा बेटा बना सच्चा आत्मज्ञानी

किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसके तीन लड़के थे। जब तीनों लड़के शिक्षा के योग्य हो गए थे सेठ ने लोगों से विचार विमर्श करके तीनों लड़कों को ज्ञानार्जन के लिए नगर के बाहर एक अच्छे शिक्षक के पास भेज दिया।
कई सालों बाद जब तीनों अध्ययन कर लौटे, तो सेठ उनसे मिलकर काफी खुश हुएं। सेठ ने उनकी परीक्षा लेने का विचार किया। वह देखना चाहता था कि उसके पुत्र क्या सीखकर आए हैं?
उसने सर्वप्रथम बड़े पुत्र को बुलाकर पूछा ‘बेटा! तुम इतने सालों से अध्ययन करके आए हो। क्या तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दोगे ‘ उसने उत्तर दिया जी पिताजी। आपको जो पूछना है पूछिए’ सेठ ने प्रश्न किया ‘आत्म-ज्ञान का रहस्य क्या है?’ लड़के ने वेद और उपनिषदों के मंत्र सुनाकर आत्म-ज्ञान का रहस्य समझाने की कोशिश की।
अब सेठ ने मंझले लड़के से यही प्रश्न किया। उसने जवाब में संत-महात्माओं की शिक्षा व अनुभव बताते हुए अंत में कहा ‘उनका सारा जीवन ही आत्म-ज्ञान से भरा है।’
सेठ ने अपने सबसे छोटे बेटे से भी यही प्रश्न किया। छोटे बेटा प्रश्न सुन कर चुप रहा। सेठ ने कहा ‘बोलते क्यों नहीं? आखिर इतने वर्षों में कुछ न कुछ तो सीखा होगा?’ तब वह धीरे से बोला ‘पिताजी ! मैंने जो आत्म-ज्ञान पाया है, उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। सच्चा आत्म-ज्ञान तो जीवन में, व्यवहार में जिया जाता है और वहां शब्द काम नहीं आते।’
सेठ ने उसे गले लगाते हुए अन्य दोनों पुत्रों को उसे गुरु बनाने की सलाह दी। वस्तुतः आत्म-ज्ञान अनुभूति का विषय है, अभिव्यक्ति का नहीं। सच्चा आत्म-ज्ञानी अपने ज्ञान को वाणी से नहीं, अच्छे आचरण से व्यक्त करता है।

शिक्षाप्रद कहानी – सहिष्णुता का गुण

एक गांव पर एक संत रहते थे। वह बहुत सहिष्णु थे। सभी से बड़े प्यार और आदर से बात किया करते थे। एक बार की बात है। संत रेलगाड़ी से कहीं जा रहे थे। गाड़ी में बहुत भीड़ थी। काफी समय तक खड़े रहने के बाद संत को बैठने के लिए
जगह मिल गई।
संतजी के पास ही एक मजबूत कद काठी का व्यक्ति बैठा था। वह बार-बार संत की ओर पैर बढ़ाकर ठोकर मार देता था। कुछ समय बाद संत ने बड़े दयाभाव से उस आदमी को कहा, ‘भाई लगता है, तुम्हारे पैर में कहीं पीड़ा है और उस पीड़ा को दिखाने के लिए तुम बार-बार अपना पैर मेरी ओर बढ़ाते हो। मगर फिर वापस खींच लेते हो। मुझे कम से कम सेवा का मौका तो दो। मुझे तुम अपना ही समझो। लाओ अपना पैर मुझे दिखाओ। ‘
संत ने उसका पैर उठाकर अपनी गोद में रख लिए और उसके पैर को सहलाने लगे। संत के ऐसे व्यवहार से वह व्यक्ति बहुत शर्मिन्दा हुआ। वह क्षमा याचना करते हुए कहने लगा, ‘महाराज मेरा अपराध क्षमा करें। आप महात्मा है। यह बात मुझे अब पता चली है।’
प्रेरणा- सहनशीलता को जीवन में अपनाएं।

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